Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha Author(s): Tara Daga Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 56
________________ 3. बृहत्कल्प, 4. निशीथ, 5. महानिशीथ, 6. जीतकल्प। नन्दीसूत्र में जीतकल्प को छोड़कर शेष पाँच नाम मिलते हैं। पुनरुद्धार किया जाने के कारण कुछ परम्पराएँ महानिशीथ को आगम की कोटि में नहीं मानती हैं। अतः स्थानकवासी व तेरापंथी परम्परा में मौलिक छेदसूत्र चार ही माने गये हैं। आयारदसाओ दशाश्रुतस्कन्ध का ठाणांग में दूसरा नाम आचारदशा भी प्राप्त होता है। इसके दस अध्ययन हैं, जिनमें दोषों से बचने का विधान है। पहले उद्देशक में 20 असमाधि दोष, दूसरे उद्देशक में 21 शबल दोष, तीसरे उद्देशक में 33 प्रकार की आशातनाओं, चौथे उद्देशक में 8 प्रकार की गणिसंपदाओं, पाँचवें उद्देशक में 10 प्रकार की चित्तसमाधि, छठे उद्देशक में 11 प्रकार की उपासक प्रतिमाओं, सातवें उद्देशक में 12 प्रकार की भिक्षु प्रतिमाओं, आठवें उद्देशक में पर्युषणा, नवें में 30 महा-मोहनीय स्थानों व दसवें उद्देशक में नव-निदानों का वर्णन है। इस आगम के आठवें उद्देशक पर्युषणा में महावीर का जीवन चरित विस्तार से वर्णित हुआ है। यह अध्ययन विकसित होकर वर्तमान में कल्पसूत्र के नाम से जाना जाता है। कप्पो बृहत्कल्प का छेदसूत्रों में गौरवपूर्ण स्थान है। बृहत्कल्प कल्पसूत्र से भिन्न साध्वाचार का स्वतंत्र ग्रन्थ है। अन्य छेदसूत्रों की तरह इसमें भी श्रमणों के आचार-विषयक विधि-निषेध, उत्सर्ग-अपवाद, तप, प्रायश्चित्त आदि पर चिन्तन किया गया है। इसमें छ: उद्देशक हैं। इसके रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु माने जाते हैं। श्रमण जीवन से सम्बद्ध व प्राचीनतम आचार-शास्त्र का ग्रन्थ होने के कारण इसका आगम साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रन्थ में साधु-साध्वियों के लिए वर्षावास में विहार, वस्त्र लेने आदि का निषेध किया गया है। निर्ग्रन्थी का एकाकी रहना, पात्र रहित रहना, ग्राम आदि के बाहर आतापना लेना आदि का वर्जन किया है। इसके छठे उद्देशक में अपवादिक सूत्रों का विवेचन है। इस प्रकार बृहत्कल्प में श्रमण-श्रमणियों के जीवन और व्यवहार से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्णPage Navigation
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