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(मेरुशिखर न्हवरावे हो सुरपति मेरुशिखर नवरावे. ए. राग . ) संवरभावना भावो दो खातम ! संवर भावना भावो. महावीर जिनवर वंदी पूजो-, महावीरसम निज भावो;
आतम पूरण शुद्धमहावीर-, आपोआप सुहावो हो. मिथ्यात्व अविरति योग कषायने-, निज उपयोगे दावो;
आतमना उपयोगे क्षण क्षण, रहेतुं निश्चय लावोहो. - आतम !! संवरना सत्तावन भेदो-, आशवयोग हठावो; समितिगुप्तिपरिषहयतिधर्मने, भावना चरणे सुहावो हो. आतम ! भावना बार ने चार ने भावो -
आतममां लय लावो; समकित पूर्वक संवरकरणी -, करीने मुक्ति पावो हो. तमना उपयोगे समपणं-, साक्षीनावे सुहावो;
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यानम० १
संवर० - १
संवर०-३
आतम० ४