Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company
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________________ BCCCCCCCCCCCG.C.COACPCG GAGRICOPTER // // निर्वर्तनानिदेपसंयोगनिसर्गा हिचतुर्मित्रिनेदाः परम् // 10 // तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः // 11 // दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवानान्यात्मपरोजयस्थान्यसद्यस्य // 12 // नूतव्रत्यनुकंपा दानं सरागसंयमा दियोगः शान्तिः शौचमिति सद्यस्य // 13 // केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य // 14 // कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य // 15 // बहारंजपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः // 16 // माया तैर्यग्योनस्य // 17 // अपारंजपरिग्रहत्वं स्वनावमार्दवार्जवं च मानुषस्य // 10 // निशीलवतत्वं च सर्वेषाम् // 15 // सरागसंयमसंयमासयमाकामनिर्जराषासतपांसि दैवस्य // 30 // योगवक्रता विसंवादनं चाशुजस्य नाम्नः // 21 // विपरीत शुभस्य // 22 // दर्शनविशुधिर्विनयसंपन्नता शीलवतेष्वनतिचारोऽजीणं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी संघसाधुसमाधिवैयावृत्त्यकरणमर्हदाचार्यबहश्रुतप्रवचननक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रजावना प्रवचनवत्सलत्वमिति ती-है र्यकृत्त्वस्य // 23 // परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोज्ञावने च नीचैर्गोत्रस्य // 24 // तधिपर्ययो नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य // 25 // विघ्नकरणमन्तरायस्य // 26 // / इति षष्ठोऽध्यायः / SesertBJPTC SUCCOCCASINGBIEledeeyedeo."CE.Gr

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