Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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५४४ शुद्धरूप वरनारां. ॥ द्रव्यथी स्थावरतीर्थ विमलगिरि, नावथी आतम पोते; असंख्यप्रदेशी बातम गिरिवर, थापोआपने गोते. धन्य० ॥ १ ॥ निमित्त विमलाचलतीरथथी, आत्म विमलांगेरिशुद्धि; का. रणथी छे कार्यनी सिद्धि, लमकितीनी बुद्धि. धन्य ॥ २ ॥ ऐंशीयोजन पहेला आरे, सित्तेर साठ पचास; बारयोजनने सातहाथनो, अनुक्रमे आरे खास. धन्य० ॥ ३ ॥ भरते प्रथमोद्धार को शुभ, दंडवीर्ये कों बीजो; शानेन्द्रे त्रीजो चोथो, माहेन्द्रे मन रीझो. धन्यम् ॥ ४ ॥ पांचमो पांचमा इन्द्रे चमरे, सातमो सगरे कीधो; आठमो व्यंतरश्न्द्रे कीधो, निजभव सफलो कीधो. धन्य० ॥ ५॥ नवमो चन्द्र यशाए कराव्यो, चन्द्रप्रभुना काले; दशमो चक्रायुधे कीधो, सिद्धाचलगिरिप्यारे. धन्य० ॥ ६ ॥ एकादशमो रामचन्द्रनो, पांडवे वारमो कीधो; चोथे आरे उझारो करी, आतमल्हावो लीधो; धन्य० ॥७॥ संवत् एकसोआठमां जावडे, वज्रस्वामीसहाये; सि. द्धाचल उद्धार कराव्यो, तेरमो पुण्य पसाये. धन्य। ॥८॥ बारसें तेरोत्तरमा मंत्री, बाहडे चौदमो भावे; तीर्थोद्धार कों जग जाणे, अनन्तधर्मना दावे.
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