Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 583
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ महावीर तुं धणी, सर्वविश्वनो देव; निष्कामे दिलमां धरी, करुं ताह्यरी सेव. ॥ ३ ॥ __ (राग सारंग. प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. ए राग. ) प्रभु वीर!!! थयो तुज रागियो, आतमज्ञाने जागियो. प्रभु० इन्द्रादिकपद सुख नहीं इच्ढुं, तुज स्वरूपे लागियो; जवमुक्तिमां समवृत्ति थै, नहि त्यागी वैरागियो. प्रभु० ॥१॥ जडजगमा त्याग ग्रहणनी वृत्ति, टळतां थयो सौभागियो; बुद्धिसागर प्रभु महावीर, परमानंदफल चाखियो. प्रभु० ॥२॥ (विनतिपणे हुं विनवू, घेर आवोने ढोला. ए राग.) क्षयोपशम उपशम फले, प्रभु पूज्या स्वभावे; निमित्त साधन साधना, साधुं प्रीतिभावे. क्षयोपशम० ॥ ३ ॥ प्रभुपूजन फल ज्ञानने, यानंदरस लीg; प्रभुरीझे जगवीजमां, लेश चित्त न दीधुं. क्षयोपशम० ॥४॥ बाकी क्षायिकभावथी, पूजन फल रहियु; शुद्धातम तुज रंगमां, मुज मन गहगहियु. क्षयोपशम० ॥५॥ उत्पत्तिव्ययधौव्यथी, सर्व द्रव्य प्रमाण्यां; सम्यग्दृष्टियोगथी, तुज व. चनो जाण्यां. क्षयोपशम ॥६॥ देव गुरुने धर्मनी, For Private And Personal Use Only

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