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ये तीन गण-प्रकाश (थिरता), सक्रियता और निष्कियता-इनकी चार अवस्थाएं हैं. निश्चित अनिश्चित सांकेतिक और अव्यक्ता
इन तीनों गुणों की चार अवस्थाएं हैं। पहली को पतंजलि कहते हैं, निश्चित। तुम इसे पदार्थ कह
सकते हो; यह तुम्हारे आस-पास की सर्वाधिक निश्चित चीज है। फिर है अनिश्चित, तुम इसे मन कह सकते हो; वह भी वहां है, निरंतर तुम्हें उसकी अनुभूति होती है, फिर भी वह एक अनिश्चित तत्व है। तुम निश्चित नहीं कह सकते कि मन क्या है। तुम जानते हो उसे, तुम निरंतर जीते हो उसे, लेकिन तुम उसे परिभाषित नहीं कर सकते। पदार्थ को परिभाषित किया जा सकता है लेकिन मन को नहीं। और फिर है 'सांकेतिक'। अनिश्चित से भी ज्यादा सूक्ष्म है सांकेतिक : यह है आत्मा। तुम केवल संकेत दे सकते हो उसका। तुम यह भी नहीं कह सकते कि वह अपरिभाषित है। यह भी सूक्ष्म ढंग से उसे परिभाषित करना ही हुआ, क्योंकि यह बात भी एक परिभाषा हो जाती है। यह कहना कि कोई चीज अपरिभाषित है-तमने परोक्ष रूप से उसे परिभाषित कर ही दिया; तमने कछ कह ही दिया उसके बारे में। तो यही है अस्तित्व की सूक्ष्म पर्त जो आत्मा है, जो सांकेतिक है। और फिर इसके पार है सूक्ष्मतम, जो है 'अव्यक्त'-असांकेतिक-जो अनात्मा है।
तो पदार्थ, मन, आत्मा, अनात्मा-ये चार अवस्थाएं हैं इन तीन गुणों की।
यदि तुम गहन आलस्य में हो तो तुम पदार्थ की भांति छई हो। आलस्य से भरा आदमी करीब-करीब पदार्थ होता है, जड़ जीवन होता है उसका, तुम उसे जीवंत नहीं देखते। फिर है दूसरा गुण-मन। यदि रजस गुण बहुत ज्यादा हो, तो तुम मन से बहुत ज्यादा भर जाते हो। तब तुम बहुत ज्यादा सक्रिय होते हो-मन निरंतर सक्रिय रहता है, क्रिया से घिरा रहता है, निरंतर नई-नई व्यस्तताओं की खोज में रहता है।
एवरेस्ट की चोटी
वाले पहले आदमी एडमंड हिलेरी से किसी ने पूछा, 'क्यों? आखिर क्यों आपने इतना खतरा उठाया?' वह कहने लगा, 'क्योंकि एवरेस्ट मौजूद था, तो आदमी को चढ़ना ही था।' वहा कुछ है नहीं...। चांद पर क्यों जा रहा है आदमी? क्योंकि चांद है। कैसे तुम बच सकते हो उससे? तुम्हें जाना ही है। सक्रियता से भरा आदमी निरंतर काम की खोज में रहता है। वह बिना काम के नहीं रह सकता। यह उसकी समस्या है। बिना काम के वह नरक में होता है; काम में तल्लीन होकर वह भूल जाता है स्वयं को।
यदि तमस, अक्रिया बहुत हो, तो तुम पदार्थ की भांति हो जाते हो। यदि रजस बहुत हो तो तुम मन हो जाते हो. मन है सक्रियता। इसीलिए मन पागल हो जाता है। फिर यदि सत्व बहुत ज्यादा हो जाए तो तुम आत्मा हो जाते हो। लेकिन वह भी एक असंतुलन है। यदि ये तीनों ही संतुलन में हों तो फिर