Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 29
________________ श्रुतं मतिपूर्व घ्यनेकादशभेदम् / / 20 / विविधोऽवधिः // 21 // जवप्रत्ययो नारकदेवानाम् // 2 // * यथोक्तनिमित्तः षड्विकपः शेषाणाम् // 23 // ऋजुविपुलमती मनःपर्यायः // 22 // विशुध्ध्यप्रतिपा ताभ्यां तविशेषः // 25 // विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्याययोः॥ 26 // मतिश्रुतयोनिबन्धः सर्वव्येष्वसर्वपर्यायेषु / / 27 / / रूपिष्ववधेः / / 27 // तदनन्तनाग मनःपर्यायस्य ॥शए // सर्वद्रव्यपयोयेषु केवलस्य // 30 // एकादीनि जाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतन्यः॥३१॥ मतिश्रतावधयो विपर्ययश्च // 35 // सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपनब्धेरुन्मत्तवत् // 33 // नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दा नयाः / / 34 / आद्यशब्दौ वित्रिनेदी / / 35 // NeDEGREENDATOGGESTOREHENGAP1400416JEJO SOBTC State-deverGeeISHEDINDIGESTERTERekseeMeT-DIGRAPTEM // इति प्रथमोऽध्यायः॥ 00000000000 // अथ द्वितीयोऽध्यायः॥ औपशमिकदायिकौ नाचौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च // 1 // निवाष्टा

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