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9 रसों आदि का विवेचन किया है। अनेक जैनाचार्यों ने वाग्भटालंकार पर वृत्तियाँ लिखी है जिनमें आचार्य सोमसुंदरसूरि, सोमोदयगणि, जिनवर्धनसूरि, समयसुन्दरगणि आदि प्रमुख हैं। विदग्धमुखमण्डन
___ बौद्ध विद्वान् धर्मदास ने वि.सं. 1310 के आस-पास में विदग्धमुखमंडन नामक अलंकारशास्त्र की रचना की। इस कृति में चार परिच्छेद हैं। इसमें प्रहेलिका और चित्रकाव्य संबंधी जानकारी भी दी गई है। इस ग्रन्थ पर अनेक जैनाचार्यों ने अनेक टीकाएँ लिखी हैं। 14वीं शताब्दी में विद्यमान खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभसूरि ने विदग्धमुखमंडन पर अवचूर्णि रची है। अलंकारसर्वस्व
__ 12वीं शताब्दी के अलंकारशास्त्री राजानक रुय्यक ने अपने ग्रन्थ अलंकारसर्वस्व में अलंकारों का बड़ा ही पांडित्यपूर्ण ढंग से विवेचन किया है। इस ग्रन्थ में प्राकृत के 10 पद्यों को उद्धृत किया है। कश्मीर के राजा जयसिंह के महाकवि मंखुक ने इस पर वृत्ति लिखी है।
काव्यप्रकाश
काव्यप्रकाश 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री मम्मट की महत्त्वपूर्ण रचना है। काव्यप्रकाश में प्राकृत की 49 गाथाएँ उदधृत हैं। इस ग्रन्थ पर अनेक टीका ग्रन्थ लिखे गये हैं।
काव्यानुशासन
12वीं शताब्दी के विद्वान् आचार्य हेमचन्द्र ने मम्मट के काव्यप्रकाश के आधार पर काव्यानुशासन की रचना कर काव्य की समीक्षा प्रस्तुत की है। इस पर उनकी स्वोपज्ञवृत्ति भी है। मूल ग्रन्थ व वृत्ति में मिलाकर प्राकृत के 78 पद्य उद्धृत हैं। ये पद्य प्रायः शृंगार, नीति व वीरता सम्बंधी हैं। उदाहरण गाथासप्तशती, कर्पूरमंजरी, रत्नावली आदि से लिये गये हैं। युद्ध के लिए प्रस्थान करते हुए नायक की मनोदशा का यह चित्र दृष्टव्य है।