Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 40
________________ // तत्त्वार्थ सूत्र॥ // 10 // BREASEDICICIANDI.SIR-CHACKGRIGHTSGROHDFCORPHOTOKE वरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तरायाः॥ 5 // पञ्चनवन्यष्टाविंशतिचतुर्षिचत्वारिंशषिपञ्चनेदा यथाक्रमम् // 6 // मत्यादीनाम् // 7 // चकुरचकुरवधिकेवलानां निजानिपानिजामचलापचनापचलास्त्यानगृध्धिवेदनीयानि च // 7 // सदसध्द्ये // ए॥ दर्शनचारित्रमोहनीयकषायनोकषायवदनीयाख्याविधिषोमशनवनेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतज्जयानि कषायनोकषायावनन्तानुबन्ध्यपत्याख्यानपत्याख्यानावरणसंज्वलनविकरूपाश्चैकशः क्रोधमानमायालोजा हास्यरत्यरतिशोकलयजुगुप्सास्त्रीपुनपुंसकवेदाः // 1 // नारकतैर्यग्योनमानुपदैवानि // 11 // गतिजातिशरीरांगोपांगनिर्माणबन्धनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपधातपराघातातपोद्योतोच्वासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रससुजगसुस्वरशुजसूक्ष्मपर्यातस्थिरादेययशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च / / 1 / / नच्चैर्नीचैश्च // 13 // दानादीनाम् // 14 // श्रादितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः // 15 // सप्ततिर्मोहनीयस्य॥१६॥ नामगोत्रयोविंशतिः // 17 // त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाएयायुष्कस्य // 17 // अपरा छादश मुहूर्ता वेदनीयस्य // 17 / / नामगोत्रयोरष्टौ // 20 // शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् // 21 // विपाकोऽनुजावः // 12 // स यथानाम // 23 / / ततश्च निर्जरा // 24 // नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूदमैकक्षेत्रावगाढस्थिताः सर्वात्मप्रदशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः // 2 // सद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुषवेदशुजायुनोमगोत्राणि पुण्यम् // 26 // // इत्यष्टमोऽध्यायः॥ HONEINDIGENOTE GAGRICE CRECTCMD-ROJEWeeserever

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