Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५३८
ज्ञानश्रद्धा वण जग, गर्भे रह्यां नरनार, विमलाचल दर्शन स्पर्शनथी, गर्भबाहिर नरनार जगत्मां० ॥ १ ॥ लाखवार नवकारने गणवा, स्नात्र करीए पंच, सात छठ बे अट्टम करतां, - रहे न कर्मनो रंच. जगत्मां० || २ || सिद्ध अचल आतम सिद्धाचल, असंख्य प्रदेशी उदार; शत्रुंजय आदि अंत रहित जे, भावतीर्थ आधार जगत्मां० ॥ ३ ॥ एकशत आठे टुंक भलेरी, मोटी एकवीश खास; । शत्रुंजय बाहुबली मरुदेवी, पुण्डरीक नमीए उल्लास. जगत्मां० ॥ ४ ॥ रैवतगिरि टुंक पांचमी वन्दु, सिद्धक्षेत्र शिवराज; छहरी पाळी यात्रा कर्याथी, प्रगटे शिवसाम्राज्य जगत्मां० ॥ ५ ॥ निमित्तने उपादान जे तीर्थबे, शत्रुंजय सुखकार: द्रव्यभावथी पूजंतां प्रभुप्राप्ति बे निर्धार. जगत्मां० ॥ ६ ॥ द्रव्य ते भावनो हेतु बेरे, कारणे कार्य सधाय; बुद्धिसागर तीर्थनोरे, अनन्तगुणो महिमाय जगत्मां० ॥ ७ ॥
काव्यम्
·
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सरसशान्तिसुधामृतकारकं, जननमृत्यु महोदधितारकम् । सकलकर्मविपाकनिवारकं, गिरिवरंविमलाचलकं स्तुवे ॥ ए काव्य प्रत्येक पूजा दीठ कहेवुं.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620