Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 553
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ आदियोगभेदो, पंचथी न्यारा न थातारे. महावीर ॥ ४॥ गुरुगमथी योग साधता नव्यो, अनंत शक्ति सुहाता; चिदानंद अनुनवने पाता, सिद्ध बुद्ध थै जातारे. महावीर ॥५॥ प्रभु महावीरपट्टपरंपरा,-श्वेतांबर साम्राज्ये; तपगच्छ जगगुरु हीरविजय सूरि, सूर्यनी पेठे छाजेरे. महावीर० ॥ ६॥ तसपट्ट सागरपट्टपरंपरा, नेमिसागरगुरुराया; तस शिष्य रविसागर गुरु रविसम, नारत सुजश छवायारे. महा वीर० ॥७॥ तस शिष्य सुखसागर समतावंत, मुनि गणमांहि सवाया; तस शिष्य बुद्धिसागरसूरिए, योगथकी प्रभु ध्यायारे. महावीर ॥ ८॥ संवत् ओगणिश अठयोत्तरना-आश्विनमां जयकारी; वदि पांचम बुधवार सवारे, पूजा रची सुखकारीरे, महावीर ॥ ९॥ जणशे गुणशेने सांजळशे, भावथकी आचरशे; नरनारी ते शिवपद वरशे, भवपाथोधि तरशेरे, महावीर० ॥ १० ॥ मेसाणासंघभक्तिथी कीg, चोमासु सुखकारी; बुद्धिसागरऋद्धिवृद्धि, कीर्ति लही नरनारीरे. महावीर ॥ ११ ॥ ॐ वृत्तिसंक्षययोगपूजार्थ जलंग य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only

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