Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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५२२
भंगविकल्पे, भ्यानदशा छे विचारी; बुद्धिसागर शुरु उपयोगे, महावीर जगजयकारी. महावीर ॥ ५॥
ॐ प० अक्षतं, य० स्वाहा ॥
सप्तमी नैवेद्यपूजा. बाह्यांतर तुजरूपने, जाणे भक्त गणाय; तुज पर श्रद्धा धारतां, मुज मन निर्मल थाय. ॥१॥ चौद जुवनमा आथड्यो, पडडुं न क्यांये चेन; पण तुजमा मन धारता, प्रगटी सुखनी घेन. ॥२॥ वर्धमान महावीर तुं, एक खरो आधार; तुजपर स्वार्पण सहु कयुः तुज शरणुं सुखकार. ॥ ३॥
(नाथ कैंसे गनको बंध छुडायो. ए राग.)
प्रजु !!! तुज आनंदरस बलिहारी, तीर्थकर अवतारी. प्रभु० अनंत भवमा ठाम न ठरियो, दुःख खो बहुभारी; बाहिरजडरसथी रंगायो, तृप्ति थई न लगारी. प्रभु० ॥१॥ परमातम तुज आनंद रसियो, यातां प्रगटी खुमारी; कोटि प्रयत्नो कोइ करे पण, उतरे नहिं ते उतारी. प्रभु तुज आनंद
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