Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 8
________________ प्रक INDEPENDMETERMeek-CentertCATCereerCCheeTEACHINETRIEVAN यस्तं स्तौति परत्र वृत्रदमनस्तोमेन स स्तूयते, यस्तं ध्यायति क्लुप्तकर्मनिधनः स ध्यायते योगिनिः॥१२॥ // वंशस्थवृत्तम् // अवद्यमुक्त पथि यः प्रवर्तते, प्रवर्तयत्यन्यजनं च निःस्पृहः / स एव सेव्यः स्वहितैषिणा गुरुः , स्वयं तरंस्तारयितुं कमः परम् // 13 // . // मालिनीवृत्तम् // विदलयति कुबोधं बोधयत्यागमार्थ, सुगतिकुगतिमार्गों पुण्यपापे व्यनक्ति / अवगमयति कृत्याकृत्यजेदं गुरुयो, नवजलनिधिपोतस्तं विना नास्ति कश्चित् // 14 // // शिखरिणीवृत्तम् // पिता माता जाता प्रियसहचरी सूनुनिवहः, सुहृत्स्वामी माद्यत्करिजटरथाश्वः परिकरः। निमज्जन्तं जन्तुं नरककुहरे रक्षितुमनं, गुरोर्धर्माधर्मप्रकटनपरात् कोऽपि न परः // 15 // ॥शार्दूलविक्रीडितम् // किं ध्यानेन नवत्वशेषविषयत्यागैस्तपोनिः कृतं, पूर्ण नावनयाऽसमिन्द्रियदमैः पर्याप्तमातागमः / MeerGreemerciPHETIPJABRETRESERT ederateeIGHeveaee).

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