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शूद्रक का मृच्छकटिक लोकजीवन का प्रतिनिधि नाटक है। इसमें कवि ने नायक चारुदत्त तथा नायिका बसंतसेना की प्रेमकथा को राजनैतिक घटना से सम्बद्ध कर तत्कालीन सामाजिक व राजनैतिक जीवन को यथार्थ रूप से प्रतिबिम्बित किया है। विविध प्राकृत भाषाओं के सफल प्रयोग की दृष्टि से मृच्छकटिकम् अद्वितीय कृति है। इस नाटक में प्रयुक्त प्राकृतों में विविधता है। कवि ने पात्रानुकूल प्राकृत भाषाओं का बेजोड़ प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृत भाषाओं की जानकारी के लिए मृच्छकटिकम् का अध्ययन अत्यंत उपयोगी है।
सब मिलाकर इस नाटक में 30 पात्र हैं, जिनमें से सूत्रधार, नटी, दासी रदनिका, दासी मदनिका, बसंतसेना, उसकी माता, चेटी, दास कर्णपूरक, चारुदत्त की पत्नी धूता, शोधनक व श्रेष्ठी ये 11 पात्र शौरसेनी में बोलते हैं। वीरक व चन्दनक अवन्तिजा में, विदूषक प्राच्या में, संवाहक, स्थावरक, कुंभीलक, वर्धमानक, भिक्षु तथा रोहसेन मागधी में बोलते हैं। शकार शकारी में, दोनों चाण्डाल चांडाली में, द्यूतकर व माथुर ढक्की में बात करते हैं। नायक चारुदत्त, विट, आर्यक आदि शेष पात्र संस्कृत बोलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस नाटक में प्रयुक्त प्राकृत भाषाएँ भरत के नाट्यशास्त्र में विवेचित प्राकृत भाषाओं के नियमानुसार प्रयुक्त हुई हैं।
___ मृच्छकटिकम् के संस्कृत टीकाकार पृथ्वीधर ने मृच्छकटिकम् में प्रयुक्त विभिन्न प्राकृतों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार प्राकृत भाषाएँ सात मानी गई हैं। मागधी, अवन्तिजा, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, वाह्रीका तथा दाक्षिणात्या। अपभ्रंश भी सात हैं - शकारी, चांडाली, आभीरी, शबरी, द्राविड़ी, उड्रजा एवं ढक्की। इन भाषाओं में से मृच्छकटिकम् में सात भाषा–विभाषाओं का प्रयोग हुआ है। शौरसेनी, अवन्तिजा, प्राच्या, मागधी, शकारी, चाण्डाली और ढक्की। शकार द्वारा बोली जाने वाली शकारी भाषा का यह उदाहरण दृष्टव्य है
शुवण्णअं देमि पिअं वदेमि पडेमि शीशेण शवेश्टणेण । तधा वि मंणेच्छशि शुद्धदन्ति किं शेवअंकश्टमआ मणुश्शा ।।।
(8. 31) अर्थात् - मैं तुम्हें स्वर्ण देता हूँ, प्रिय बोलता हूँ, पगड़ी सहित सिर