________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(८०)
पओज, पउंज-(प्र+युज्) प्रवृत्त या प्रेरणा करना (प्रवृत्त करणे ) सवहसाविया-(शपथ शापिता) सौगन्धपूर्वक (शपथ घालून) दिसाजत्ता-(दिशायात्रा) देशाटन (प्रवास) सारक्ख-(सं-- रक्ष्) अच्छी तरह रक्षण करना (चांगल्यारीतीने सांभाळणे । पवत्तिणि-(प्रवर्तिनी) प्रमुख साध्वी अनाण, अन्नाण- अज्ञान) अज्ञान, अजाणता अज्जा-(आर्या) साध्वी असंकिय-(अशङ्कित ) शंकारहित अभिक्ख-(अभीक्षण) बारबार (पुनः पुन्हा) परियंद-(परि+वन्द) वन्दन या स्तुति करना (वंदन किंवा स्तुती करणे) पित्तिज, पित्तिय-(पितृव्य) पिता का भाई, चाचा ( काका ) उदाहु-(उताहो) अथवा विणोयणत्थं-(विनोदनार्थम् ) कौतुक करने के लिए (कौतुक करण्याकरिता) संवेग- संवेग) संसार से विरक्ति और धर्म पर श्रद्धा ( संसारापासून
विरक्ती आणि धर्माविषयी श्रद्धा) पत्थ-पथ्य) हितकारक तुरियं-(त्वरित) जल्दी (लगेच) तवोवहाण-(तपोषधान) तपाचरण विगि?-(व्युत्कृष्ट) उत्कृष्ट खब-(क्षपथ्) नाश करना, क्षय करना (क्षय करणे ) साणुक्कोस-(सानुक्रोश) दयालु (दयाळू)
For Private And Personal Use Only