Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 151
________________ वस्तुतः डॉ. पिशल ने अपने समय तक के उपलब्ध सभी व्याकरण और सारे प्राप्य साहित्य को मथकर यह व्याकरण तैयार किया है और प्राकृत व्याकरण के अधिकांश नियम पक्के कर दिये हैं। अभिनव प्राकृत-व्याकरण डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने प्राकृत प्रबोध के पश्चात् ई. सन् 1963 में अभिनव प्राकृत-व्याकरण की रचना की है। इस व्याकरण-ग्रन्थ में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि अन्य किसी भी भाषा के व्याकरण को समझे बिना व्यक्ति इस ग्रन्थ के अध्ययन से प्राकृत भाषा के अनुशासन सम्बन्धी समस्त नियमों को समझ सके। प्रमुख रूप से महाराष्ट्री, शौरसेनी, जैन शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, जैन महाराष्ट्री, पैशाची, चूलिका-पैशाची एवं अपभ्रंश का अनुशासन इस ग्रन्थ में किया गया है। भाषा-विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का भी इसमें विवेचन किया गया है। प्राकृतमार्गोपदेशिका __ पं. बेचरदास जीवराज दोशी ने ई. सन् 1968 में हिन्दी माध्यम से प्राकृत भाषा के अध्ययन हेतु प्राकृतमार्गोपदेशिका की रचना की। इसमें प्राकृत, पालि, शौरसेनी, मागधी, पैशाची व अपभ्रंश भाषा के पूरे नियम बताकर संस्कृत के साथ तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ का मूल आधार आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण तथा डॉ. पिशल का प्राकृत भाषाओं का व्याकरण है। प्राकृत स्वयं-शिक्षक प्राकृत स्वयं-शिक्षक के लेखक प्राकृत भाषा के आधुनिक विद्वान् डॉ. प्रेम सुमन जैन हैं। प्राकृत स्वयं-शिक्षक प्राकृत के विद्यार्थियों के लिए सरल एवं सुबोध शैली में लिखी गई कृति है। इसमें वैकल्पिक प्रयोगों से रहित प्राकृत भाषा के स्वरूप को विभिन्न वाक्य-प्रयोगों एवं चार्टी द्वारा समझाया गया है। जिन विद्यार्थियों को बिल्कुल भी संस्कृत या प्राकृत नहीं आती है, वे इस सरल पद्धति से बड़ी ही आसानी से स्वयं ही प्राकृत भाषा का अध्ययन कर सकते हैं और उसे सीख सकते हैं। डॉ. प्रेम सुमन जैन

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