Book Title: Prakrit Ratnakar
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan

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Page 12
________________ ग्रन्थ तीन वर्ग व तैंतीस अध्ययनों में विभक्त है। इसमें 33 महान् आत्माओं का संक्षेप में वर्णन है। इनमें से 23 राजकुमार तो सम्राट श्रेणिक के पुत्र हैं तथा शेष 10 भद्रा सार्थवाही के पुत्र हैं। इन दोनों के एक-एक पुत्र के जीवन वृत्त का वर्णन विस्तार से करते हुए शेष पुत्रों के चरित्रों को उनके समान कहकर सूचित कर दिया गया है। इस प्रकार प्रथम वर्ग में धारिणी पुत्र ‘जालि' तथा तीसरे वर्ग में भद्रा पुत्र 'धन्य' का चरित्र विस्तार से वर्णित है। मुनि बनने के बाद धन्य ने जो तपस्या की वह अद्भुत एवं अनुपम है । तपोमय जीवन का इतना सुन्दर एवं सर्वांगीण वर्णन श्रमण साहित्य में तो क्या, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता है। इस आगम के अध्ययन से महावीरकालीन सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों से भी अवगत हुआ जा सकता है। 10. अनुयोगद्वारसूत्र (अणुओगदाराइ) । समस्त आगमों के स्वरूप व उनकी व्याख्याओं को समझने की दृष्टि से अनुयोगद्वारसूत्र एक महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ है। आगमों के वर्गीकरण में इसे भी चूलिका रूप में रखा गया है। अनुयोग का शाब्दिक अर्थ है, शब्दों की व्याख्या करने की प्रक्रिया। भद्रबाहु ने अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वार्तिक इन पाँचों को अनुयोग का पर्याय रूप कहा है। नन्दीसूत्र के समान यह ग्रन्थ भी प्राचीन है। इसके रचयिता आर्यरक्षित माने जाते हैं। इसमें चार द्वार हैं - उपक्रम, निक्षेप, अनुगम एवं नय। इन चारों द्वारों के माध्यम से आगम वर्णित, तथ्यों, सिद्धान्तों एवं तत्त्वों की व्याख्या प्रस्तुत की गई है। व्याख्येय शब्द का निक्षेप करके, पहले उसके अनेक अर्थों का निर्देश करते हुए, प्रस्तुत में उस शब्द का कौन सा अर्थ ग्राह्य है, इस शैली को समझाया गया है। इस शैली के द्वारा सत्य का साक्षात्कार सहज ढंग से हो सकता है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये इस आगम ग्रन्थ की विषयवस्तु में विविधता है। सात स्वरों, नवरसों, व्याकरण की आठ विभक्तियों आदि का उल्लेख इसमें प्राप्त होता है। पल्योपम, सागरोपम आदि के भेद-प्रभेद, संख्यात, असंख्यात, अनन्त आदि का विश्लेषण, भेद, प्रकार आदि का विस्तृत वर्णन है। प्रमाण के वर्णन में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा आगम की विशद् चर्चा की गई है। प्रमाण की तरह नयवाद पर भी इसमें विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है। अनेकानेक 40 प्राकृत रत्नाकर

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