Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company
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________________ ॥गुणस्थानकमारोह। // अथ गुणस्थानकमारोहप्रकरणम् // // 20 // GSTStrierce-CHHOTE GHerC- गुणस्थानक्रमारोहहतमोहं जिनेश्वरम् / नमस्कृत्य गुणस्थानस्वरूपं किश्चिमुच्यते // 1 // . चतुर्दशगुणश्रेणिस्थानकानि तदादिमम् / मिथ्यात्वाख्यं द्वितीयं तु स्थानं सास्वादनानिधम् // 2 // तृतीयं मिश्रकं तुर्य सम्यग्दर्शनमव्रतम् / श्राद्धत्वं पञ्चमं षष्ठं प्रमत्तश्रमणानिधम् // 3 // सप्तमं त्वप्रमत्तं चापूर्वात्करणमष्टमम् / नवमं चानिवृत्ताख्यं दशमं सूदमलोजकम् // / / . एकादशं शान्तमोहं छादशं वीणमोहकम् / त्रयोदशं सयोगाख्यमयोगाख्यं चतुर्दशम् // 5 // अदेवागुर्वधर्म या देवगुरुधर्मधीः / तन्मिथ्यात्वं नवेघ्यक्तमव्यक्त मोहलक्षणम् // 6 // अनाघव्यक्तमिथ्यात्वं जीवेऽस्त्येव सदा परम् / व्यक्तमिथ्यात्वधीमाप्तिगुणस्थानतयोच्यते // 7 // मद्यमोहाद्यथा जीवो न जानात्यहितं हितम् / धर्माधर्मो न जानाति तथा मिथ्यात्वमोहितः // 7 // अजव्याश्रितमिथ्यात्वेऽनाधनन्ता स्थितिनवेत् / सा जव्याश्रितमिथ्यात्वेऽनादिसान्तः पुनर्मता ॥ए॥ अनादिकालसभूतमिथ्याकर्मोपशान्तितः / स्यादौपशमिकं नाम जोवे सम्यक्त्वमादितः // 10 // एकस्मिन्नुदिते मध्याच्छान्तानन्तानुबन्धिनाम् / आद्योपशमसम्यक्त्वशैलमौसेः परिच्युतः // 11 // reveeeeeeeeeeeeeeeveeMerce DADNE-HEREDDC ClearGener

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