Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 111
________________ हैं । व्यवहारभाष्य व बृहत्कल्पभाष्य में प्राकृत की उपदेशप्रद व नीतिकथाएँ बहुलता से प्राप्त होती हैं। व्यवहारभाष्य में आई 'भिखारी का सपना' नामक कथा वर्तमान समय में शेखचिल्ली के किस्से के रूप में सर्वत्र लोकप्रिय है । आगम टीका साहित्य तो कथाओं का भंडार ही है । आचार्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका में लगभग एक सौ पच्चीस कथाएँ वर्णित हैं। ये कथाएँ न केवल उपदेशात्मक हैं, अपितु मनोरंजक एवं चमत्कारी भी हैं। आवश्यकचूर्णि में वर्णित कथाएँ उपदेशों के साथ-साथ लोक जीवन की अभिव्यक्ति भी करती हैं। इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृत कथा साहित्य का आविर्भाव आगम युग से प्रारंभ हो गया था, जो उत्तरोत्तर विकसित होता रहा । आगम साहित्य की धार्मिक, लौकिक, एवं नैतिक कथाओं के आधार पर उत्तरकाल में प्राकृत में स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थों की रचना की जाने लगी । स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थ प्राकृत कथा - साहित्य के विकास की यह लम्बी यात्रा आगम साहित्य से प्रारंभ होकर सत्रहवीं शताब्दी तक चली। स्वतन्त्र प्राकृत कथा-ग्रन्थों के लेखन का आरंभ ईसा की प्रथम - द्वितीय शताब्दी से हो गया और 16वीं - 17वीं शताब्दी तक चलता रहा । 9वीं - 10वीं शताब्दी के पूर्व के जैन आचार्यों के लिखे हुए प्राकृत कथा - ग्रन्थों की संख्या कम ही मिलती है, किन्तु 11वीं-12वीं शताब्दी में विद्वानों ने सैकड़ों नवीन कथा - ग्रन्थों का सृजन कर इस विधा को स्वर्णिम काल तक पहुँचा दिया। इस काल में कथाकोषप्रकरण, आख्यानमणिकोष, कहारयणकोष आदि अनेक महत्त्वपूर्ण कथा-ग्रन्थों की रचना हुई । प्राकृत के प्रमुख कथा - ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है | तरंगवईकहा पादलिप्तसूरि पहले जैनाचार्य थे, जिन्होंने तरंगवती नामक प्रथम स्वतंत्र प्राकृत कथा–ग्रन्थ की रचना कर प्राकृत कथा - साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की । पादलिप्तसूरि का समय विद्वानों ने दूसरी-तीसरी 99

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