________________
ग्रन्थ आज उपलब्ध हैं, वे प्रायः संस्कृत में ही लिखे गये हैं। यद्यपि प्राकृत व्याकरण के शब्दानुशासन सम्बन्धी नियम प्राचीन आगम ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। आचारांग में तीन वचन, काल, लिंग आदि का उल्लेख मिलता है। ठाणांग के आठवें अध्याय में आठ कारकों का निरूपण है। अनुयोगद्वारसूत्र में व्याकरण के अनेक तथ्य निरूपित हुए हैं। प्राकृत भाषा में लिखा प्राकृत का कोई प्राचीन व्याकरण-ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । ऐन्द्रव्याकरण, सद्दपाहुड आदि प्राकृत के प्राचीन व्याकरण थे, लेकिन आज उपलब्ध नहीं हैं। ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी से ही संस्कृत भाषा में लिखे प्राकृत के व्याकरण-ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
नाट्यशास्त्र
आचार्य भरत द्वारा रचित नाट्यशास्त्र सर्वाधिक प्राचीन संस्कृत व्याकरण है। इसमें प्राकृत भाषा के व्याकरण सम्बंधी कुछ नियमों का भी उल्लेख हुआ है। नाट्यशास्त्र के 17वें अध्याय में 6 से 23 श्लोकों में प्राकृत व्याकरण के कुछ सिद्धान्त विवेचित हैं। इसके अतिरिक्त 32वें अध्याय में प्राकृत के बहुत से उदाहरण दिये हैं। भरत के प्राकृत व्याकरण सम्बंधी ये अनुशासन अत्यंत ही संक्षिप्त व अस्पष्ट हैं, किन्तु यह व्याकरण-ग्रन्थ इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि भरत के समय में ही प्राकृत व्याकरण की आवश्यकता अनुभव की गई थी। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि उस समय प्राकृत का कोई प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ उपलब्ध रहा होगा। अतः आचार्य भरत ने प्राकृत व्याकरण के केवल कुछ सामान्य नियमों का मात्र उल्लेख करना ही पर्याप्त समझा होगा।
प्राकृतलक्षण
प्राकृत के उपलब्ध व्याकरणों में चंड के प्राकृतलक्षण को सर्वाधिक प्राचीन माना गया है। इसका रचनाकाल अनुमानतः दूसरी-तीसरी शताब्दी माना गया है। यह ग्रन्थ अत्यंत संक्षिप्त है। इस व्याकरण-ग्रन्थ में 99 सूत्र हैं, जो तीन पाद में विभक्त हैं। इनमें सामान्य प्राकृत व्याकरण के नियम बताये गये हैं। ग्रन्थ की कुछ प्रतियों में चतुर्थ पाद भी मिला है, जिसमें मात्र 4 सूत्र हैं। इन 4 सूत्रों में क्रमशः अपभ्रंश, पैशाची, मागधी व