________________
इन प्रमुख चरितकाव्यों के अतिरिक्त भी प्राकृत में अनेक चरित-ग्रन्थ मिलते हैं। श्री चन्द्रप्रभ महत्तर (ई.सन्. 1070) के द्वारा रचित सिरिविजयचंद केवलीचरियं में जिन पूजा का महत्व बताया गया है। 12वीं शताब्दी की रचना भद्रेश्वरकृत कहावलि में त्रेसठ महापुरुषों का चरित्र वर्णित है। देवेन्द्रसूरि कृत (ई.सन्. 1270) सुदंसणाचरियं नारी चरित्र के उदात्त रूप को दर्शाता है। 16वीं शताब्दी में अनंतहंस द्वारा लिखा गया कुम्मापुतचरियं तप, संयम, दान, शील व भावशुद्धि की महत्ता का प्रतिपादन करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राकृत चरितकाव्यों की एक लम्बी विकास यात्रा रही है, जो आगम काल से प्रारंभ होकर 16वीं-17वीं शताब्दी तक अनवरत रूप से चलती रही और इस काल में अनेक महापुरुषों के चरित लिखे गये।
सहायक ग्रन्थ
___ 1. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग 6) -- ले. डॉ. गुलाबचन्द्र
चौधरी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी ____2. प्राकृत भारती – सं. एवं अ. डॉ. प्रेमसुमन जैन, डॉ. सुभाष कोठारी,
आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर 3. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास-ले. डॉ.
नेमिचन्द्रशास्त्री, तारा बुक एजेन्सी, वाराणसी 4. प्राकृत साहित्य का इतिहास - ले. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा
विद्याभवन, वाराणसी
000