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पदुमावदी उदअणस्स दिण्णा
(भास संस्कृत नाटककारों के कुल का आद्य पुरुष है इसलिए कालदृष्टि से अनपूजा का मान उसको दिया जाता है । भास का समय कौन सा है इस बारे में तीव्र मतभेद है। सब अंतर्गत और बहिर्गत आधारोंसे वह भगवान महावीर और भगवान गौतमबुद्ध इन द्रष्टाओं के पश्चात् लेकिन शूद्रक-कालिदास के पूर्व के समय में हो गया होगा। भास नाटकचक्र में तेरह नाटक और 'यज्ञफलम्' यह नव उपलब्ध नाटक भास के नाम पर चलते हैं। उसने 'दूतवाक्यम्' 'उरूभंग' आदि एकांकी नाटक प्रारंभी अवस्था में तथा 'प्रतिमा'. 'स्वप्नवासवदत्तम्', आदि प्रौढ नाटक पश्चात् काल में लिखे होंगे । सब दृष्टि से उत्कृष्ट स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक ने भास को चिरंजीवत्व प्रदान किया है। यहाँ वत्सराज उपयनराजा की प्रिय सम्राज्ञी वासवदत्ता अज्ञातावस्था में थी, तब उसी के सामने पद्मावती राजकन्या का विवाह राजा उदयन से करने की वार्ता उसे मिलती है। यह मार्मिक प्रसंग भास ने अत्यंत कौशल्य से चित्रित किया है । इस पाठ की भाषा शौरसेनी है।
___ संस्कृत नाटककारांच्या कुलाचा आद्यपुरुष म्हणून कालद्रष्टयाचा अग्रपूजेचा मान भासाकडे जातो भासाच्या कालासंबंधी तीव्र मतभेद आहेत
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