Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५५७ ॥३॥आरती करनारा नरनारी, आनंद पामो मोह निवारी; समकितदाता गुरु सुखकारी, जगचिंतामणि जग उपकारी. जय० ॥ ४॥ सेवा नक्ति घृत भयु भारी, कर्मयोग दीवेट डे सारी; बुद्धिसागर गुरु व्यवहारी, ताह्यरी जाउं सदा बलिहारी. जय० ॥५॥
॥ मंगल दीपक ॥ जगगुरु जगजय मंगल दीवो, चतुर गुरु जग चिरंजीवो. जग चन्द्र सूरज ग्रह फरता फेरा, गुरुना प्रकाशे रहे न अंधेरा. जग ॥१॥ वेदागम तुज महिमा गावे, गुरुकृपावडे मुक्ति थावे. जग० निश्चय भावथी मंगलरूपी, सदसदरूपी रूपारूपी. जग० ॥२॥ पंचभूत उपमा नहीं पावे, अलख कळा नहीं समजी जावे; बुद्धिसागरमंगलमाला, पामो ऋद्धिवृद्धिविशाला, जग ॥३॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 614 615 616 617 618 619 620