Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 45
________________ BROTECEMBE-HEIGHT-CISEMEDIENDSerNeBJNONEINDIA समयादावलीषट्कं यावन्मिथ्यात्वनूतलम् / नासादयति जीवोऽयं तावत्सास्वादनो जवेत् // 1 // मिश्रकर्मोदयांजीवे सम्यमिथ्यात्वमिश्रितः / यो नावोऽन्तर्मुहूर्त स्यातन्मिश्रस्थानमुच्यते // 13 // जात्यन्तरसमुद्भूतिर्वकवाखरयोर्यया / गुरुदध्नोः समायोगे रसनेदान्तरं यथा // 14 // तथा धर्मध्ये श्रद्धा जायते समबुधितः / मिश्रोऽसौ नएयते तस्मान्नावो जात्यन्तरात्मकः // 15 // आयुर्बध्नाति नो जीवो मिश्रस्थो म्रियते न च / सष्टिा कुदृष्टिर्वा नूत्वा मरणमश्नुते // 16 // सम्यमिथ्यात्वयोमध्ये ह्यायुर्येनार्जितं पुरा / म्रियते तेन जावेन गतिं याति तदाश्रिताम् // 17 // . या यथोक्तेषु तत्त्वेषु रुचिर्जीवस्य जायते / निसगांउपदेशाधा सम्यक्त्वं हि तमुच्यते // 17 // द्वितीयानां कषायाणामुदयाद्रतवर्जितम् / सम्यक्त्वं केवलं यत्र तचतुर्थ गुणास्पदम् // 15 // उत्कृष्टास्य त्रयस्त्रिंशत्सागरा साधिका स्थितिः / तदर्धपुलावर्तनवैर्नव्यैरवाप्यते // 20 // कृपाप्रशमसंवेगनिर्वेदास्तिक्यलक्षणाः / गुणा जवन्ति यञ्चित्ते स स्यात्सम्यक्त्वनूषितः // 21 // कायोपशमिकी दृष्टिः स्यानरामरसंपदे / दायिकी तु नवे तत्र वितुर्ये वा विमुक्तये // 22 // देवे गुरौ च संघे च सद्भक्ति शासनोन्नतिम् / अवतोऽपि करोत्येव स्थितस्तुर्ये गुणालये // 23 // प्रत्याख्यानोदयादेशविरतिर्यत्र जायते / तच्छत्वं हि देशोनपूर्वकोटिगुरु स्थिति // 24 // प्रातरौ जवेदत्र मन्दं धर्म्य तु मध्यमम् / षट्कर्मप्रतिमाश्राव्रतपालनसनवम् // 25 // POS,60-6,9GGER'S 49144PTETC994-CENBTC00148/0TG2014

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