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१३० जघन्य एक समय कथ्यु-कोइक जीवने जाण; छासठ सागर अधिक छे,-गुरु ठिइ अवधिज्ञान. ४ (सांभळशो मुनि संयमरागे उपशमणि चढियारे. ए राग.)
जिनवर महावीर पूनुं वन्दु, प्रभुरूप उपयोग धारोरे; अवधिज्ञानस्वरूप प्रकाश्यु, लगनी लागी प्रजु त्हारीरे. जिनवर १ अनुगामी अवधि लोचनवत्, ज्यां त्यां साथे जातुंरे अननुगामी स्थिरदीपकवत्-, अन्यत्र साथी न थातुरे. जिनवर० २ वर्धमान गुण वृद्धि पामे, वर्धमान ते जाणोरे, अवर्धमान पूरव अधोघटतुं, पडतुं प्रतिपाती मानोरे. जिनवर०३ अप्रतिपाती प्रगट्यं न जातुं, लोकावधिनी उपरेरे, केवलज्ञान अनंतर थावेप्रगटे शुद्धातम समरेरे. जिनवर०४ वीरपसाये शिव राजर्षि, विभंगदोषने टाळेरे;
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