Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 582
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ रस बलिहारी ॥ २ ॥ तुजरस पामे विषयरस छूटे, मनडुं वरे निर्धारी; सेवाभक्तिआतमज्ञाने, तुज रस मळतो भारी. प्रभु० ॥ ३ ॥ कोटि उपाय करे जन कोइ, सत्यानन्दनेमाटे; पण जडजगथी नानंद पाने, आनंद ठे तुजहाटे, प्रभु० ॥ ४ ॥ अमृत आस्वाद्या पछी त्रिषना, - पाननो प्रेम न जागे, एकवार तुज रसने पामे, मन न रहे जमरागे. प्रभु० ॥ ५ ॥ क्षयोपशमआतमरस पामी, क्षायिक आ नंदमाटे; सहेजे तुजमां मन रंगायुं, माल छे शिरने साटे. प्रभु० ॥ ६ ॥ आनंदरसनैवेद्ये पूर्जु, बाह्य नैवेद्यथी पूजुं; बुद्धिसागरमहावीर पामी, बीजे क्यांये न मुंझु. प्रभु० ॥ ७ ॥ ॐ० प० महावीर जिनेन्द्राय - नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ काष्टमी फलपूजा. प्रभु महावीरमां मन घरी, चालतां व्यवहार, आसक्ति व आतमा, प्रभुपद पामे सार ॥ १ ॥ बाह्यांतर अतिशयी प्रभु, महावीर जिन परखाय; श्रद्धा प्रीति स्वार्पणे, मुक्ति अंते थाय ॥ २ ॥ जिनवर For Private And Personal Use Only

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