________________
परम्परा
8
प्राकृत के प्रमुख चरितकाव्य
जैन विद्वानों द्वारा कथा व आख्यानों की भाँति प्राकृत भाषा में चरितकाव्यों की भी रचना की गई है। प्राकृत चरितकाव्यों की परम्परा के आधार पर ही संस्कृत में चरितकाव्य की परम्परा का आविर्भाव हुआ है । प्राकृत के चरितकाव्यों के विकास की भी एक लम्बी परम्परा रही है। प्राकृत कथा साहित्य की तरह प्राकृत चरितकाव्यों का उद्भव प्राकृत आगम साहित्य से माना जा सकता है। समवायांगसूत्र के अनुसार बारहवें अंग दृष्टिवाद के पाँच भेदों में एक भेद अनुयोग है, उसमें तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि महापुरुषों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान व निर्वाण संबंधी वृत्तांत समाविष्ट हैं। इस दृष्टि से दृष्टिवाद प्राकृत चरितकाव्यों का आदि स्रोत माना जा सकता है। समवायांग में कुलकरों, तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, बलदेव, वासुदेव आदि महापुरुषों के माता-पिता, उनके पूर्वभव, धर्माचार्य, दीक्षा प्रसंग आदि के उल्लेख प्राप्त होते हैं। कल्पसूत्र में अंकित ऋषभदेव, अरिष्टनेमि, पार्श्व, महावीर आदि महापुरुषों के जीवन वृत्तांत चरितकाव्यों की विकास-यात्रा को एक नई दिशा प्रदान करते हैं। वसुदेवहिण्डी में भी तीर्थकरों के जीवन चरित वर्णित हैं । यतिवृषभकृत तिलोयपण्णत्ति के चतुर्थ महाअधिकार में तीर्थंकर आदि महापुरुषों के वृत्तांत अधिक विस्तार से प्राप्त होते हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यकभाष्य में भी महापुरुषों के चरित संकलित हैं। इस प्रकार आगम साहित्य में चरितकाव्यों का अर्ध-विकसित रूप उपलब्ध है, जिसे विमलसूरि ने पउमचरियं की रचना कर पूर्णता प्रदान की है ।
प्राकृत चरितकाव्यों की कथावस्तु प्रायः तीर्थकर, राम, कृष्ण या अन्य महापुरुषों के जीवन तथ्यों को लेकर निबद्ध की गई है। आचार्य मानदेव के शिष्य शीलांकाचार्य ने सन् 868 में चउपन्नमहापुरिसचरियं में
110