Book Title: Prakaran Sangraha
Author(s): Jaina Publishing Company
Publisher: Jaina Publishing Company
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________________ // सिन्दूरप्रकर। // 11 // WEIGENERBTCHCHOJ.SEECTCHETCercededETE-Grade-40/4% // शिखरिणीवृत्तम् // त्रिसन्ध्यं देवाची विरचय चयं प्रापय यशः, श्रियः पात्रे वापं जनय नयमार्ग नय मनः / स्मरक्रोधाद्यारीन् दलय कनय प्राणिषु दयां, जिनोक्तं सिधान्तं शृणु वृणु जवान्मुक्तिकममाम् // // ॥शार्दूलविक्रीमितम् // कृत्वाऽर्हत्पदपूजनं यतिजनं नत्वा विदित्वाऽऽगम, हित्वा संगमधर्मकर्मउधियां पात्रेषु दत्वा धनम् / गत्वा पध्धतिमुत्तमक्रमजुषां जित्वान्तरारित्रज, स्मृत्वा पञ्चनमस्कियां कुरु करक्रोमस्थमिष्टं सुखम् ॥ए।। // हरिणीवृत्तम् // प्रसरतित्यथा कीर्तिर्दिक्व पाकरसोदरा,-ज्युदयजननी याति स्फातिं यथा गुणसंततिः। .. कन्नयति यथा वृधि धर्मः कुकर्महतितमः, कुशलसुनने न्याचे कार्य तथा पथि वर्तनम् // ए६ // // शिखरिणीवृत्तम् // करे श्लाघ्यस्त्यागः शिरसि गुरुपादप्रणमनं, मुखे सत्या वाणी श्रुतमधिगतं च श्रवणयोः / हृदि स्वच्छा वृत्तिर्विजयि नुजयोः पौरुषमहो, विनाऽप्यैश्वर्येण प्रकृतिमहतां मंझनमिदम् / / ए७॥

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