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श्रातमधर्म जणाव नेरे,
मोहराज्य दूर कीध; विश्वमां शांति प्रसारीनेरे
अरिहंतपदने लोध हो जिनजी; महावीर० ३
षड्द्रव्यं नवतत्त्व कथ्यारे,
केवलज्ञाने सत्य; संघ चतुर्विध थापीयोरे,
समजाव्यां धर्म कृत्य हो जिनजी, महावीर० ४ श्रेणिककोणिक नरपतिरे,
प्रसन्नचन्द्र भूपाल; दशार्ण उदायन भलारे,
कीधा धर्मी दयाल हो जिनजो; महावीर० ५ चंडत आदि घणारे,
राजा राजकुमार;
प्रधान क्षत्रिय शेठियारे,
ब्राह्मणादि परिवार हो जिनजी; महावीर० ६ सर्व खंड दयामय कर्यारे,
कीधो विश्वोद्धार; बुद्धिसागर धर्मनेरे,
प्रगटाव्यो सुखकार हो जिनजो; महावीर० ७
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