Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 119
________________ कहारयणकोसो कथारत्नकोश प्राकृत कथाओं का संग्रह ग्रन्थ है। नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि (गुणचन्द्र) ने वि. सं. 1158 में भड़ौच में इस ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में 2 अधिकार हैं। प्रथम अधिकार में 33 व दूसरे अधिकार में 17 कथाएँ हैं। सम्यक्त्व, व्रत, संयम आदि शुष्क विषयों को कथाओं के माध्यम से सरस बनाकर प्रस्तुत किया गया है। इस कथा-ग्रन्थ की सभी कथाएँ धार्मिक होते हुए भी रोचक व मनोरंजक हैं। इन कथाओं के माध्यम से एक ओर शारीरिक सुखों की अपेक्षा आध्यात्मिक सुखों को महत्त्व दिया गया है, वहीं दूसरी ओर जातिवाद का खण्डन कर मानवतावाद की प्रतिष्ठा की गई है। जीवन शोधन के लिए व्यक्ति का आदर्शवादी होना आवश्यक है। इस कृति की विभिन्न कथाओं का उद्देश्य यही है कि उपशांत होकर व्यक्ति आदर्श गृहस्थ का जीवन-यापन करे। सुदत्ताख्यान द्वारा गृहकलह के दोषों का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। काव्यात्मक वर्णनों की दृष्टि से भी यह कथा-ग्रन्थ समृद्ध है। नम्मयासुन्दरीकहा महेन्द्रसूरि द्वारा रचित नर्मदासुन्दरीकथा धर्म प्रधान कथा-ग्रन्थ है। इसका रचना काल वि.सं. 1187 है। इसमें महासती नर्मदासुंदरी के सतीत्त्व का निरूपण किया गया है। नायिका नर्मदासुंदरी अनेक कष्टों को सहन कर के भी अपने शीलव्रत की रक्षा करती है। नायिका के शीलव्रत की परीक्षा के अनेक अवसर आते हैं, किन्तु नायिका अपने व्रत पर अटल रहकर अपने शील की रक्षा करती है। धर्मकथा होते हुए भी मनोरंजन व कौतूहल तत्त्व इसमें पूर्ण रूप में समाविष्ट हैं। बीच-बीच में कथा को प्रभावशाली बनाने के लिए सूक्तियों का भी प्रयोग किया है। यथा नेहं विणा विवाहो आजम्म कुणइ परिदाहं (गा० 39) अर्थात् - प्रेम के बिना विवाह जीवन भर दुःखदाई होता है।

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