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बंधातो; बाह्य परिग्रह तेने करे शु? जे नहीं पुद्गले रातो हो. मुनिवर० ॥ ५॥ ममतावण नहीं कर्मबंध बे, ममतात्यागे त्यागी; जडनी ममतात्यागी सु. ज्ञाने, थाशो आतमरागी हो. मुनिवर ॥ ६ ॥ यावत् मूर्छा अंतर तावत् , कोइ न मुक्ति पामे; मूळवण मणि पर्वत उपर, बेठो उरे शिव ठामे हो. मुनिवरण ॥७॥ परिग्रहत्यागी मुनिवरसेवा, नक्ति करो बहुभाव; क्षण एक साधुनी संगत करता, निश्चय मुक्ति थाव हो. मुनिवर ॥८॥ अणुसम गृहीने मेरु सरीखा, मुनिवर मोटा जाणो; संतोष नहीं कोनी परवा, आनंद जोगी मानो हो. मुनिवरण ॥९॥ निश्चयने व्यवहारथी त्यागी, सेवो पूजो घ्यावो; बुद्धिसागर शुद्धातमपद, पूर्णानंदी पावो हो. मुनिवर० ॥ १० ॥ ॐ0-परमा अकिंचनधर्म साभाय जलं० यजामहे स्वाहा.
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