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कप्पूरमंजरी सिंगारो
( यायावर कुल में कविराज राजशेखर ई. स. ८८४ से ९६० तक की कालावधि में हो गया । वह महेंद्रपालराजा के आश्रय में था । वह सब भाषा में चतुर था। उसने काव्य, नाट्य, शास्त्र का गहरा अध्ययन किया । चाहुआण कुल को अवन्ती सुंदरी उसकी पत्नी थी । उसने ६ प्रबंध ( अमुपलब्ध ) 'बालरामायण; 'बालभारत' ( या प्रचंड पांडव ) 'विद्धशालभंजिका' नाटक, 'कर्पूरमंजरी' प्राकृत सट्टक तथा काव्यमीमांसा' यह काव्यशास्त्र पर ग्रंथ, ऐसी विपुल ग्रंथरचना की। उसका कर्पूरमंजरी सट्टक सामने रखकर ही नयचंद्र ने रंभा मंजरी, रुद्रदास ने चंद्रलेखा, मार्कंडेय ने विलासवती विश्वेश्वर ने शृंगारमंजरी और घनश्याम ने आनंद सुंदरी सट्टकों की रचना की । यहाँ दूसरी जवनिका में विचक्षणा दासी नायिका कर्पूरमंजरी का विरहाकुल प्रेममत्र राजा को देती है । तब राजा उसे पूछता है, विभ्रमलेखा रानी ने कर्पूरमंजरी को अत:पुर मे लेने के बाद उसके बारे में क्या किया ? तब विलक्षणा कर्पूरमंजरी का साजशृंगार कैसा किया यह कहती हैं और राजा रसिकता से उस पर मोहक कल्पना करता है । यहाँ कविराज राजशेखर का कल्पनाविलास नजर में आता है । इसकी भाषा महाराष्ट्री हैं ।
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