Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१५.४५
धन्य० ॥ ९ ॥ समराशा ओशवाले संवत्-तेर एको तरसाले; तीर्थोद्धार कयों पन्नरमो, निज आतम अजूवाळे. धन्य० ॥ १० ॥ सोळमो पन्नरसें सत्याशिए, कर्माशाहे कराव्यो; विमलवाहननृप करशे बेल्लो, शत्रुंजय मन भाव्यो. धन्य० ॥ ११ ॥ सूक्ष्मोद्धारो थया घणेरा, थाशे घणा शुभ भावे; बुद्धिसागर तीर्थ निजातम, उपयोगे प्रगटाशे; धन्य० ॥ १२ ॥
काव्यं - सरस शान्तिः ॥ १ ॥
ॐ परम० जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥
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॥ अथ छडी पूजा ॥ शत्रुंजयसमगिरि नहिं, योग न समता समान; सिद्धाचल आदीश्वरा, नमो नमो भगवान् ॥ ( केसरीया थाशुं प्रीत कीनीरे साचा भावसुं ए राग. ) विमलाचल स्वामी, ऋषभजिनेश्वर नमुं नेहथी । तुज साची प्रीति, जूठी लागीरे हवे देहथी ॥ भव्य गरिने दुःखहर गिरि छे, सिद्धशेखर मणिकन्त; माल्यवंतने महाजस उज्ज्वल, पृथ्वीपीठ नमे
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