Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 5
________________ प्राथमिकी भारतीय साहित्य विभिन्न भाषाओं में समृद्ध हुआ है। प्राकृत साहित्य का इस समृद्धि में अपूर्व योगदान है। प्राकृत साहित्य अपनी कथाओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। आगम ग्रन्थों के धर्म-दर्शन के शास्वत सत्यों को विभिन्न रूपको, दृष्टान्तों एवं कथाओं के माध्यम जन-जीवन तक पहुँचना प्राकृत साहित्यकारों का प्रमुख लक्ष्य रहा है। ये प्राकृत कथाएं केवल मानव पात्रों के सहारे नहीं, अपितु, पशु-पक्षी पात्रों के माध्यम भी अपने विकास को प्राप्त हुई हैं। आगम की संक्षिप्त कथाएं, व्याख्या साहित्य की लोक कथाएं और स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थों की सरस और मनोरम कथाएं पाठक को आनंदित तो करती ही हैं, उसके जीवन को आलोकित भी करती हैं। उसे भारत की सांस्कृतिक सम्पदा से परिचित कराती हैं। धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का सही अर्थ इन कथाओं के माध्यम से जाना जा सकता है। प्राकृत कथा-साहित्य का धरातल अहिंसा-मय जीवन और भेद-भाव रहित दृष्टिकोण रहा है। इसलिए यह साहित्य हिंसा, आतंक और अनाचार जैसे व्यसनों की उत्पत्ति के मूल कारणों पर प्रकाश भी डालता है और इस ओर भी इंगित करता है कि सदाचार, अहिंसा, अभय की प्रतिष्ठा किये बिना संस्कृति का कोई विकास स्थायी नहीं हो सकता। ऐसे चिन्तनप्रधान प्राकृत कथा-साहित्य पर हमने जो विगत वर्षों में लिखा था, प्रकाशित किया था उस सबको व्यवस्थित रूप में इन ललित निबन्धों में बहु-जन हिताय पुनः संयोजित किया है। पुस्तक रूप में पहली बार प्रकाशित शोधपूर्ण लेखों का यह गुलदस्ता प्राकृत कथाओं की सदाचार और सरसता की सुगन्ध को विश्व-व्यापी बनायेगा, ऐसा विश्वास है। पुस्तक के प्रकाशक श्री विजेन्द्र संघी और प्रकाशन-सहयोगी श्री टाया चेरिटेबल ट्रस्ट, उदयपुर के इस साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रकाशन सहयोग के लिए आभार। अक्षय तृतीया, 1991 - प्रेम सुमन जैन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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