Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 16
________________ // सिन्दूरप्रकर // // 6 // NEHATGATCHICAGOODCerGCleseNDESCENDEDICE यश्चं व्याप्तं वहति वधीधूम्यया क्रोधदावं, तं माना परिहर पुरारोहमौचित्यवृत्तेः॥ 45 // // शिखरिणीवृत्तम् // शमासानं जञ्जन् विमलमतिनामी विघटयन, किरन् पुर्वापांशूत्करमगणयन्नागमणिम् / भ्रमन्नूया स्वैरं विनयनयवोथीं विदलयन्, जनः कं नानर्थ जनयति मदान्धो हिप च / / 10 // ॥शार्दूलविक्रोमितम् // औचित्याचरणं विलुपति पयोवाहं ननस्वानिव, प्रध्वंसं विनयं नयत्यहिरिव माणस्पृशां जीवितम् / कीति कैरविणी मतंगज इन प्रोन्मूलयत्यञ्जसा, मानो नीच श्योपकारनिकरं हन्ति त्रिवर्ग नृणाम् // 51 // वसन्ततिलकावृत्तम् / मुष्णाति यः कृतसमस्तसमीहितार्थ,-संजीवनं विनयजीवितमंगलाजाम् / जात्यादिमानविषजं विषमं विकार, तं मार्दवामृतरसेन नयस्व शान्तिम् // 5 // // मालिनीवृत्तम् // कुशलजननवन्ध्यां सत्यसूर्यास्तसन्ध्यां, कुगतियुवतिमालां मोहमातंगशामाम् / BIGOPICTG4-6-GPIGMEGACISTEGORIGHeterGHEIDIEres

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