Book Title: Payaya Kusumavali
Author(s): Madhav S Randive
Publisher: Prakrit Bhasha Prachar Samiti
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* पाययकुसुमावली
एस नमुक्कारो सरणं संसारसमरपडियाणं । कारणमसंखदुक्खक्खयस्स हेऊ सिवपहस्स ।।५।। कल्लाणकप्पतरुणो अवज्झवीयं पयंडमायंडो। भवृहिमगिरिसिहराणं पक्खिपहू पावभुयंगाणं ।।६॥
( वृद्धनमस्कारफल ) वाहिजलजलणतक्करहरिकरिसंगामविसहरभयाइं । नासंति तक्खणेणं नवकारपहाणमंतेणं ।।७ । न य तस्स किंचि पहवइ डाइणिवेयालरक्खमारिभयं । नवकारपहावेणं नासंति य सयलदुरियाइं ॥८॥ हिययगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निच्च । कम्मट्ठगंठिदोघट्टघट्टयं ताण परिणटुं।९।। (करकंडुचरियं) जिणसासणस्स सारो चउदसपुब्बाण जो समुद्धारो। जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ ॥१०॥
(लघुनमस्कारफल) नवकारओ अन्नो सारो मंतो न अस्थि तियलोए। तम्हा हु अणुदिणं चिय पढियब्बो परमभतीए ।।११।।
- (श्राद्धदिनकृत्यसूत्रम्) भोयणसमए सयणे विबोहणे पवेसणे भए वसणे । पंचणमुक्कारं खलु सुमरिज्जा सव्वकालं पि ॥१२।।
(उपदेशतरंगिणी)
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