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२०३ आ विधि सामान्य प्रकारे लखी छे. परंतु ज्यां नाडाछडी लखी छे त्यां उत्तम वस्त्रोनो उपयोग करे वा उत्तम उत्तम द्रव्यनो उपयोग शक्ति प्रमाणे करे तो ते उत्तम छे.
“ अथ जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत " अथ स्नात्रपूजा प्रारंभः
दुहा. सर्वातिशये शोभता, प्रभु महावीर जिनेश, शासन नायक जगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. ॥१॥ प्रभु स्नातनी नावना-, करतां शान्ति थाय; रोग शोक दूरे टले, स्नात्रपूजा महिमाय. ॥ २॥
कुसुमांजलि ढाळ.
ऋषभदेव पूजा. आठजाति कलशे न्हवरावे, इन्द्रो मनमा आनन्द पावे; प्रजु पूजा समकित प्रगटावे, प्रभु जाणी प्रभुने दिल लावे; कुसुमांजलि यी ऋषभ पूजीजे, ग्रही प्रभुगुण मन रीझोजे. ॥१॥
_ (फूल चढावबु.)
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