Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 14
________________ छे' प्रस्तुत 'पाटण वत्यपरिपाटी' पण एज धीजी कोटिनोनिबन्ध छे. आटला विवेचन उपरथी समजायुं हशे के तीर्थ चैत्ययात्राओ अने नगर चैत्ययात्राओ करवानो रिवाज जैनोमां घणाज प्राचीन कालथी चाल्यो आवे छे. आ रिवाजोनी प्राची. नता ओच्छामां आच्छी बे हजार वर्षनी होवी जोइये एम पूर्व सूचवेल शास्त्रवाक्योथी सिद्ध थाय छे, अने ए उपरथी तीर्थमालास्तवना अने चैत्यपरिपाटीस्त वनो लखवानी रूढि पण घणी प्राचीन होत्री जोइये ए वात सहेजे समजी श. काय तेवी छे; छतां पण एटलं तो सखेद जणावू पडे छे के आ प्रवृत्तिनी प्राचीनताना प्रमाणमां तेना वर्णनग्रन्थो, तीथमालास्तवनो अने चैत्यपरिपाटी-स्तवनो तेटलां प्राचीन आजे मलतां नथी. दिने जालोरमां बनी हती, एना का नगा वा नगर्षिगाण आचार्य श्रीहीरविजयसूरिना शिष्य कुशलवर्धनगगिना शिष्य हता. १ स्व० आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीए संपादन करीने भावनगरनी श्रीयशोविजय जैन ग्रन्थमाला द्वारा 'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' नो प्रथम भाग बहार पाड्यो छे. जेमां जुदा जुदा कविओनी करेली चैत्यपरिवाडिओ, तीर्थमालाओ अने तीर्थस्तवनो मळीने २५ प्रबन्धी छे. ए सिवाय पग संख्याबंध तीर्थमालाओ अने चैत्यपरिवाडीओ जैन भंडारोमा अस्तित्व धरावे छे.

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