Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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५४२
॥ अथ चतुर्थी पूजा ॥ महानन्द कर्मसूदन गिरि, पुष्पदन्त कैलास; जयन्त आनन्द वन्दीए, श्रीपद छे विश्वास्य. ॥१॥ हस्तगिरि छे शाश्वतो, सेवे शिवसुख थाय; कारणे कारज नीपजे, शुद्धातम प्रगटाय. ॥२॥ शुभाशुभ तजी कल्पना, बातममां स्थिर थाय%; शुद्धोपयोगी आतमा, शत्रुजयथी सुहाय. ॥३॥
( खूने जिगरको पीते हे हम-ए राग.) विमलाचलथी मन मोह्युरे, म्हने गमे न बीजे क्यांय; ॥ मनमोहनमां सुख जोडेरे, मुज बातम सुखनी छांय.॥विमला॥समरंसिद्धाचलस्वामी,लळी लळी वन्दु गुणरामी; मुज जीवन अन्तर्यामीरे, अनुभवथी अनुभवाय. विमला ॥१॥ मनमोहन लाग्या मीठा, आदीश्वर नयने दीग; हवे रह्या न लखवा चीटारे, मन मस्तीथी मकलाय. विमला ॥२॥ सिध्या तुज प्रेमे अनंता, वळी सिद्धशे भविजन संता; थया सिद्ध बुद्ध भगवंतारे, ज्ञानीयो तुजने गाय. वि० ॥३॥ तुजसाथे लगनी लागी, मुजभवनी भावट भागी; मुज अंतर चेतना जागीरे, मुज मनडुं तुजने च्हाय. वि० ॥ ४॥ आनन्द ज्ञाने
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