Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५४०
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुभव आवे; रत्नखाण जडीबूटीनुं स्थान जे, ध्यान गुफा भली जावे. विमल० ॥ ३ ॥ दशकोटि श्रावकने जमाडे, सर्वतीर्थ करी आवे; तेथी अहीं एक मुनिदान देतां, लाज अनंतो पावे. विमल० ॥ ४ ॥ चारहत्यारा दुष्ट अधर्मी, वेश्यादिक पण जावे; जगिनीनोगी चन्द्रशेखरसम, पापो सघळां हठावे. विमल० ॥ ५ ॥ देवगुरुद्रव्यचोरो नास्तिक, श्रद्धा भक्तिप्रभावे; पश्चात्तापने तपजपसमथी, पलमां मुक्तिने पावे. विमल० ॥ ६ ॥ चेत्रीपुनमदिन यात्रा करंतां, उपयोगे थिर थावे; बुद्धिसागरमंगल पावे, सिद्धबुद्ध थे जावे. विमल० ॥ ७ ॥
काव्यं, सरसशान्ति ॥ १ ॥
ॐॐ
ह्रीं श्री परम० जलादिकं य० स्वाहा ||
॥ अथ तृतीया पूजा ॥
उत्सर्पिणी अवसर्पिणीमां, काल अनादि अनंत; अरिहंतादिक आविया, आवशे प्रणमो संत. ॥ १ ॥ अरिष्टनेमि प्रभुविना, आव्या प्रभु त्रेवीश; सोरठदेश सोहामणो, शत्रुंजय छे गिरीश ॥ २ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620