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पारित अयोध्याकाण्ड
इक्कीसवीं सन्धि विभीपणने सागरघुद्धि ( भट्टारक ) से पूछा कि वताइए विजयश्रीको माननेवाले दशाननकी जय, जीवन, राज्य और दशा कितने समय तक अचल रहेगी?
[१] कामके वापोंका निवारण करनेवाले भट्टारक सागरबुद्धि कहते हैं-"सुनो, अयोध्यामें प्रधान रघुवंशका राजा दशरथ है । उसके धनुर्धारी बलदेव और वासुदेव धुरन्धर पुत्र होंगे। उनके द्वारा राजा जनककी कन्याके कारण महारणमें राक्षस मारा जायेगा।" इससे विभीषण एकदम इस प्रकार भड़क उठा, मानो घीके घड़ोंके द्वारा आग सींच दी गयी हो। "जबतक लंकारूपी लता नहीं सूखती, जबतक दशानन तक मृत्यु नहीं पहुँचती, तबतक मैं भयसे भयंकर जनक और दशरथ राजाओंके सिर तोड़ देता हूँ।" तब उसके उन वचनोंको सुनकर कलहकारी नारद--बधाई देने आया ( और बोला) कि आज विभीषण तुम्हारे ऊपर आयेगा और तुम दोनोंके सिर तोड़ेगा।" अपनी लंपमयी मूर्तियाँ स्थापित करवाकर दशरथ और जनक यहाँसे निकल गये । विद्याधरों के द्वारा आक्रमण कर परिजनों (अनुचरों) के सिर ले जाये गये ॥१-१०॥
[२] दशरथ और जनक दोनों वहाँ गये कि जहाँ कौतुकमंगल नगरचर था। जहाँ सूर्यकान्तमणियोंकी आगसे राधा