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आधार पर काव्य का नाम कंसवहो रखा गया है। यह एक सरस काव्य है, जिसमें लोकतत्त्व, वीरता व प्रेमतत्त्व का निरूपण एक साथ हुआ है। इसकी भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है, कहीं-कहीं शौरसेनी का भी प्रयोग हुआ है। मथुरानगरी, प्रभात, कंस वध, गोपियों का विलाप, बलराम का अन्तर्द्वन्द्व, कृष्ण की बाल लीला आदि के वर्णन काव्यात्मक हैं। बलराम के अन्तर्द्वन्द्व का यह मनोवैज्ञानिक चित्रण दृष्टव्य है
पवट्टए चावमहं ति कोदुअंणिवट्टए वंचण-साहणं ति तं । दुहा वले भादर भाव-बंधणं मह त्ति तं जंपइ रोहिणी-सुओ ।।
(गा. 27) अर्थात् – रोहिणी पुत्र (बलराम) कहते हैं, हे भाई! मुझे दो प्रकार का भाव उत्पन्न हो रहा है। एक ओर धनुष यज्ञ देखने का कौतूहल उत्पन्न हो रहा है, तो दूसरी ओर वह धनुष यज्ञ कपट का साधन है। इस कारण मन निवृत्त हो रहा है। उसाणिरुद्धो
__उषाणिरुद्ध प्राकृत का सरस खंडकाव्य है। इस काव्य की कथा चार सर्ग में विभाजित है। इसकी कथा का आधार श्रीमद् भागवत है। इस खंडकाव्य के रचयिता भी रामपाणिवाद हैं। यह कंसवध के पहले की रचना है। यह एक सरस प्रेमकाव्य है, जिसमें बाणासुर की कन्या उषा तथा श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के प्रणय व विवाह की घटना का काव्यात्मक वर्णन हुआ है। बाण की कन्या उषा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से प्रेम करती है। बाण को जब यह मालूम होता है तो वह अनिरुद्ध को जेल में डाल देता है। श्रीकृष्ण अपने पौत्र को छुड़ाने के लिए बाण से युद्ध करते हैं। पराजित होकर बाण अपनी कन्या का विवाह अनिरुद्ध से कर देते हैं । अन्तिम सर्ग में उषा एवं अनिरुद्ध को देखने आने वाली नारियों की विचित्र मनोदशा का काव्यात्मक वर्णन हुआ है। प्रणयकथा की प्रधानता होने के कारण शृंगार रस इस काव्य का प्रमुख रस है। नायक-नायिका दोनों के ही चरित्र-चित्रण में प्रणय-तत्त्व को प्रमुखता दी गई है। शृंगार रस के साथ-साथ युद्ध आदि प्रसंग में वीर रस की भी सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। काव्य-तत्त्वों की दृष्टि से यह समृद्ध रचना है। घटनाओं का विन्यास क्रम सुनियोजित है।