Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 148
________________ 1 साथ किया गया है। शेष सूत्रों में अपभ्रंश व्याकरण पर प्रकाश डाला इस पाद में धात्वादेश की प्रमुखता है । यथा संस्कृत के कथ् धातु का प्राकृत में कह, बोल्ल, जंप आदि आदेश होता है। आचार्य हेमचन्द्र का यह ग्रन्थ अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत व्याकरण-ग्रन्थों के इतिहास में यह पहला ग्रन्थ है, जो सम्पूर्णता लिए हुए है। इस ग्रन्थ में अपभ्रंश व्याकरण के अनुशासन के लिए उदाहरण स्वरूप अपभ्रंश के जो दोहे लिए हैं, वे आज अपभ्रंश साहित्य की अमूल्य निधि हैं । इस ग्रन्थ पर उन्होंने तत्त्वप्रकाशिका नामक बृहत्वृत्ति तथा प्रकाशिका नामक लघुवृत्ति भी लिखी है, जो मूल ग्रन्थ को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। प्राकृतानुशासन प्राकृतानुशासन के कर्त्ता पुरुषोत्तम आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे। ये बंगाल के निवासी थे । इस ग्रन्थ के 3 से लेकर 20 अध्याय उपलब्ध हैं। प्रथम दो अध्याय लुप्त हैं। तीसरा अध्याय भी अपूर्ण है । प्रारंभिक अध्यायों में सामान्य प्राकृत का विवेचन है। आगे महाराष्ट्री, शौरसेनी, प्राच्या, अवन्ती व मागधी का अनुशासन किया गया है। इसके पश्चात् विभाषाओं में शाकारी, चांडाली, शाबरी, टक्कदेशी का नियमन किया गया है। अपभ्रंश में नागर, ब्राचड एवं उपनागर का तथा अन्त में कैकय, पैशाचिक, शौरसेनी - पैशाचिक आदि भाषाओं के लक्षण प्रस्तुत किये गये हैं। प्राकृतशब्दानुशासन प्राकृतशब्दानुशासन के कर्त्ता त्रिविक्रम 13वीं शताब्दी के वैयाकरण थे। आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थ के आधार पर उन्होंने प्राकृतशब्दानुशासन की रचना की है। प्राकृतशब्दानुशासन में 1036 सूत्र हैं, जो तीन अध्यायों में विभक्त हैं। प्रत्येक अध्याय में 4-4 पाद हैं। प्रथम, द्वितीय व तृतीय अध्याय के प्रथम पाद में प्राकृत का विवेचन है। तीसरे अध्याय के शेष पादों में क्रमशः शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका-पैशाची एवं अपभ्रंश का विवेचन किया गया है। यद्यपि त्रिविक्रम का यह ग्रन्थ हेमचन्द्र के सिद्धहेमशब्दानुशासन के आधार पर लिखा गया है, किन्तु देशी शब्दों का नियमन तथा अनेकार्थ शब्दों 136

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