Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 51
________________ चंदपण्णत्ती ___ चन्द्रप्रज्ञप्ति विषय की दृष्टि से सूर्यप्रज्ञप्ति के निकट है। वर्तमान में जो इसका रूप मिलता है, वह अक्षरशः सूर्यप्रज्ञप्ति के समान है। केवल प्रारम्भ में मंगलाचरण तथा विषय सूचन करने वाली 18 गाथाएँ आई हैं, जो सूर्य प्रज्ञप्ति में नहीं हैं। विद्वानों के लिए यह बड़ी समस्या का विषय है कि ये दो अलग-अलग ग्रन्थ हैं अथवा एक ही ग्रन्थ है। इसमें चन्द्र व सूर्य के आकार, तेज, परिभ्रमण, उनकी गतियाँ, विमान आदि का निरूपण है। इस आगम में चन्द्रमा को स्वतः प्रकाशमान बताया है तथा उसके घटने-बढ़ने का कारण राहू को स्वीकार किया है। निरयावलिया निरयावलिका का अर्थ है नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन करने वाला सूत्र । पूर्व में इस आगम में 1 श्रुतस्कन्ध, 52 अध्ययन व पाँच वर्ग थे तथा इसमें निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा, इन पाँच उपांगों का समावेश था, किन्तु वर्तमान समय में ये पाँचों उपांग पृथक-पृथक रूप में स्वीकृत हैं। वर्तमान में निरयावलिका में दस अध्ययन हैं। इसके दस अध्ययनों में काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह व महासेनकण्ह के जीवन-चरित का वर्णन है। ये सभी कुमार राजा श्रेणिक के पुत्र तथा कूणिक (अजातशत्रु) के भाई थे। यह उपांग ऐतिहासिक वर्णनों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। राजा कूणिक व राजा चेटक के बीच हुए महाशिलाकण्टकसंग्राम का इसमें उल्लेख है। कप्पवडंसिया शाब्दिक दृष्टि से कल्पावतंसिका का अर्थ है - विमानवासी देव। इस उपांग में दस अध्ययन हैं, जिनमें श्रेणिक राजा के दस पौत्रों पउम, महापउम, भद्द, सुभद्द, पउमभद्द, पउमसेन, पउमगुल्म, नलिनीगुल्म, आणंद और नन्दन के भगवान् महावीर के पास श्रमण दीक्षा ग्रहण करने, देवलोक जाने, अन्ततः महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धत्व प्राप्त करने के वर्णन हैं। इस उपांग में व्रताचरण द्वारा जीवन-शोधन की प्रक्रिया पर प्रकाश

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