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जात-अग प्रज्ञाप्त
विभक्त किया है- आर्य देवता और म्लेच्छ देवता । इन्हें उत्तम मध्यम और जघन्य भेदों में विभक्त किया गया है। यह ग्रन्थ मुनि पुण्यविजय जी द्वारा संपादित है। प्राकृत जैन टैक्स्ट सोसायटी द्वारा सन् 1957 में मोतीचन्द की अंग्रेजी और वासुदेवशरण अग्रवाल की हिन्दी भूमिका सहित प्रकाशित हैं। 3. अंगपण्णत्ति-अंग प्रज्ञप्ति
अंगपण्णत्ति- अंग प्रज्ञप्ति में 12 अंग और 14 पूर्वो की प्रज्ञप्ति का वर्णन है। चूलिकाप्रकीर्णप्रज्ञप्ति में सामायिक, स्तव, प्रतिक्रमण, विनय, कृतिकर्म, णिसेहिय (निशीथिका)और चतुर्दश प्रकीर्णक (पइण्णा)का उल्लेख है।
4. अंगप्रज्ञप्ति के कर्ता शुभचन्द्र .
अंगप्रज्ञप्ति के कर्ता शुभचन्द्र हैं, जो सिद्धान्तसार के भाष्यकर्ता ज्ञानभूषण के प्रशिष्य थे। भट्टारक ज्ञानभूषण की भांति भट्टारक शुभचन्द्र भी बहुत बड़े विद्वान थे। वे त्रिविधविद्याधर शब्द युक्ति और परमागम के ज्ञाता और षट्भाषाकविचक्रवर्ती के नाम से प्रख्यात थे। गौड, कलिंग, कर्णाटक, गुर्जर, मालव आदि देशों के वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर उन्होंने जैनधर्म क प्रचार किया था। 5. अंजनासुन्दरीचरित ____ हनुमान की माता अंजनासुन्दरी पर अंजनासुन्दरीचरित नामक खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि की शिष्या गुणसमृद्धिमहत्तराकृत, 503 प्राकृत गाथाओं का काव्य है। इसकी सं. 1406 की पाण्डुलिपि प्राप्त है। 6. अगडदत्तपुराण (चरित) ___ इसकी कथा अति प्राचीन होने से पुराण नाम से कही गई है। इसमें अगडदत्त का कामाख्यान एवं चातुरी वर्णित है। इसके कर्ता अज्ञात हैं। अगडदत्त की कथा वसुदेवहिण्डी (5-6वी शती), उत्तराध्ययन की वादिवेताल शान्तिसूरिकृत शिष्यहिता प्राकृत टीका (11वीं शती) तथा नेमिचन्द्रसूरि (पूर्वनाम देवेन्द्रगणि) कृत सुखबोधा टीका (सं. 1130) में आती है। वसुदेवहिण्डी के अनुसार अगडदत्त उज्जैनी का एक सारथीपुत्र था। पिता की मृत्यु हो जाने पर पिता के परम मित्र कौशाम्बी के एक आचार्य से वह शस्त्रविद्या सीखता है, वहाँ उसका सोमदत्ता सुन्दरी से प्रेम हो 20 प्राकृत रत्नाकर