Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company

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Page 24
________________ प्रकर॥ NEPCHOGHTC StendedIROICROPSCIENDJHEREIGNICANDIDS. विष्ववर्षमिवोपरक्षितितले दानाहदर्चातपः,-स्वाध्यायाध्ययनादि निष्फलमनुष्ठानं विना नावनाम् // // सर्व झीप्सति पुण्यमीप्सति दयां धित्सत्यघं मित्सति, क्रोधं दित्सति दानशीलतपसां साफव्यमादित्सति / कल्याणोपचयं चिकीर्षति नवांभोधेस्तटं लिप्सते, मुक्तिस्त्री परिरिप्सते यदि जनस्तद्भावयेद्भावनाम् / / // पृथ्वीवृत्तम् // विवेकवनसारणी प्रशमशर्मसंजीवनी, भवार्णवमहातरी मदनदावमेघावलीम् / चलाकमृगवागुरां गुरुकपायशैलाशनि, विमुक्तिपथवेसरी भजत नावनां किं परैः // 7 // // शिखरिणीवृत्तम् // घुनं दत्तं वित्तं जिनवचनमभ्यस्तमखिलं, क्रियाकां च रचितमवनौ मुप्तमसकृत् / तपस्तीनं तप्तं चरणमपि चीर्ण चिरतरं, न चेञ्चिते भावस्तुषवपनवत्सर्वमफलम् // 7 // // हरिणीवृत्तम् // यदशुजरजःपाथो दृतेन्जियहिरदांकुशं, कुशलकुसुमोद्यानं माद्यन्मनःकपिशृंखला / विरतिरमणीलीलावेश्म स्मरज्वरलेषजं, शिवपथरथस्तबैराग्यं विमृश्य जवानयः // ए // NOTEIGHerGseJaaelaene-TO-ASADHOTSeMeTSherapreserente

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