Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५०६ ते लही, चारित्री शिवपाय. ॥४॥ सर्वनयोनुं सार , द्रव्यभावचारित्र; चारित्री निश्चय करे, सर्वकर्मने रिक्त. ॥ ५॥
( सांभळजो सखियां हमारी, ए चाल. ) नमुं नंदनमुनि जयकारी, धन्य मुनिवरनी बलिहारी ॥ करे मासखमण तप भारी, वीसस्थानकसेवना सारी; थया उत्कृष्टा अनगारीरे, भावे भावना शुद्ध विचारी; दउ विश्वजीवो उझारी, नमुं० ॥१॥ करुं शासनरसी नरनारी, दुःखदृष्टि टळे दुःखकारी; सर्वजीवविषे उजियारी, करुं भावना एवी सारीरे; प्रगटी शुभपरिणतिक्यारी, बांध्यु तीर्थकरपद भारी. नमुं० ॥२॥ प्रत्याख्यानीकषाय विरामे, दुष्टसंज्वलपरिणति वामे; धर्मध्यानावलंबनठामे, वधता उज्ज्वलपरिणामेरे; छठा गुणस्थानकना धारी, धन्य धन्य मुनि अनगारी. नमुं ॥ ३ ॥ रागद्वेषनी परिणति टाळे, समता सुखमांहि म्हाले; शुभअशुभबुद्धिने खाळे, निज आतममां मन वाळेरे; जेणे कंचन कामिनी टाळी, जडथी मूर्छा उतारी, नमुं० ॥ ४॥ क्षयोपशमी चारित्र पाळे, प्रगटया दोषो झट टाळे; षडावश्यके
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620