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श्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी ग्रंथमाला नं. २८
पाटण चैत्य-परिपाटी.
संपादक
मुनिराज श्रीकल्याणविजयजी.
..... प्रकाशकसेक्रेटरी जेशंगभाइ छोटालाल सुतरीआ. श्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी लुणसावाडा मोटी पोळ-अमदावाद
आवृत्ति पहेली]
वी. सं. २४५२
[आ. सं. ३०
- प्रत २०००
वि. सं. १९८२
मूल्य छ आना
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धी सूर्यप्रकाश प्रीन्टीमा प्रेशा शाळ-अमदावाद
पो मुगाई क्रीकमालले भी
शा. हीमतलाल वाडीलालनां धर्मपत्नी जासुद तरफथीं मेंट.
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नबर.
२,४,७,२६
भेट
११,१७,२५ १२,१३ १४,२१
ल
५
पुस्तकनुं नाम.
कीमत. नीतिदर्पण
० -४-० प्राणीपोकार
भेट सविनोद
०-१२-० स्नात्रपूजा
०-०-६ नवतत्त्व संक्षिप्तसार
०-२-० नर्मदासुंदरी कथा शोलवतो कथा तिथि तप माणिक्यमाळा गहुंली संग्रह श्रीनेमिनाथनी १०८ प्रकारीपूजा ०-२-० विविधपूजा संग्रह गिरनार गल्प हीरप्रश्न अष्टापद पूजा शुकराज कथा (सं.) धर्मदत्त कथा , धर्मविधि सिंदूरप्रकर , चैत्य परिपाटी यात्रा पाटण चैत्य परिपाटी हीरप्रश्नावली देशाटन
०-४-०. प्रश्नोत्तर पुष्पमाला
०-१४-०. प्राप्तिस्थानश्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी,
लुणसावाडा मोटी पोळ-अमदावाद...
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किंचिद् वक्तव्य.
सुज्ञ वाचक बंधुओ!
प्राचीन गूजराती भाषानुं परिशीलन करनार साहित्यप्रेमी इतिहासगवेषी सज़नोने परम आनंद थशे के २७ नक्षबोनी मालासमान अथवा साधुओना २७ गुणो जेवी २७ ग्रंथपुष्पोनी माला' समर्पण करू पछी आजे अम्हे 'पाटण चैत्यपरिपाटी' नामर्नु २८ मुं ग्रंथपुष्प आपना कर-कमलमां सादर मूकवा शक्तिमान् थया छीए.
गूजरातनी प्राचीन राजधानी अणहिल्लवाड पाटणमा रहेलां विक्रमना १७-१८मा सैकानां जिनचैत्यो-मंदिरोनी परिस्थितिनो परिचय करावनार आ 'पाटण चैत्य परिपाटिने अम्हे तेनी प्राचीन भाषामां विकृति कर्या विना प्रकाशित करवा बनतुं लक्ष्य आप्यु छे. छतां आ पुस्तकमां आपेली बे परिपाटियोमाथी वि.सं. १६४८मां पूर्णिमागच्छीय ललितप्रभसूरिए रचेली परिपाटिनी प्राचीनप्रति जेवी परिशिष्टमां मूकेली (वि.
१ ग्रंथोन लिस्ट प्रथम पेजमा आप्युं छे; लायब्रेरीना परिचय माटे सं. १९६६ थी सं. १९७५ सुधीनो रिपोर्ट वांची.
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सं. १७२९मां तपागच्छीय हर्षविजयजी रचित) परिपाटिनी प्राचीन शुद्ध प्रति न मळवाथी ते अंशमां तेम बनी शक्यं नथी एम अम्हारे आ स्थळे खिन्न अंतःकरणे जणावयु जोइए. वि. सं. १९५९मा प्रवर्तकजी श्री कांतिविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी पं. हीरालाले रचेली पाटणनां वर्तमान जिनालयोने सूचवती सं. जिनालयस्तुतिने परिशिष्टमां मूकी वर्तमान जिनमन्दिरोनुं सूचन करवा अम्हे बनतो प्रयास कर्यो छे.
साक्षररत्न मुनिराज श्रीकल्याणविजयजी महाराजे अतिपरिश्रम लइ विचक्षणताथी गवेषणापूर्वक लखेल प्रस्तावना अने परिपाटिसारथी आ ग्रंथ विशेष विभूषित-अधिक उपयोगी थइ शक्यो छे, ए वाचको स्वयं समजी शके तेम छे. अत एव अम्हारे ए संबंधमां विशेष वक्तव्य प्रकट करवान अवशिष्ट रहेतुं नथी,किंतु अम्हारी कृतज्ञता दर्शावया तेओश्रीनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानवानुं अम्हे समुचित समजीए छीए. ___ आ ग्रंथना संशोधनकार्यमां पूज्य मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजश्री तथा पंन्यासजी संप द्विजयजी महा. राजश्रीनी प्रेरणाथी मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजे तथा मुनिराज श्रीशंभुविजयजी महाराजे तथा पं. लालचन्द्र भगवानदास गांधीए करेली सहायताथी अम्हे
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अम्हारा कार्यमा सफल थया छीए - उपकृत थया छीए; ए प्रकट करवानी अम्हारी फरज विचारीए छीए.
अम्हारा आ ग्रंथप्रकाशन कार्यमां पाटणना झवेरी मणीलाल छगनलालनी धर्म पत्नि केसरबाई, सुरतना शा. अनोपचंद नगीनदास स्वनाम धन्य स्वर्गवासी लाला ठाकुरदासजी खानगाम डोगरां ( पंजाब ) वाले के सुपुत्र श्रीमान लाला प्रभदयालजी दुगड लाहोर ( पंजाब ) वालेने पोतानी लक्ष्मीनो सद्व्यय करी अम्हने प्रोत्साहित करवा साथै अन्य बनायो अनुकरणीय कर्तव्यमार्ग दर्शाव्यो के, तेमनो उपकार मानवानुं अम्हे आ स्थळे भूली शकता नथी.
आ ग्रंथमां मतिमंदताथी, प्रमादथी या दृष्टिदोषथी रही गयेली स्खलनाओ सज्जनो सुधारी वांचशे अने अम्हने सूचवा तस्दी लेशे तो पुनरावृत्ति - प्रसंगे साभार सुधारवा प्रयत्न थशे.
शासनदेवनी कृपाथी विशेष प्रगति करी साहित्यसेवापूर्वक अधिक शासन सेवा बजाववा अम्हे भाग्यशाली थइए एव हार्दिक भव्य भावना प्रकट करी अत्र विरमीशुं.
वीरसं. २४५२
पार्श्वमभु-जन्मतिथि,
प्रकाशक
ऑ. से. 'श्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी - अमदावाद.
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प्रस्तावना.
स्वभावथो ज भारतवर्षना प्राचीन विद्वानोर इतिहास लखवा तरफ थोडं लक्ष्य आपेलुं छे. अने जे कंइ लखायु हतुं तेनो पण घणो खरो भाग राज्यविप्लवोना दुःसमयमां नाश पामी गयो छे, मात्र व्याख्यानिक साहित्यमा उपयोगी थतो केटलोक जैन ऐतिहासिक साहित्यनो अंश व्याख्यानरसिक जन साधुओना प्रतापे बचत्रा पाम्यो छे; पण तेमां इतिहास करतां उपदेशतत्त्वने मुख्य स्थान आपेलु होवाथो तेवा चरित्र प्रबन्धादि ग्रन्थो पैकीना घणो भाग औपदेशिक साहित्य ज गणो शकाय, मात्र केटलाक रासाओ अने प्रबन्धो उपरांत शिलालेखो प्रशस्ति ओ चैत्यपरिवाडीओ तथा तीथमालाओज आधुनिक दृष्टिए प्राचीन तिहासिक साहित्यमां गणवा योग्य छे. ऐतिहासिक साहित्यमां चैत्यपरिवाडोओगें स्थान.
जो के चैत्यपरिवाडी वा तीर्थमालाओ तरफ घणा थोडा विद्वानोनुं लक्ष्य गयुं छे अने जैतिहासिक दृष्टिए तेनी खरी कीमत आंकनारा साक्षरो तो तेथी ये थोडी संख्यामां नीकलशे; एटलुं छनां पण इतिहासनी दृष्टिए चैत्यपरिवाडी ए घणुं कीमतो साहित्य छे, एना उंडाणमां रहेला तात्कालिक धार्मिक इतिहासनो प्रकाश, धर्मनी रुचि तथा प्रवृत्तिनु दर्शन अने गृहस्थोनी समृद्ध दशानुं चित्र इत्यादि अनेक
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इतिहासना कीमती अंशो चैत्य परिपाटिओना गर्भमांथी जन्मे छे के जेनी कींमत थाय तेम नथी. चैत्य परिवाडीओनो उत्पत्तिकाल.
चैत्य परिवाडीओ क्यारथी रचावा मांडी तेनो निश्चित निर्णय आपी शकाय तेम नथी. चैत्य परिवाडीओ, तीर्थमालाओ अथवा पवाज अर्थने जणावनारा रासाओ घणा जुना वखतथी लखाता आव्या छे एमां शक नथी, पण एवा भाषा साहित्यनी उत्पत्तिना प्रारंभकालनो निर्णय हजी अंधारामां छे, कारण के आ विषयमा आज पर्यन्त कोइ पण विद्वाने ऊहापोह तक कर्यो नी, छतां जैन साहित्यमा अवलोकनथी पटलं तो निश्चित कही शकाय के जैनोमां चैत्य वा तीर्थयात्राओ करवानो अने तेनां वर्णनो लखवानो रीवाज घणो ज प्राचीन छे. तीर्थयात्राओं करवानो रिवाज विक्रमनी पूर्वं चोथी सीमां प्रचलित हतो एम इतिहास जणावे छे, ज्यारे तेनां वर्णनो लखवानी शरुआत पण विक्रमनी पहेली वा बीजी सदी पछीनी तो न ज होइ शके; ए विषयनो विशेष खुलासो नीचेना विवेचनथी यह शकशे -
जैन साहित्यमा सर्वथी प्राचीन सूत्र आचारांगनी निर्युतिमां तात्कालिक केवलांक जैन तीर्थोनो नोंध अने तेने नमस्कार करवामां आग्यो छे.' निशीथ चूर्णिमां धर्मचक्र,
(6
१ अट्ठावय उज्जिते गगपर य धम्मचक्के य ।
पासरहावत्तनगं चमरुपायं च वन्दामि ॥
""
--" गजाग्रपदे - दशार्ग कूटवर्तिनि । तथा तक्षशिलायां धर्मवक्रे तथा
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देवनिर्मित स्तूप,जीवितस्वामिप्रतिमा, कल्याणभूमि आदि तीर्थोनी नोंध करवामां आवी छे.'
छेद सूत्रोना भाष्य अने टीकाकारो लखे छे के अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व दिवसोमां सर्व जैन देहरासरोनी वंदना करवी जोहये, भले ते चैत्य संघन होय के अमुक गच्छनी मालिकी, होय तो पण तेनी यात्रा करवी, वखत पहोंचतो होय तो सर्व ठेकाणे संपूर्ण चैत्यवंदन-विधि करवो जोइये अने वखत न पहोंचतो होय तो अक अक स्तुति वा नमः स्कार ज करवो पण गामना सर्व चैत्योनी यात्रा करवी.२
व्यवहार सूचना भाष्य अने चूर्णिमां लख्युं छे के अहिच्छवायां पार्श्वनाथस्य धरगेन्द्रमहिमास्थाने ।”
-आवारांगनियुक्ति पत्र ४१८। १ " उत्तरावहे धन्म वक, मधुराए देवणिम्मिओ थूभो, कोसलाए जियंतसामिपडिमा, तित्थंकराग वा जम्मभूमिओ ।
-निशीथंबूर्णि पत्र २४३-२ । २ निस्सकडमनिस्सकडे चेइर सव्वहिं थुई तिनि ।
वेलें व चेइआणि व नाउं इक्किक्किआ वा वि ॥
-भाष्य
३ अट्ठमी-वउद्दसीसुं चेइय सव्वाणि साहुणो सव्वे ।
वन्देयव्वा नियमा अवसेस-तिहीसु जहसत्तिं ॥ एएसु चेव अट्ठमीमादीसु चेइयाई साहुणो वा जे अण्णाए वसहीए ठिआ ते न वंदति मासलहु ।
-व्यवहारभाष्य अने चूर्णि.
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आठम चौदश आदि पर्व-तिथिदिनोमां गामनां सर्व देहराओमा रहेली जिनप्रतिमाओ अने पोताना तथा बीजा उपाश्रयोमा रहेला सर्व साधुओने पर्याय लघु साधुओओ वंदन करवू जोइये, जो न करे तो ते साधु प्रायश्चित्तनो भागी थाय.
___ महानिशोथ सूत्रमाथी .पण चैत्य तीर्थ अने तीर्थोमां भराता मेलाओनी सूचना मले छे.' आ सर्व जोतां अटलुं तो निश्चित छे के जैनोमां तीर्थयात्रा अने प्रतिमापूजानो रिवाज घणो ज जूनो पुराणो छे, तीर्थ तरीके प्रसिद्ध थयेल स्थानोर्मा भाविक जैनो घणा दूर दूरना देशो थकी संघो लेइ जता अने तीर्थाटन करी पो. तानी धार्मिक श्रद्धाने सफल करता, पोताना गाम नगरोनां चैत्योने ते हमेशां भेटता, चैत्यो अधिक वा समय आछो मलतां नगरनां सर्व चैत्योनी यात्रा नित्य न थती तो छेवटे आठम चउदश जेवा खास धार्मिक दिवसोमां तो पूर्वोक्त यात्रा अवश्य करता ज, कालान्तरे आ प्रवृत्तिमां पण मंदता न पेसी जाय अटला माटे श्रुतधर पूज्य आचार्यो नियम घडयो के आठम चउदशे तो सर्व चैत्योनो वंदना करवी ज, अने जो साधु के व्रती गृहस्थ आ नियम प्रमाणे न
, अहन्नया गोयमा ते साहुणो तं आयरियं भगति जहा णं जइ भयवं तुमं आणावेहि ता णं अम्हेहिं तित्थयत्तं करि(र)या चंदप्षहसामियं वंदि(द)या धम्मचकं गंतूणमागच्छामो ।
-महानिशीथ ५-४३५ ।
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वर्तशे तो ते दंडनो भागी थशे. आ प्रमाणे नगर चा गामनां सर्व चैत्योनी यात्रा ते ' चेइअपरिवो. डोजत्ता' (चैत्य परिपाटियात्रा) कहेवाती. अने मे प्रवृति विशेष प्रचलित थतां उतावलने लीधे ' यात्रा' शब्द निकलो जइने 'चैत्य परिपाटि' शब्द ज प्राथमिक मूल अर्थने जणाववामां रूढ थइ गयो. वखत जता चैत्यपरिपाटी-चैत्यपरिवाडी-चैत्यप्रवाडी- वैत्रप्रवाडी इ. . त्यादि अनेक प्रकारना 'चेइअपरिवाडीजत्ता' ना स्थाने संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश शब्दो रूढ थया जे आज पर्यन्त ते अर्थने जणावी रह्या छे.
उपरना विवेचनथी से वात स्पष्ट थइ के 'चैत्यपरि. घाडी' नाम अक प्रकारनी यात्रानुं छे, अने उपचारथी तेवी यात्रानुं वर्णन के विवेचन करनार प्रबन्ध वा स्तवनो पण 'चैत्यपरिवाडी' ना नामथी ओलखावा लाग्यां के जे बनाव साहित्यमार्गमां एक स्वाभाविक घटना छे. तीर्थमाला अने चैत्यपरिवाडियोनो वास्तविक भेद.
यद्यपि तीर्थमाला वा तीर्थमालास्तवनो अने चैत्यपरिवाडी वा चैत्यपरिवाडी स्तवनोमा सामान्य रीते भेद नथी गणवामां आवतो तथापि तेनां नाम अने लक्षणो तपासतां ते बन्ने प्रकारनी कृतिनो वास्तविक भेद खुल्लो जगाइ आवे छे.
तीर्थमाला स्तवनोनुं लक्षण ए होय छे के पोते भेटेलां वा सांभळेलां के शास्त्रोमां वर्णवेलां नामी नामी तीर्थीनां चैत्य वा प्रतिमाओनुं वर्णन, तेनो साचो वा कल्पित इतिहास तेनो महिमा अने ते संबंधी बीजी बाबतोतुं वर्णन
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करवा पूर्वक तेनी स्तुति वा प्रशंप्ता करवी. आचारांगनिः युक्ति अने निशीथचूर्णिमां थयेली तीर्थोनी नोंध ते आजकालनी तीर्थमालाओ अने तीर्थकल्पोर्नु मूल बीजक सम जवु जोइये.सिद्धसेनसूरिनु सकल तीथ स्तोत्र', महेन्द्रसूरिनुं तीर्थमालास्तवन,२ जिनप्रभसूरिनी शाश्वताशाश्वतचैत्यमाला,३ विविधतीर्थकल्प४ विगेरे संस्कृत प्राकृत अप.
५ आ संस्कृत स्तोत्र पाटगमा संघवीनी शेरीना ताडपत्रीना पुस्तक भंडारमा छे. एना कर्ता सिद्धसेन सूरि क्यारे थया तेनो निश्चय नथी, छतां संभव प्रमागे तेरमी सदीना पूर्वार्धमा थइ गयेला सिद्धसेन ज एना की होवा जोइये.
२ आ प्राकृत स्तवन पण तेरमी सदीमा ज बनेलं संभवे छे. महेन्द्रसूरि नामना बे आचार्य थया छे-१ ला पूर्णतल्लगच्छीय प्रसिद्ध आचार्य हेमचंद्रजीना शिष्य जे १२१४ मां विद्यमान हता. २ जा नाणकीयगच्छीय जे सं. १२२२ मां विद्यमान हता, आ स्तवनना कर्ता आ बेमांथी कया तेनो निश्चय थतो नथी.
३ आ चैत्यमाला अपभ्रंश भाषामां छे, एना की जिनप्रभसूरि जे १४ मी सदीमां थइ गया छे, जेमगे अनेक चरित्रो अने रासो अपभ्रंशमां लखेला छे, जेटली अपभ्रंशनी कविता पाटगना भंडारोमा एमनी मळे छे, तेटली बीजा कोइ पण कविनी नथी मळती.
४ संस्कृत अने प्राकृतमा बनेला आ तीर्थकल्पो प्रसिद्ध छे. एना कर्ता जिनप्रभसूरि खरतरगच्छनी लघुशाखामा थइ गया छे. तेमणे आ तीर्थकंल्पसंग्रह विक्रमनी १४ मी सदीना उत्तरार्धमा बनाव्यो छे.
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भ्रंश अने लोकभाषामां लखायेला उपर्युक्त लक्षणयाला स्तवनोनी कोटिना अनेक प्रबन्धो आजे दृष्टिगोचर थाय छे.
चैत्यपरिपाटी स्तवनोनुं लक्षण ए थया करें छे के कोइ पण गाम के नगरनां यात्राना समयमा क्रमवार आवतां देहरासरोनां नाम, ते ते वासोनां नाम, तेमा रहेली जिनप्रतिमाओनी संख्या विगेरे जणाधवा पूर्वक महिमा वर्णन करवू अने तेनी स्तुति करवी. विजयसेन. सूरिनो रेवंतगिरिरासो', हेमहंसगणिनी गिरिनारचैत्यपरिवाडी,२ सिद्वपुर चैत्य परिवाडी,३ नगागणिनी जा. लोरचैत्यपरिवाडी४ विगेरे संख्याबन्ध चैत्यपरिवाडिआ उपर जगावेल लक्षणवाली आजे विद्यमानता धरावे
१ आ रासो प्राचीन गूजराती भाषामा लखायेलो छे, एना कती विजयसेनसूरि नागेन्द्रगच्छमां प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपालना समयमां अर्थात् विक्रमनी तेरमी सदीना उत्तरार्धमां थइ गया छे. वस्तुपालना संघ साथे गिरनारनी यात्राये गया ते समये तेमगे आ रास बनाव्यो हतो.
२ हेमहंसगणि प्रसिद्ध आचार्य मुनिसुंदरसूरिना शिष्य हता, तेओ सोळमी सदीना प्रथम चरगमा विद्यमान हता, आरंभासध्धिवार्तिक, न्यायमञ्जूषा विगेरे अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थो एमगे बनाव्या छे. आ चैत्यपारेवाडी तेमगे क्यारे बनावी ते जगाव्यु नथी, पग सोळमी सदीनी शरुआतमा ज बनावी होवानो संभव छे. ___ ३ आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता के समयनो पत्तो लाग्यो नथी, परिवाडी जूनी होवानो संभव छे.
४ आ चैत्यपरिवाडी सं. १६५१ ना भाद्रवा वदि ३ ने
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छे' प्रस्तुत 'पाटण वत्यपरिपाटी' पण एज धीजी कोटिनोनिबन्ध छे.
आटला विवेचन उपरथी समजायुं हशे के तीर्थ चैत्ययात्राओ अने नगर चैत्ययात्राओ करवानो रिवाज जैनोमां घणाज प्राचीन कालथी चाल्यो आवे छे. आ रिवाजोनी प्राची. नता ओच्छामां आच्छी बे हजार वर्षनी होवी जोइये एम पूर्व सूचवेल शास्त्रवाक्योथी सिद्ध थाय छे, अने ए उपरथी तीर्थमालास्तवना अने चैत्यपरिपाटीस्त वनो लखवानी रूढि पण घणी प्राचीन होत्री जोइये ए वात सहेजे समजी श. काय तेवी छे; छतां पण एटलं तो सखेद जणावू पडे छे के आ प्रवृत्तिनी प्राचीनताना प्रमाणमां तेना वर्णनग्रन्थो, तीथमालास्तवनो अने चैत्यपरिपाटी-स्तवनो तेटलां प्राचीन आजे मलतां नथी.
दिने जालोरमां बनी हती, एना का नगा वा नगर्षिगाण आचार्य श्रीहीरविजयसूरिना शिष्य कुशलवर्धनगगिना शिष्य हता.
१ स्व० आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीए संपादन करीने भावनगरनी श्रीयशोविजय जैन ग्रन्थमाला द्वारा 'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' नो प्रथम भाग बहार पाड्यो छे. जेमां जुदा जुदा कविओनी करेली चैत्यपरिवाडिओ, तीर्थमालाओ अने तीर्थस्तवनो मळीने २५ प्रबन्धी छे. ए सिवाय पग संख्याबंध तीर्थमालाओ अने चैत्यपरिवाडीओ जैन भंडारोमा अस्तित्व धरावे छे.
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पाटण.
प्रस्तुत परिवाडो जेना नाम साथे बंधायेली छे, ते पाटण नगरनो आ स्थले संक्षेपमा परिचय आपवो उपयोगी गणाशे.
_ 'पाटण' ए गुजरातदेशनी राजधानी-हिन्दुस्थानना प्राचीन अने प्रसिद्ध शहेरोमांनुं एक छे, एनुं वास्तुस्थापन जैन मंत्रोथी थयुं हतुं, एनो वसावनार 'वनराज' नामनो चावडावंशनो एक बाहोश शूरवीर राजपुत्र हतो, ते नागे. न्द्रगच्छना जैन आचार्य शीलगुणसूरिनो परम भक्त जैन उपासक हतो'.
वनराज पोते, तेना राजकारभारियोनुं मंडल अ तेनी प्रजानो अधिक भाग जैनधर्मी होइ पाटण शहेर ए ते वखतमां गुजरातना जैनोना धार्मिक साम्राज्यनी राजधानी बनी
१ वनराजने बाल्यकालमा ज उक्त शीलगुणसूरिए आसरो दीधो हतो, तेथी कृतज्ञ प्रकृतिना वनराजे पाछळथी पोते राजा थतां जैनधर्मनी कीमती सेवा बजावी हती, एटलुं ज नहि बलके Pटम नामी जैन मंदिर बनावरावी पोतानी कीर्तिने विशेष अमर करी हती. वनराजनुं बनावेलु आ 'वनराजविहार' नामर्नु चैत्य सं. १३०१ मां विद्यमान हतुं ए वात नीचेना शिलालेख उपरथी जणाशेः
“संवत् १३०१ वर्षे वैशाख शुदि ९ शुक्रे पूर्वमण्डलिवास्तव्य मोढज्ञातीय नागेन्द्रा.........सुत श्रे० जाल्हणपुत्रेण श्रे० राजकुक्षि
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गयुं हतुं. जैनोमां चालता ते समयना सर्व गच्छ अने मतोनुं अस्तित्व पाटणमांजणाइ आवतुं हतुं.धर्मवीर अने युद्धवीर जै. नोनी व्यवस्था अने आबादीथी पाटण एक वखत पूरी जाहो. जलाली भोगवतुं थयु हतुं. विक्रम संवत् ८८२ ना वर्षमा पहेल प्रथम 'अणहिलवाड ' वा 'अणहिलपाटण' ए नामथी पाटण वस्युं अने दिवसे दिवसे उन्नति करतुं चावडावंशना राजाओमी राजधानी तरीके प्रसिद्ध थयुं.
चावडा वंशना कुल ७ सात राजाओए । राज्य कर्या बाद पाटणनी राज्य लगाम चौलुक्य वंशना राजाओना हाथमां गई, आ वखते पण पाटण पूरी जाहोजलालीमा हतुं,
समुद्भवेन ठ० आसाकेन संसारार............योपार्जितवित्तेन अस्मिन् महाराजश्रीवनराजविहारे निजकीर्तिवल्लीविस्तार.........विस्तारितः। तथा च ४० आसाकस्य मूर्तिरियं सुतठ० आरोसिंहेन कारिता प्रतिष्ठिता.........सम्बन्धे गच्छे पंचासरातीर्थे श्रीशीलगुणसूरिसंताने शिष्य श्री......देववन्द्रसूरिभिः ॥ मंगलं महाश्रीः ॥
(पाटणमा पंचासरापार्श्वनाथना मंदिरमा रहेली 'वनराज'नी मूर्ति पासेनी ४० आसाकनी मूर्त्तिनो शिलालेख )
. पाटगनी राजगादी उपर नीचेना आठ चावडावंशी राजाओ थया छे:
१ वनराज २ योगराज ३ रत्नादित्य ४ वेरिसिंह ५ क्षेमराज ६ चामुंडराज ७ राहड ८ सामंतसिंह ।
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एटलुज नहिं पण पाटणना चौलुक्य राजाओए आसपासना देशो जीती पोतानी राजसत्तानो विशेष वधारो करवा मांड्यो जे कुमारपाल सुधी चालु रह्यो,कुमारपाल जे चुस्त जैनधर्मी हतो, तेणे पोते पण अनेक लडाइओ करी उत्तर मारवाड, कोंकण विगेरे अनेक देशोना राजाओने जीतीने गुजरातना महाराजाधिराज तरीके पोतानी सत्ता सर्वोत्कृष्ट बनावी हती, परंतु गुजरातनी उन्नतिनी आ छेल्ली हद हती, ए पछीना गुजरातना राजाओए पोतानो सत्ता वधारी होय एम इतिहास जणावतो नथी. आ तो राज्यसत्तानी वात थइ पण गुजरातमां अने खास करीने पाटणमां जैनधर्मनी प्रबलता पण ओछी न हती, चावडावंशना तमाम राजाओ जैनधर्मना पालनारा नहिं तो उपासक तो अवश्य हता, मंत्रिमंडल अने बीजा राजकर्मचारियो पण प्रायः जैनो होइ प्रजानो अन्यधर्मी वर्ग पण जैनधर्मने पूज्य दृष्टिथी जोतो, आ स्थिति चौलुक्य पहेला भीम सुधी चालती रही, भीमना वखतमा तेना वीर दंडनायक विमल अने राजा वच्चे वैमनस्य उत्पन्न थतां पाटणनी जैन प्रजाने कंइक धक्को पहोंच्यो होय तो बनवा जोग छे. एम कहेवाय छे के दंडनायक विमलने विषे राजा भीमना मनमां कंडक विपरीत भाव उत्पन्न थयो, चतुर अने मानी विमलने राजाना मननी स्थितिनुं ज्ञान थतां दिलगीरी अने दयानुं पात्र न बनतां ते गुप्तपणे पाटणनो त्याग करी चाली निकल्यो, अने तेणे आबुना दक्षिण कटिभागमा बसेली चंद्रावती नगरीमा आवीने निवास कर्यो, चंद्रावतीनो
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प्रथमनो राजा' विमलना आगमनथी डरी जइ भागी जतां विमल त्यांनी राजा थइने रह्यो. २
राजानी नाराजगीथी जैन समाजनो मान्य पुरुष विमल पाटण छोडीने चाल्यो गयो, ए वात जाहेर थतां पाटणनो
१ आ राजानुं नाम क्यांइ जगाव्यु नथी, कोइ परमार वंशीय राजा हतो, धारनो धंधुक तो न होय ?
२ विमल चन्द्रावतीनो राजा थयानी हकीकत विमल प्रबन्धमा जणावेली छे.
३ कुमारपालना समकालीन हरिभद्रसूरि मन्त्रीश्वर पृथ्वीपालनी प्रार्थनाथी रचेल चन्द्रप्रभस्वामिचरित(प्रा.) नी प्रशस्तिमां जगावे छे के विमल दण्डनायक भीमदेव राजाना व वनथी सकल शत्रुना वैभवने ग्रहण करी प्रभुप्रसादथी प्राप्त थयेल वड्डावली ( चन्द्रावती ) विषयने भोगवतो हतो. जुओ ते उल्लेखः" सिरिभीमएव रज्जे नेढो त्ति महामई पढमो ॥ बीओ उ सरयससहरनिम्मलगुणरय गमंदिरमुदारं । निययप्पहापअरियतरणी विमलो त्ति दंडवई ॥ अह भीमएवनरवइवयगेण गहीयसयलरिउविहवो । वड्डावल्लीविसयं स पहुवलद्धं ति भुंजतो ॥"
-(वि. सं. १२२३ मां लखायेली पाटगना संघवीना पाडाना जैनभंडारनी ताडपत्र प्रति ). आ अभिप्रायने अनुसरता मलाधरी
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जैन संघ राजा उपर भारे गुस्से थयो,एटलुज नहिं,पण सेंकडो जैन कुटुंबो विमलनु अनुसरण करी पाटण छोडो चंद्रावतीमां जइने वस्यां.जो उपरनी हकीकत साचा इतिहासमांखपती होय तो कहेवू जोइये के पहेला भीमदेवना वखतमा पाटणनी जैन वसतिमां कंइक भंगाण पड्युं हशे ज, परंतु आ बनाव साचो होय तो पण तेनी विशेष स्थायी असर थइ जणाती नथी, कारण के ते पछीना चौलुक्य राजा कर्णदेव, सिद्धराज, कुमारपाल विगेरेना राज्यकालमां पण लगभग तमाम राज्य. कारभार जैन मंत्रिओना हाथमां ज हतो, एरलु ज नहिं पण सिद्धराज के जे शैवधर्मी हतो छतां जैनधर्म अने जैनध. मीओने घणु ज मान देनारो अने जैन विद्वानोने पूजनारो हतो ए उपरथी समजाय छे के पाटणमां जैनधर्मनी प्रवलता घणा लांबा काल सुधी टकी रही हती. कहेवाय छे के एक समये प्रसिद्ध आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिनुं पाटणमां आगमन थयु त्यारे १८०० अढारसो कोटिध्वज शेठिआओ
राजशेखरसूरि वि. सं. १४०५मां रवेला प्रबन्धकोषमांवस्तुपालप्रबन्धमां-प्राग्वाटवंशे श्रीविमलो दण्डनायकोऽभवत् । स चिरमर्बुदाधिपत्यमभुनक् गूर्जरेश्वरप्रसत्तेः' अर्थात् ‘गूर्जरेश्वर (भीमदेव) नी प्रसन्नताथी विमले लांबा समय सूधी आबू उपर आधिपत्य भोगव्युं हतुं.' एम जणावे छे.
आ उल्लेख जोतां विमलने भीमदेव साथे वैमनस्य थवाना वृतान्त माटे सन्देह राखवो पडे छे. -ला. भ. गांधी ]
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तेमना नगरप्रवेश महोत्सवमां एकठा थया हता. ' आ एकज दाखला उपरथी पाटणना जैनोनी संख्यानो अने तेमनी समृद्धिनो ख्याल आवी जशे. कुमारपाल पछी पाटणनी राज्यगादीए आवेला अजयपालना वखतथी पाटणना जैनोनी अने साथे ज राज्यनी अवनतिनो पायो नंखाणो. अजयपाले घणा खरा जुना जैन मंत्रिओने पदभ्रष्ट कर्या अने केटलाकोने भयंकर शिक्षाओ करी. खास करीने कुमारपालना मरजीदान मनुष्योने अज यपाले मारे बात आप्यो, २ कुमारपालनां पुण्यकार्योंनो तेणे बन्युं तेटलो नाश कर्धो, पण आवां अधम कामो घणा काल सुधी करवाने ते जन्म्यो न हतो, राज्याभिषेकने श्रीजे ज वर्षे अजयपालनु तेना एक नोकरना हाथे खून थयुं अने त्यार पछी धार्मिक विप्लव बंध थयो, राज्यकारभार पण पाछो नियमित थइ गयो पण सिद्धराज अने कुमारपाले जे गुजरातना राज्यनी हद वधारी चौलुक्य राजाओनी सार्वभौम सत्ता स्थापन करो हती, ते लांबो काल टकी शकी नहिं. जे कमथी पाटण अने तेना राजाओनी सत्ता दिवसे दिवसे वधी हतो ते ज क्रमथी घटवा लागी, अजयपालना वखतथी
9 आ हकीकत हिन्दी कुमारपाल चरितनी प्रस्तावनामां जोवी.
२ हेमवन्द्रसूरिना शिष्य रामवन्द्र, मंत्री कपर्दी आदि हेमचन्द्र ने कुमारपालना मानीता पुरुषोने अजयपाले केवी भयंकर शिक्षाओ करी हती ते प्रबन्ध चिन्तामणिमां चौलुक्य राजाओनो इतिहास जोवाथी जणाशे.
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पाटणना राज्यकारभारमाथी जैन गृहस्थोनो हाथ निकलवा लाग्यो हतो, प्रसिद्ध पोरवाल वीर जैन मंत्री वस्तुपाल अने तेजपालना समयमां थोडाक वखतने माटे गुजरातनी झांखी पडेली कीर्ति पाछी उज्ज्वल बनी हती. जो के अजयपालना बखतथी गुजरातनी राज्यसत्ता मंद थवा मांडी हती तो पण वाघेला चौलुक्य सारंगदेव पर्यन्त गुजरात देश अने तेना राजाओए पोतानुं महत्त्व ठोक ठीक टकावी राख्यु हतुं, पण छेल्ला राजा करणवाघेलाना समयमां पाटण अने गुजरातना उपर हमेशाने माटे पराधीनतानो दंड पड्यो. १ - वनराजथी उगेल, सिद्धराज अने कुमारपालथी उन्नतिनी छेल्लो हदे पहोंचेल पाटणनी कीर्तिवल्ली करण वाघेलाना वखतमा सदाकालने माटे करमाई गई.
आ प्रमाणे वनराज, भीमदेव, सिद्वराज, कुमारपाल जेथा युद्धवीरोना पराक्रमोथी, जांबक, चंपक, विमल, शांतु, .. पाटणनी राजगादी उपर चौलुक्य अने ए ज वंशनी चाघेला शाखाना राजाओ नीचेना क्रम प्रमाणे थया छे:-चौलुक्य राजाओ:-१ मूलराज (१) २ वामुंडराज ३ वल्लभराज ४ दुर्लभराज ५ भीमदेव (१) ६ कर्गदेव (१) ७ जयसिंहदेव (सिद्धराज) ८ कुमारपाल ९ अजयपाल १० मूलराज (२) ११ भीमदेव (२) १२ त्रिभुवनपाल ।
वाघेला राजाओ-१ धवल २ अर्णोराज ३ लवगप्रसाद ४ वीरधवल ५ वीसलदेव ६ अर्जुनदेव ७ सारंगदेव ८ कर्णदेव ।
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उदयन, बाहड, संपत्कर, वस्तुपाल, तेजपाल जेवा बाहोश मुसहोओनी कार्यकुशलताथी उन्नतिना शिखरे चढेलु पाटण -गुजरातनुं राज्य कर्णवाघेलानी स्त्रीलंपटता अने माधव अने केशव जेवा झेरीली प्रकृतिना नागर कारभारियोना पापे एकवेला स्वर्गीय नगर बनेलं पाटण संवत् १३५६ ना वर्षमा अलाउद्दीनना सेनापति मलिक काफुरना हाथे जमीनदोस्त. थयु, एक वेला जे स्थले हजारो कोटिध्वज श्रेष्ठियोनी हवेलीओ शोभी रही हती, ते प्राचीन पाटणना स्थानमा आजे एक बे कुआ वावडी के बे च्यार प्राचीन मकानोना खंडहरो' सिवाय जंगली झाड अने घास उगेला नजरे पडे छे, जे स्थान लाखो मनुष्योनी वसतिथी रळीयामणु हतुं ते आजे सियाळ अने वरु जेवां जंगली जानवरोनी लीलाभूमि बनी रघु छे !
नवू पाटण.
मुसलमानोना हाथे नष्ट भ्रष्ट थयेलु पाटण फरिथी क्यारे आबाद थयु तेनो चोकस समय क्यांह मलतो नथो.
१ प्राचीन पाटगना अवशेषो तरीके आजे 'राणकी वाव' अने 'दामोदर कुभो' ए बे मुख्य गगाय छे, एना संबंधमां लोकोमां कहेवत छे के-'राणकी वाव ने दामोदर कुओ, जोयो नहि ते जीवतो मूओ.' ए सिवाय एक मोटुं मकाननु खंडेर
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छता केटलाक बनावो उपरथी एम कही शकाय के वर्तमान पाटण विक्रम संवत्१३६०अने १३७९नी वच्चे वसेलु होवु जोइये पाटणनी जैन मंदिरावली'नी प्रस्तावनामां तेनो लेखके जणावेलु छे के-"अल्लाउद्दीनना बखत मां प्राचीन पाटणनो नाश थतां सं० १४२५ ना वर्षमां आ वर्तमान पाटण फरिथी वस्युं छे."
पण आमां जणावेली साल खरी होवामा शंका छे. संवत् १३५६ मां नाश पामेलु नगर बे पांच वर्षमा पार्छ न वसतां लगभग अर्धसदीथी पण अधिक समय पछी वसे ए वात साची मानवामां जग संदेह रहे छे. जो प्राचीन नगर सर्वथा नाश पामी गयुं हाय अने नवेसर वसवा जेवी स्थिति उभी थइ होय त्यारे तो ते तरत ज वसवू ज़ोइये, अने जो मुसलमानोना हाथे एटलुं बधुं नुकशान न थयु होय के जेथी फरिने शहेर नवं वसावq डे तो त्यार बाद साठ सित्तर वर्षमा ज एवं शुं कारण आत्री प.यु हशे के मुसलमानोना हाथे जोखमायेल पाटण मां ६० वर्ष पर्यन्त रहोने फरिथी न गरिकोने नवु पाटण बसाव, पड्युं होय ?
अमारा अनुमान प्रमाणे तो आधुनिक पाटण सं०१४२५ मां नहिं पण १३७० नी आसपासमा वसेल होवु जोइये, कारण के पाटण भंगना घखनथी पाट समां बनता जैन मंदिरो उंची चट्टान पर आवेलुं छे, लोको तेने ‘राजमहल' कहे छे. कीजी पग प्रचुरम निशानीओ त्यां सेकडो मले छ. ..... वि.सं. १३७१मां शत्रुजयतीर्थना उद्धारक संघपात दसल अने समरा साह पाटणमा वसता हता, एटले तेसमये पाटण हयात ज हतुं,
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-ला, भ, गांधी,
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अने प्रतिमानी प्रतिष्ठाओ एकदम बंध पडे छे अने ते सं. १३७९ ना वर्षमा पाछी शरु थती देखा दे छे अने ते पछीना वखतमां ते प्रवृत्ति दिवसे दिवसे वधती जती जणाय छे, संवत् १३७९ अने १३८१ नी सालमा खरतरगच्छ संबन्धी शान्तिनाथ विधिचैत्यमां जिनकुशलसूरिना हाथे अनेक जिनबिम्बो अने आचार्यमूर्तिनी प्रतिष्ठाओ थाय छे, आ शांतिनाथ विधिचैत्य आजे पण खराखोटडीना पाडामां सुधरेल दशामां विद्यमान छे. संवत् १४१७, १४२० अने १४२२ ना वर्षमां पण पाटणमा प्रतिष्ठाओ थयाना लेखो त्यांनी मूर्तिओ उपरथी मली आवे छे, तेथी आ वात निश्चित थाय छे के प्राचीन पाटणना भंग पछी संवत् १३७९ ना वर्ष पहेलाना कोइ पण वर्षमा आधुनिक पाटण वसी गयु होवू जोइये.
उपर प्रमाणे चौदमी सदीना छेल्ला चरणमा फरिथी वसेल नूतन पाटणे पण दिवसे दिवसे उन्नति करवा मांडी अने वखत जतां ते पोतानी प्राचीन कीर्तिने जालबी राखवाने योग्य थइ गयु, अल्लाउद्दीनना जुल्मथी त्रास पामेला, मुसलमानोना नामथो पण भडकता हिन्दुओनां हृदयो तुगलक फिरोजशाहनी सरदारीना वखतमां कंडक शांत पड्यां, मुसलमानोना भयनी शंकायो नवीन देहरासरो बनाववामां संकोचाता हिन्दुओ फिरोजशाहना वखतमां निर्भय थया अने फरिथी नवीन चैत्यो बनावधामा प्रवृत्त थया, आपणा आ पाटणमां पण आ वखतथी मांडीने ज नवां देहरां अने नवी प्रतिमाओ विशेष प्रमाण मां बनण लागी. जे प्रवृत्ति
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जैन मंदिरोना ना समृद्ध दशान प्रस्तुत
लगभग सत्तरमी सदीना छेडा पर्यन्त चालु रही, आ लगभग त्रणसो वर्ष जेटला लांबा गालामा प्रस्तुत नवीन पाउणमां सेकडो देहरां अने हजारो प्रतिमाओ बनी चुकी हती, लीलुं झाड प्रचण्ड पवनना झपाटाथी पडी जतां तेनाज मूलमाथी फूटेला फणगा कालान्तरे मूलवृक्षनुं रूप धारण करे छे, ते ज ते प्राचीन पाटण अलाउद्दीनना अन्यायनो भोग थह पडतां तेना ज सीमाप्रदेशमा नवं वसेलु पाटण कालान्तरे एक समृद्ध नगर बनी पोतानी पूर्व ख्यातिने ताजी राखबा समर्थ थयु. प्रस्तुन चैत्यपरिवाडी ते आ बीजा पाटणनी समृद्ध दशाना समयमां बनेली तात्कालिक जैन मंदिरोनी नोंध वा 'डीरेक्टरी' समान छे,
कर्ता अने समय-निर्देश. आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता कोण छे अने तेमणे आ परिवाडी क्यारे बनावी इत्यादि हकीकत तेमणे पोते ज समाप्तिलेखमां जणावा दोधी छे, जेनो सार आ प्रमाणे छ
'पूनमिया गच्छनी चन्द्र(प्रधान)शाखामां भुवनप्रभ. सूरि थया, तेमनी पाटे कमलप्रभसूरि अने कमलप्रभनी पाटे आचार्य श्रीपुण्यप्रभसूरि थया, पुण्यप्रभना पट्टधर विद्याप्रभसूरि थया, विद्याप्रभसूरिना' पट्टधर शिष्य श्रीललितप्रभ सूरि थया, ते ललितप्रभसूरिए विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ अने रविवारने दिवते अणहिल पाटणमां आ पाटणनी चैत्यपरिवाडी बनावी.'
१ सं. १६१७ ना कार्तिक सुदि ७ ने शुक्रवारने दिवसे पाटणमां उपाध्याय श्रीधर्मसागरजीने संवयहार करनार जुदा जुदा गच्छोना १२ आचार्योमा आ विद्याप्रभसूरि पग सामेल हता।
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उपरनी नोंध सिवाय परिवाडोकार ललितप्रभसूरिना संबन्धमा विशेष हकीकत जाणवामां आषी नथी. तेमनी कृति उपरथी तेओ सारा विद्वान् होवानो दावो करो शकता नथी, परंतु आ प्रस्तुत कृति तेमनी संग्रहशीलतानो सारो परिचय आपे छे, ग्रंथकार पोते पूनमगच्छना आचार्य होइ ढंढेरवाडामां रहेता हता, ' अने तेथी ज प्रस्तुत परि वाडीनी शरुआत तेमणे ढंढेरवाडाना चैत्योथी ज करेली जणाय छे, तेमना पछी लगभग ८० वर्षे बनेली बीजी पाटणचैत्य परिवाडीनी शरुआत पंवासराना चैत्योथी थाय छे, कारण तेन कर्ता हर्षविजय तपागच्छीय यति हता अने तपागच्छना यतियोनुं मुख्य आश्रयस्थान पंचासरामां हतुं. आ प्रमाणे जुदा जुदा कर्ताओनी परिवाडीओ जुदा जुदा स्थानोथी शरु थतां वासोना अनुक्रममां घणो घोंटालो थइ जाय छे, अने तेम थतां एकनी साथे बीजी चैत्य परिवाडीनुं मेलान करवामां केटली मुश्केलीओ नडे छे, तेनो ठीक ठीक अनुभव आ प्रस्तावनाना लेखकने थयो छे.
9 प्रस्तुत ललितप्रभसूरिए वि. सं. १६५४ मां प्रतिष्ठित पंचतीर्थी ( सम्भवनाथ बिम्बनी मुख्यतावाली ) धातुप्रतिमा चाणसमा गाममां जिनमन्दिरमां विद्यमान छे. ( जूओ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भा० १, १०१ )
ललितप्रभसूरिए वि. सं. १६५५ मां अणहिलपाटणमां ढंढेरवाडाना उपाश्रयमांज श्री बंद केवलिचरित ( रास) पण रच्यो छे. -ला. भ. गांधी.२ आजे पण ढंढेरावाडामां पूनमगच्छतो उपाश्रय मौजुद छे.
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परिवाडीनो परिचय. प्रस्तुत चैत्य परिवाडी कविता-साहित्य की दृष्टिए विशेष उपयोगी न होवा छतां पुरातत्वनी दृष्टिए धणी उपयोगी छ, परिवाडीकारे ते समयनां पाटणनां तमाम जैनमंदिरोनां नाम, तेमा रहेली प्रतिमाओनी संख्या, तेना बनावनारानां नाम, जे जे वासोमा जे जे चैत्यो आवेलां छे ते ते वासोनो नामनिर्देश इत्यादि हकीकतो जणाववानो जे महान् परिश्वम उठाव्यो छे ते आपणे माटे घणो उपयोगी निवड्यो छे, आजथी सवा त्रणसो वर्ष उपर पाटणमा केटलां देहरां हतां, ते सर्वमा केटली प्रतिमाओ हती, देहरा बनावनारा शेठिआओनां शां शां नामो हतां, ते वेलाना पाटणना भाविक जैन गृहस्थोमां धर्मश्रद्धा केवी होगी जोइये,साथे ज तेमनी पासे द्रव्य बल पण केरलं होवू जोइये इत्यादि अनेक वातीनां सावां अनुमानो करवानुं आ चेत्यपरिवाडी उप. रथी बनी शके तेम छे.
चैत्यपरिवाडी-यात्रानो साचे साचो ढंग लेखके आ परिवाडीमां गोठव्यो छे, जाणे के पोते संघनी साथे नग. रनी चैत्ययात्रा करवा निकल्या छे अने क्रमवार वच्चे आवतां तमाम देहरांओने वांदता जाय छे. संघ जे वासमा जाय छे ते वासतुं नाम पोते प्रथम सूचवे छे, पछी तेमां केटलां देहरां छे तेनी संख्या जणावे छे, पछी मूलनायकोनां नाम अने छल्ले तेमांनी प्रतिमाओनी संख्या, आ ढंग लेखके लगभग आखी परिवाडीमां जालवी राख्यो छे, पण
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प्रतिमाओनी संख्या जणाववामां जरा घोटालो करी दीधी छे, ते एवी रीते के केटलैक ठेकाणे तो पोते मूलनायकन नाम लखी " अवर प्रतिमा ” “ अवर जिनवर" इत्यादि उल्लेखोनी साथे विबोनी संख्या जणावे छे के जेनो अर्थ मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओनी संख्या जणावनारी थाय छे, ज्यारे घणे ठेकाणे "अवर" के "अन्य" कंइ पण शब्दप्रयोग कर्या वगर प्रतिमासंख्या लखी दीये छे तेथी तेवा स्थलोमां ए शंका रही जाय छे के आ संख्या मूलनायक सहितनी जाणवी के मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओनी ? आनो खुलासो मूलनायक सहित गणतां थतो नथी, तेम मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओनी संख्या गणतां पण थतो नथी,कारण के बेमांथो कोइ पण रीते गणतां आखेरी बिम्बसंख्याना सरवालो मलतो नथी. एथी ए वात सहेजे जणाइ आवे छे के ग्रन्थकारे जणावेली ते ते चैत्योनी प्रतिमासंख्या केटलेक ठेकाणे तो मूलनायक सहितनी छे अने केटलेक स्थले ते सिवायनी छे, पण सहितनी क्यां अने रहितनी क्यां तेनो खुलासो थवो अशक्य छे.
ग्रन्थकारे जेम प्रत्येक वासनां देहराओनी संख्या अने तेनी प्रतिमासंख्या जगावी छे, तेम आखा नगरनां सर्व देहराओनो आंकडो अने सर्व प्रतिमाओनी संख्यानो आं-- कडो पण तेमणे जणावी दीधा छे.
परिवाडीकार प्रतिमासंख्या जणावतां पहेलां देहराओने बे विभागमां वहेंची दिये छे, म्होटां जिनमंदिरोने
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पोते 'चैत्य' अने 'देहरां' कहे छे अने तेनी संख्या १०१ एकसो ने एक जणावे छे, छोटां वा घरमंदिरोने 'देहरासर' नामथी उल्लेखे छे. अने तेनी संख्या ९९ नवाणुं होवार्नु कहे छे, पहेला दर्जानां चैत्योनी प्रतिमासंख्या ५४९७ पांच हजार चारसो ने सत्तागुंनी जणावे छे, बीजा प्रकारनां जिनमंदिरो-घरमंदिरोनी कुल प्रतिमासंख्या २८६८ बे हजार आठसो ने अडसठ एटली जणावे छे.
एज प्रसंगे प्रतिमाओनी नोंध करतां परिवाडीकार लखे छे के पाटणमां १प्रतिमा विद्रुम-प्रवालानी छे, २ सी. पनी अने ३८ अडत्रीश रत्ननी प्रतिमाओ छे, ४ च्यार गौतम स्वामीनां बिंब छे अने ४च्यार चतुर्विशतिपट्टको छे.
आटलुं विवेचन कर्या बाद परिवाडीकार बन्ने प्रका. रनां चैत्योनी प्रतिमाओनी कुलसंख्यानो ८३९४ ए आंकडो जणाघे छे,पण पूर्व जणाव्या प्रमाणे अत्र पण संख्यानो सरवालो मलतो नथी, बन्ने प्रकारनां चैत्योनी प्रतिमाओनो
१ बीजा चैत्यपरिवाडीकारोए पण म्होटां मंदिर वा जिनप्रासादोने माटे देहरुं' अने छोटा घरमंदिरोने माटे ‘देरासर' शब्द वापर्यो छे जुओ-"देहरासर तिहां देहरा सरखं" ( हर्षविजयकृत पाटण चैत्यपरिवाडी ) " जिनजी पंचाणुने माझने श्रीजिनवरप्राप्ताद हो xxx देहरासर श्रवणे सुण्या पंच सया सुखकार हो” ( हर्षवि०पा०चै०परि०) "सूरतमाहे त्रण भूयरां देहरां दश श्रीकार दोय सय पणतीस छे देहरासर मनोहार ॥"(लाधाशाहकृत सूरतचैत्यपरिवाडी-प्राचीन तीर्थमालासंग्रह भा०१पृ०६७)
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सरवालो ५४९७+२८६८-८३६५ आठ हजार त्रणसो ने पांसठनो थाय छे, अने जो रत्नादिनी प्रतिमाओ जुदी गणीने तेनी ४१ ए संख्या आमां उमेरोए तो सरवालो ८४०६ ए आवे छे, पण परिवाडीकारे आपेल टोटल मलतुं नथी, एर्नु कारण तेमनी गफलत नहिं, पण तेमनी मानसिक अपेक्षा छे. एटले के आपेली छेली संख्या पूर्वोक्त बे संख्या मोनो मात्र सरपालो ज नहिं पण ते संख्यामां केटलीक परचुरण संख्या वधारीने जणावेली संख्या छे, पण आ अपेक्षा निब. न्धकारे शब्दद्वारा व्यक्त करी नथी.'
पाटण शहेरनी चैत्यपरिवाडी पूरी करीने तेने लगती ज पाटणनी आसपासनां न्हानां म्होटां लगभग १२ गामडाओनी चैत्यपरिवाडी पण आ साथे जोडी दीधी छे.
आ १२ बार गामोना चैत्योनी संख्या२५ अने प्रतिमासंख्या १२०७ जेटली थाय छे, आ संख्या पूर्वोक्त पाटणनी प्रतिमासंख्यामां जोडीने परिवाडीकारे आ प्रमाणे संख्या जणावेली छे-९५९८नव हजार पांचसो ने अठाणुं. आ संख्यामां पण ३ नो फरक आवे छे.
परिवाडीकारनी जणावेली पाटणनी बिंबसंख्याना ८३९४ ए आंकडो अने बहारगामनां चैत्योनी बिंबोनी सं. ख्यानो आंक जे १२०७ नो थाय छे; ए बेने भेगा करतां ८३९४+१२०७-९६०१ नव हजार छ सो ने एक थाय छे, ज्यारे परिवाडीकारे आपेली संख्या ९५९८ छे.
ए ज रीते आपणे प्रत्येक महोल्लाना चैत्योनी प्रतिमा
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आनी संख्या तारवीने तेनी जोड देतां जे संख्या आवे छे, तेनो साथे परिवाडीकारे जणावेली पाटणनी प्रतिमासंख्या मलती नथो. तेनु कारण पण लेखकनी संख्याप्रतिपादक पद्धतिर्नु अनिश्चितपणुंज होह शके,वली बे चैत्योनी प्रतिमा. संख्या परिवाडोसारे मुहल जणावी नथी, तेथी पण तेमनी संख्या आपणी तारवेली संख्या साथे नहिं मलती हाय तो बनवा जोग छे.
परिवाडीना परिशिष्टरूपे जणावेली १२ गामोनो चैत्यपरिबाडीमा रूपपुरनी चैत्यसंख्या ध्यान खेचनारी छे, तेमां कुले १० जिनमंदिर अने ३६७ जेटली प्रतिमा जणावी छे. रूपपुर पूर्व केवडे म्हॉटुं होवु जोइये ते वात आ वर्णन उपरथी जणाइ आवे छे. जे वेला रूपपुरनी ए दशा हती, ते वखते चाणसमामा मात्र एक मंदिर अने ३४ प्रतिमाओ हती. आजे रूपपुरमा मात्र एक मंदिर २९ प्रतिमा छे अने श्रावकोनां ३-४ घणच्यार घर छे, ज्यारे चाणसमामां ८-१० मंदिर जेवटुं विशाल चैत्य छे, अने अनेक प्रतिमाओ छे, जैनवसति पण घणी छे. एम लागे छे के रूपपुरनी वसति तूटवाथी ज चाणसमानी विशेष आबादी थइ हशे कालान्तरे शहेरनां गाम अने गामनां शहेर केवी रोते बने छ, तेनो आ प्रत्यक्ष पूरावो छ,
परिवाडीकारे कोइ ठेकाणे ए वातनो खुलासो नथी कों के पोते जे प्रतिमासंख्या जणावे छे ते केवल पाषाणमय प्रतिमाओनी छे के धातु, पाषाण अने रत्न विगेरे
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सर्व प्रकारनी प्रतिमाओनी ?, परंतु परिवाडीकारना आ मौननो खुलासा परिवाडीना परिशिष्टना एक उल्लेख उपरथी स्वयं थइ जाय छे - ' कुमरगिर' ना बीजा चैत्यनी संख्या जणावीने ते " पीतल पडिमा चारसे वली, छन्नुं उपरि मनहरु ।" आवो एक नवो उल्लेख करे छे, यद्यपि ए उल्लेखनी अर्थ पवो पण लेइ शकाय के 'चैत्यनी प्रतिमा - संख्या गणाव्या बाद आ पीतलमय प्रतिमाओनो संख्या गणाववाथी बीजे सर्व स्थले बतावेली सामान्य प्रतिमासंख्या पाषाणनी प्रतिमाओनी ज होवी जोइए, ' परंतु ग्रन्थकारना अभिप्रा यनो विचार करतां आ कल्पना टकी शकती नथी, ए वात खरी छे के ग्रन्थकारे कोइ ठेकाणे पीतलनो के धातुनी प्रतिमाओनो जुदो उल्लेख कर्यो नथी, मात्र आएक स्थले कर्यो छे अने ते पण जुदो, छतां ते संख्या तेमणे प्रतिमाओनी कुल संख्यामां सामेल करी छे, जो पाटणनां २०० बसो देहराओनी धातुमय प्रतिमाओने गणनामां क लोधी होय तो कुमरगिरना एक ज देहरानी पीतलनी प्रति माओने भेली गणवानुं कांइ कारण न हतुं. ए उपरथी खुल्लं समजाय छे के परिवाडीकारे दरेक चैत्यनी जे प्रतिमा संख्या बतावी छे, तेमां धातुनी प्रतिमाओ पण सामेल समजवानी छे, दरेक ठेकाणे तेनो जुदो उल्लेख न करवानुं कारण विस्तार थइ जवानो भय हतो, अने कुमर गिरमां जुदो उल्लेख करवानुं कारण धातुप्रतिमाओनी बहुलता बताववी एज होइ शके.
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किया वासमा केटलां देहरां अने केटली प्रतिमाओ छे, ते प्रत्येकनी तेम ज सर्वनी संख्या परिवाडीना सारमां. ते ते स्थले जणाधी दीधी छे. एटलं छतां पण वासोना. नामनी साथे चैत्य अने प्रतिमासंख्यान कोष्टक आ नीचे आपवामां आवे छे. एनी नीचे सं. १७२९ ना वर्षमा बनेली चैत्यपरिवाडीमां जगावेल वास, चैत्य अने बिंबनी संख्यान कोष्टक अने ते पछी वर्तमान समयना पाटणना वास अने चैत्यसंख्या जणावनाएं कोष्टक आपवामां आवशे, जे उपरथी सं. १६४८ मां पाटणनी शो दशा हती. १७२९ मां तेमां केटलो फेर पडयो अने वर्तमानमां पाटणना चैत्योनी केटली संख्या छे-ए सर्व जाणवालु घणुं सुगम थइ पडशे.
सं. १६४८ मां बनेली प्रस्तुत चैत्यपरिवाडीने अनुसार
. श्रीपाटण-चैत्य-प्रतिमा-कोष्ठक १
Pos
नं० वासनाम चै० प्र० नं० वासनाम १ ढंढेरवाडो ११ ५५६ ७ नागमढ १ ९ २ कोकानो पाडो ३ २६६ / ८ पंचासर ३ खेतरपालनो पाडो१ १६७ ९ उंची शेरी ४ जगुपारेखनो पाडो२ १५ | १० ओशवाल महोल्लो ३ ३१ ५ पहेली खारी वाव १ ४ | ११ पीपलानो पाडो १ ५ ६ बीजी खारी वाव १ १३ । १२ चिंतामणिनो पाडो ३ ९५
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नं. वासनाम चै० प्र० नं० वासनाम चै० प्र० १३ खराकाटडी ८३८४२७ सगरकुई १४ त्रांगडोआपाडो १ ३७५ २८ हेबतपुर १ १०५ १५ मणिहट्टिपाडो२ २ १८ २९ मोढेरनो पाडो १ ४ १६ मांका महेतानो |३० नारंगापाडो २ २७४ पाडो
१ २१ ३१ सोनारवाडो २ १५ १७ कुंभारीयापाडो २ ४२ ३२ फोफलीआवाडी ११ २९५ १८ तंबालीबाडो ६ ३५२ ३३ जोगीवाडो १९ खेजडानो पाडो १ ९ ३४ मफलीपुर २० त्रंबडापाडो १ ९० ३५ मालीवाडो १ २४ २१ वडी पोसालनो
३६ मांडणनो पाडो ३ ८९ उपाडो ५ ७५ | ३७ गदा वदानो पाडो ३ ९० २२ साहनो पाडो २ १५७ ३८ मल्लिनाथ नो पाडो १ १७६ २३ कंसारवाडो ५ ७६ ३९ भाणानो पाडो १ ९८ २४ भलावैद्यनो पाडा १ ३ ४. समुद्रफडीओ १ १९ २५ भंसातवाडो १ ३६ ४१ चोखावटीनो पाडो२ १८ २६ सहावाडो २६९७ | ४२ बलीयानो पाडो १ ११
१ 'खराकोटडी' नो अर्थ ' खरतरगच्छवालाओनी बेठक' अवो संभव छे, कारण के त्यां खरतरगच्छवालाओनो जत्थो हतो, आजे पण त्यांना रहेवासीयोमांना केटलाक पोताने खरतरगच्छीय तरीके ओलखावे छे.
२ आजे वास 'मणियाती पाडो' कहेवाय छे. ३ हालनो 'झवेरीवाडो' ए ज वडीपोसालनो पाडो छे.
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नं. वासनाम ४३ अबनी महेतानो
पाडो
7
२९
चै०
० प्र० नं. वा० ५८ दोशीवाडो
२
७
५९ शांतिनाथनो पाडो५ १२८
४४ कुसुंभीया पांडो ४ ६८ ६० कटकीआ वाडो २ ६९ ४५ नाकर मोनो पाडो
६१ आनावाडो
१ ३४
६२ सालवी वाडोत्रसेरीओ
६३ कुरसीवाडो
६४ कइआवाडो
६५ कल्हारवाडो
४ १९३
३ ३३ १ १२
४६ मालु संघवीनुं
स्थान ४७ लटकणनो पाडो
४८ भंडारीनो पाडो
४९ भाभानो पाडो ५० लींबडीनो पाडो
५१ करणशाहनो पाडो
९ २८०
५२ वांमणवाडो
८ ८३
3
१ २४१ ५२००
५३ खेतलब सही ५४ लटकणनो पाडो ५५ कुंपादोशीनो पाडोर ३० ५६ वीसावाडो
५७ सरही आवाडो
१ ५
४ १५७ ३ ४२
चै० प्र
१
६६ दणायगवाडो
६७ धांधुली पाडो ६८ ऊंचो पाडो
A
२ १६२
१ ७४
२ १९
१ ५५
१ ७०
१ ७१.
१
६९ सत्रागवाडो ७० पुन्नागवाडो ७१ गोल्हवाड
१ १०
३ १२५
४ १२२
४ २३९
७२ धोली परव ७३ गोदडनो पाडो ५ १.१ ७४ नाथाशाह तो पाडो ६ ३६९ १ २३ ७५ महेतानो पाडो २ २३
१ आ वासना बे वैत्योमांना एकनी प्रतिमा संख्या जगावी नथी. २ हालमा ए वास कनाशानो पाडो' कहेवाय छे.
८
३ आज काल ए स्थान खेतरवसही' ए नामथी प्रसिद्ध छे. ४ अहिंना 'शांतिनाथंना देहरामां केटली प्रतिमा हती ते
जायं नथी.
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म० वा. १ वाडीपुर . २ दोलतपुर ३ कुमरगिर' ४ वावडी ५ घडली ६ नगीनो'
परिविष्ट. चै० प्र० नं० . वा० १ २ ७ नयो नगीनो १ १ ८ कतपुरा २ ५८५ ९ रूपपुर५ १ १८ १० चाणसमा५ २ ४१ ११ कंबोह १ ७ | १२ मुंजपुर
चै० प्र० २ १२० २ ८ १० ३६७ १ ३४
१ नंबर १, २, ३, ६, ७ ए गामोनो हाल पाटगनी नजीकमां पतो नथी.
२ पाटगथी दक्षिणमा ३ गाउने छेटे वावडी छे, हालमां त्यां - देहरु नथी.
३ पाटणथी पश्चिमे त्रण कोशने छेटे वडली गाम छे.
४ पाटगथी दक्षिगमां २ कोश छेटे रूपपुर पासे कतपुरा आवेल छे.
५ रूपपुर अने चाणसमा पाटगथी दक्षिण पूर्व ६, ७ कोश उपर छे. - कंबोई २ बे छे, १ ली सोलंकीनी कंबोह पूर्व दक्षिगमा २ जी काकरे चीनी कंबोइ पश्चिम दक्षिगना खूगा तरफ ६ गाउ उपर के.
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संवत् १७२९ ना वर्षमां रचायेली चैत्यपरिवाडीना अनुसारे
श्रीपाटण-चैत्यप्रतिमा-कोष्टक २. नं० वा. चै० प्र० । न० वा० चै० प्र०
पंचासर ५ १८० १९ सगर कूई १ ३५ २ उंची शेरी १ ५१ / २० वलियारवाडो १ ७ ३ पीपलानो पाडो २ १६४ | २१ जोगीवाडो २ ९५ ४ चिंतामणिपाडो २ २९२ २२ मल्लिनाथनो पाडो २ ३१८ .५ सगालकोटडी १ ३ २३ लखीयारवाडो ३ ४४७
६ खराखोटडी ५ ३०८ | १४ न्यायशेठनो पाडो१ ६८ -७ त्रांगडीआवाडो १ ४०४ | २५ चोखावटीनोपाडो१ ४७
८ कंसारवाडो २ १०१ २६ बलीया पाडो १ १५१ ९ साहनो पाडो १ २८२ | २७ अवजी महे२० वडीपोसालनो
तानो पाडो २ ४९ पाडो
३ ६३८ / २८ कसुंबियावाडो २ ८४ ११ त्रभेडावाडो १ ५११ / २९ वायुदेवनो पाडो १ १०१ १२ तंबोलीवाडो १ १३० / ३० चाचरीयो १ १३ कुंभारीयावाडो १ ८२ / ३१ पदमापारेखनी १४ मांका महेतानो पाडो
१ १६ ३२ सोनारवाडो १ ४७ १५ मणीयाहो १ ४१ | ३३ खेजडानो पाडो १ १३८ १६ पखाली (वाडो?) १ ३१ ३४ फोफलीयावाडो ३ ४६८ १७ सावाडो २ ६०४ | ३५ खजुरीनो पाडो १ १५८ :१८ भेंसातवाडो १ ६७ ३६ भाभानो पाडो १ ४०१
पोल
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नं० वा० ... चै० प्र० चै० वा. वै० प्र० ३७ ली बडीनो पाडो १ ३२७ | ५० जगुपारेखनो पाडोर . ३४ ३८ करणसाहनो पाडो३ ९५३ ५१ कियावहोरानो ३९ संघवीपोल १ १३३ पाडो ४० खेतलवसही २ ३७९ ५२ क्षेत्रपालनो पाडो १ २९१ ४१ अजुवसापाडो १ ७७५३ कोकानो पाडो २. ३९५ ४२ कुंपादोशीनो पाडो? १६ ५४ ढंढेरवाडो ३ २७३ ४३ वसागडो १ २२८ |
| ५५ महेतानो पाडो २ ३६५ ४४ दोसीवाडो १ ९१
| १६ वखारनो पाडो २
| ५७ गोदडनो पाडो १ ९६ ४५ आंबादोसीनो पाडोर १६ । सेरीओ २ ५१९ ४६ पंचोटडी १ १२०५९ कलारवाडो १ ५३ ४७ धीयापाडो २ १३६ / ६० दणायगवाडो .१ १५४ ४८ कटकीओ १ १०७ ६१ धोधोल .. २ २६४ ४९ धोलीपरव १ ४६ / ६२ खारी वाव १ १३
आ बीजी चैत्यपरिवाडोना लेखक हर्षविजये पाटणनां कुल छोटां महोट चैत्यो अने तेमांनी प्रतिमाओनी संख्या नीचे प्रमाणे जणाधी छे"जिनजी पंवागुनइ माझने श्रीजिनवर प्रासाद हो । जिनजीभाव धरी मस्त के वंदीए मुकी मन विखवाद हो।जि०॥ जिनजी जिनबिनी संख्या सुणो माझने तेर हजार हो। जिनजी पांच से बहोतर वंदीए सुख संपत्ति दातार हो. ॥ .. जिन जी देहरासर श्रवणे सुण्या पंचसया सुखकार हो। जि नजी तिहां प्रतिमा रलीयामणी माझने तेर हजार हो॥ " ::
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३३
उपर जणावेल ९५ जिनप्रासाद नाम ठामनी साथे परिवाडीमां जणावी दीघां छे, बोज़ां घरमंदिरो जेने घणा खरा परिवाडीकरो 'देहरासर' ए नामथी ओळखावें छे तेनी संख्या : ५०० पांचसोनी जंणावी ने तेमां १३००० तेर हजार प्रतिमाओ होवानुं जणावे छे. प्रथम १३५७३ प संख्या पण जणावेली छे. परिवाडीकारना कहेवाना आशय पवी होय के 'पाटणम ९५ म्होटां अने ५०० न्हानां जिनमंदिरो हतां अने तेमां अनुक्रमे १३५७३ अने १३००० प्रतिमाओ हती.' परंतु आषो अर्थ करवा जतां विचार प आवे छे के सं. १६४८ मां पाटणमां न्हानां म्होटां २०० मंदिरों अने ८३६५ प्रतिमाओ हती तेना स्थानमा सं. १७२९ मां५९५ मंदिशे अने २६५७३ प्रतिमाओनुं होवुं मन कबूल करतुं नथी, ८० वर्षमां उपर प्रमाणे बधारो थवो शक्य होय तेम लागतुं नथी, कदाच एम होइ शके के प्रथमनी ज १३५७३ प संख्या बीजी वेला सामान्यपणे तेर हजार तरीके लखी होय अने देहरासरानी ५०० प संख्या पूर्वे जणावेल ९५
त्यो अने घरमंदिरो सबै भेलां गणीने जणावी होय तो बनवा जोग छे, अने तेमज होवुं जोइये, कारणके परिवाडीकारे पोते पण सर्व घरमंदिरो गण्यां नथी पण तेमणे 'श्रबणे सुण्यां' छे, मतलब के घर मंदिरोनी संख्या चोकस नथी, छतां पटलं तो नक्की छे के १६४८ पछी पाटणमां घरमंदिरो अने प्रतिमाओनो खासो भलो वधारो थयो हतो.
सं. १७२९ थी मांडीने सं. १९६७ ना वर्षपर्यन्त पाटण
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३४ नी स्थिति केटली हदे नबली पडी अने देहरांनी खास करीने घरदेहरासरोनी संख्या केटली बधी ओछी थइ गइ तेनो ख्याल आ नीचेना कोष्टक उपरथी आवी जशे.
सं. १९६७ मां प्रगट थयेली पाटणनां जिनमंदिरोनी मंदिरावली' प्रमाणे पाटण-चैत्यसंख्या कोष्टक ३.. नं० वा० प्र० नं० वा० प्र० १ पंचासर १३ | १५ तरसेरीआनो पाडी. ४ २ कोटावालानी धर्मशाला १ १६ कटकीयाषाढी १
२१७ घीयानो पाडो २ ४ खेतरपालनो पाडो १ १८ वागोलनो पाडो १ ५ पडीगुंदीना पाडी १ १९ पंचोटीनो पाडो ६ ढंडेरवाडो
२० वसावाडो ७ मारफतिया महेतानो २१ अदुवसानो पाडो . .१ पाडो
२२ खेतरवसीनो पाडो ८ वखारनो पाडो | २३ ब्राह्मणवाडी ९ गोदडनो पाडा २४ कनासानो पाडो ४ १. महालक्ष्मीनो पाडो २२५ लांबडीनो पाडो ११ गोलवाडनी शेरी | २६ भाभानो पाडो - १ १२ नारणजीनो पाडो १२७ खजुरीनो पाडो १ १३ धांधल
१ | २८ वासुपूज्यनी खडकी १ १४ कलारवाडी १। १९ संघधीनो पाडो २
१ आ 'मंदिरावली' श्री पाटण जैनश्वेताम्बर संघालुनी सरभरा करनारी कमीटी तरफर्था बहार पाडवामां आवी छे.
es -
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पवादो
१
our or naruwar
नं० वा०
प्र० । नं. वा . प्र. ३० कसुंबीयावाडो ४३ कुंभारीयापाडो २ ३१ अवजी महेतानो पाडो १ ४४ तंबोलीवाडो २ ३२ बलीया पाडो १ ४५ कपुरमहेतानो पाडो २ ३३ चोखावटोआनो पाडो ३ ४६ खेजडानो पाडो ३४ केशुशेठनो पाडो
४७ तरभेडावाडी ३५ निशालनो पाडे
४८ भंसातवाडी ३६ लखीयारवाडी
४९ शाहबाडो ३७ मल्यातनो पाडो
५० सानो पाडो २ ३८ जोगीवाडा .. ३९ फोफलीआवाडो
५१ वडीपोसालनो पाडो ६ ४० सोनीवाडो
५२ टांगडीआवाडा १० ४१ मणीआती पाडे। ३ ५३ खराखोटडीनो पाडो ३ ४२ डंक महेतानो पाडो २५४ अष्टापदजीमी खडकी ४
उपरना कोष्टक उपरथी जणाशे के वर्तमान समयमां पाटणना ५४ चोपन वासोमां कुल १२९ नी संख्यामां जैन. मंदिरो विद्यमान छे. जेमां मुख्य मंदिरो बा देहराओनी संख्या ८५ पंचाशीनी छे अने बाकीनां ४४ आश्रित चैत्यो वा देहरासरी छे के जेमां घणे भागे घरमंदिरोनो पण समावेश थइ जाय छे, आ उपरथी घरदेहरासरो केटलां बधां उठी गयां छे तेनो ख्याल आधी जशे. - आ घटाडानां त्रण कारणो मानी शकाय. १ जैनसमाजमां धर्मश्रद्धा अने देवपूजा-भक्तिनुं कमी थq, २-श्रावकोनी
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वसतिनो घटाडो, ३-श्रावकोतुं विशेषे करीने परदेशोमां रहेQ.
उपर जणावेलां सं. १६४८, सं. १७२९. अने सं. १९६७ नी सालमा विद्यमान चैत्योनी संख्यानां त्रणे कोष्टको उपरथी पाटणनी चडती पडतीनां अनुमानो थइ शकशे. ___यद्यपि आजे पण पाटण एक भव्य शहेर गणाय छे, हजारोनी संख्यामां अस्तित्व धरावता प्राचीन ग्रन्थोना संग्रहो-भंडारोना दर्शन निमित्ते अनेक भारतीय अने यूरोपीय, विद्वानोनुं ध्यान पाटण पोतानी तरफ खेंची रघु छे, श्रीमंत अने धर्मानष्ठ जैनधर्मी मनुष्योनी लगभग ५-६ हजार जेवडी म्होटी संख्याथी पाटण हजी पण पोतार्नु “जैनधर्मनी राजधानी" ए प्राचीन मानतु नाम केटलेक अंशे निभाषी रहुं छे, एटलुं छतां पण पाटणनी ते प्राचीन श्रेष्ठता, प्राचीन भव्यता, प्राचीन समृद्धि आजना पाटणमां रही नथी,ते श्रेष्ठताओ माजे तेनी प्राचीन स्मृतिमांज नजरे पडे छे; कृतिमां नहि.
उपरना संक्षिप्त विवेचनथी प्रस्तुत परिवातीनी अति. हासिक उपयोगिता वांचकगणना ध्यानमां आव्या वगर रहेशे नहि.
आ प्रस्तुत परिवारीनो. शब्दानुवाद न करतां तेनो सारांशमात्र तारवीने शरुआतमां आपी दीधो छे के जे उपरथी परिधाडीनी सर्व ज्ञातव्य वातो जाणी शकाशे, अने आशा छे के एक बार ए 'सार' वांच्या पडी परिवाडी वांचमारने तेमां न समजाय तेवी कंड पण बाबत जणाशे नहि.
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आ प्रस्तुत चैत्यपरिवाडी तेना लेखके कुल २३ ढालो, एक चौपाई अने २०४ गाथाओमां पूरी करी छे.
जे प्रति उपरथी एनी प्रेस-कॉपी करवामां आवी छे, ते मूल प्रति सं. १६४८ ना पोष वदि १ ना दिवसे लखेल छे, एटले के रचाया बाद मात्र त्रण महिनानी अंदर ज लखेल होइ परिवाडी पोताना मूल रूपमा जलवाइ रही छे. प्राचीन गूर्जर साहित्यना समालोचकोने तेनु खलं स्वरूप जणाइ आवे एटला माटे तेमां कंड पण भाषाफेर न करता तेने पोताना मूल स्वरूपमा ज कायम राखी प्रकट करवा उचित धायु छे.
कदरदान वाचकगण पठन-पाठन द्वारा आ चैत्यपरिवाडीथी लाभ हांसिल करी लेखक अने प्रकाशकना उद्देशने सफल करो एवी शुभाकांक्षा साथे विरमीए छीए.
-मुनि कल्याणविजय.
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प्रस्तुत पाटण चैत्यपरिपाटीनो सार.
(चोपाई) १ ढंढेरवाडो-१
ते समयमां ढंढेरवाडामा त्रण म्होटां अने आठ घर देरासर मली कुल ११ अग्यार देहरां हता, म्होटो ३ देहराओमां १सामला पार्श्वनाथनु,२ महावीरनुं अने ३ पार्श्वनाथy. आठ घरमंदिरोमां-१ गोवाल झवेरीनुं, २ पन्नादोसीनु, ३रायमल,४ शा.धनाजीनु, ५ मेलावीसानु,६ वीसाभीमानु, ७ राजु दोसीनुं अने ८ रतन संघवी.
ढंढेरवाडानां आ सर्व देहरांनी सर्व मली ५५६ पांच सो छप्पन्न जिनप्रतिमाओ हती.
हेरवाडाथी आपणो आ संघ कोकाना पाडा भणी जाय छे.
१ पाटण चैत्यपरिवाडीना कर्ता आचार्य श्रीललितप्रभमूरि पूनमियागच्छना होइ पोताना उपाश्रयवाला वासढंढरवाडाथी चैत्यपरिवाडी यात्रा शरू करे छे.
२ आ घरमंदिरो मूलनायकना नामथी न जणावता तेना करावनार गृहस्थना नामथी ज जणाव्यां छे, आगे पण केटलेक ठेकाणे आ प्रमाणे ज समजवान छे.
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(ढाल १ ली) २ कोकानो पाडो
त्यां प्रथम कीका पारेखने देहरे ऋषभदेव विगेरेने वांदीने कोकापार्श्वनाथने भेटे छे, अने त्यार पछी श्रीवंत दोसीने घरे वासुपूज्य स्वामीने वांदे छे, कोकाना पाडानां उपर्युक्त ३ देहगसरोमां ५+१३९+६२२६६ बसो छासठ प्रतिमाओ जुहारी संघ खेतरपालने पाडे गयो. ३ खेतरपालनो पाडो____ आ पाडामां एकज देहरु हतुं जेमां भगवान् शीतलनाथनी प्रतिमा १६७. एकसोने सडसठ जिनबिंबनी साथे विराजमान हती; तेने वांदीने संघ जगुपारेखने पाडे गयो. ४ जगुपारेखनो पाडो__ आ वासमां भगवान् नेमिनाथनु अने शांतिनाथन एम बे देहरां हता, प्रथममां नेमिनाथजी विगैरे ३ प्रतिमाओ हती; ज्यारै बोजामां-के जे जयवंत शेठना देहरा तरीके प्रसिद्ध हतुं तेमां-शांतिनाथ अने बीजी अग्यार मली कुल १२ प्रति
१ परिवाडीना कर्ताए पाडानु नाम लख्यु नथी, छतां 'कोकापार्श्वनाथ उपरथी अमोए आ वासने 'कोकानो पाडो' कहीने ओलखाव्यो छे.
-लेखक.
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माओो हती, ते वांदीने संघ खारीवाव उपर गयो. ५ पहेली खारी बाव
पहेली खारीवावे ऋषभदेव ने देहरे ४ प्रतिमाओनां दर्शन करी संघ बीजी खारीवावे गयो. ६ बीजी खारीवाद -
स्यां जइ महावीर प्रभुने भेट्या, अहीं १३ तेर : जिनप्रतिमा अने वे गौतम स्वामिनां विष हतां, ए सर्वने वांदी संघ नागमढे आव्यो.
( ढाल २ जी )
७ नागमढ
भगवान नेमिनाथनुं देहरू अने ९ नव जिनप्रतिमाओ हती तेने वंदन कर्यु अने त्यारबाद संघ पंचासराना पाडामां गयो.
८ पंचासरानो पाडो --
पंचासराना पाडामां आ वखते कुल ५ पांच जिनमंदिर हतां. १ महावीरनुं २ वासुपूज्यनुं ३ पंचासरा पार्श्वनाथनुं ४ ऋषभदेवनुं अने ५ नवघरानुं पार्श्वनाथनुं. आ पांचे देहरासरोमां सर्व मली ९+२७+८+१० (१) ४३=९७ सत्ताणुं वा तेथी पण अधिक प्रतिमाओ हती. पंचासरथी संघ उंची शेरी भणी गयो.
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९ उंची शेरी
उंची शेरीमां शांतिनाथन देहरु हन्तु जे 'मणशालीनुं देहरूं' ए नामथी प्रसिद्ध हतुं, त्यां कुल २३ जिनप्रतिमाओ हतो. अहींथी आगे संघ ओशवालना महोल्लामां
गयो.
१० ओशवाल महोल्लो___ ओशवालोना महोल्लामा ३ त्रण देहरा हतां, १ शांतिनाथन, २ मोलडीया चन्द्रप्रभD अने ३ श्रावका पार्श्वनाथनू. आ त्रणे जिनमंदिरोमां सर्च मली प्रतिमाओ ७+१+ २३३१ एकत्रीश इती. ए पछी संघ पीपलाने पाडे गयो.
(ढाल ३ जी) ११ पीपलानो पाडो___ अहिं शांतिनाथन देहरुं हतं अने शांतिनाथ उपरांत बीजी च्यार प्रतिमाओ हती, तेने वांदी संघ चिंतामणिने पाडे गयो. १२ चितामणिनो पाडो--
अत्र शा. वछुने देहरे अजितनाथ विगेरे सात जिनप्रतिमाओने वांदी संघ शांतिनाथने देहरे थइ चिंतामणि पार्श्वनाथने देहरे गयो, चिन्तामणिना पाडामां कुल ३
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४२
देहरां अने ७+२१+ ६७ = ९५ पंचाणु प्रतिमाओ हती, अहींथी संघ खराखोटडीमां आव्यो.
-१३ खराखोटडी
अत्रे अनेक जिनमंदिरो अने प्रतिमाओ हती. १ आसधीर ठाकरने देहरे चन्द्रप्रभ अने वीजी ने प्रतिमा. २ सदय वछ ठाकरने देहरे पार्श्वनाथ अने बीजी वे प्रतिमा. ३ अष्टापदावतार नामनुं देहरुं ( आमांनी बिंबसंख्या जणावी नथी, प्राय २४ बिंब हशे ) अने ४ चन्द्रप्रभनुं देहरुज्यां ओगणसाठ जिनप्रतिमाओ हती, जेमां एक रत्नमयी हती. ५ खरतरगच्छनी निश्रावालुं शांतिनाथनुं बावन जिनालयवालुं ( विधिचैत्य ) अने ६ ऋषभदेवनुं देहरुं, आ बन्ने देहरांनी मळी २७२ बसो बहोंतेर प्रतिमाओ हती, अने तीर्थकरोनां माता - पितानी मूर्तिओ पण अत्र हती. ७ सोनी तेजपालनुं पार्श्वनाथवाले घरमंदिर अने ८ टोकर सोनीनुं सुमतिनाथनुं घरमंदिर. आ बेमां अनुक्रमे २९+४ प्रतिमाओ हती. आ प्रमाणे खराखोटडीमां कुल ८ मंदिर अने _३+३+२४+६९+२७२+२९+४= ३८४ त्रणसो चोराशी प्रतिमाओ हती. ए सर्वने जुहारी आपणा यात्रिको त्रांगडीआपाडे आव्या.
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( ढाल ४ थी) १४ त्रांगडीआपाडो___ आ पाडामां ऋषभदेवर्नु एक म्होटुं देहरुं हतुं, जेमां ३७५ त्रणसो पंचोत्तेर प्रतिमाओ विराजमान हती. अहींथी संघ मणिहटि पाडे आव्यो. १५ मणिहटि पाडो
आ पाडामां बे जिनमंदिरो हतां १ महावीरनुं अने २ देवदत्तनुं. आ बन्नेमा प्रतिमाओ अनुक्रमे ५+१३ हती. मणियाती पाडामांथी संघ मांका महेताने पाडे गयो. १६ मांका महेतानो पाडो
ज्यां भगवान् शांतिनाथनुं एक देहरुं हतुं, अने मूलनायक सिवाय वीस प्रतिमाओ त्यां विराजमान हती, अहीं वंदन करी संघ कुंभारोये पाडे पहोंच्यो. २७ कुंभारीया पाडो_ अत्र २ वे देहरां हतां, १ अमीचंद सोनीनु अने २ वछ जवेरीनुं. पहेलामां मूलनायक शांतिनाथ उपरांत १७ सत्तर जिनप्रतिमाओ हती, बीजामां चोवीस तीर्थकरोनी प्रतिमाओ हती तेने वांदीने आपणो यात्रालु संघ तंबोलीवाडे गयो.
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(दाल ५ मी) १८ तंबोली वाडो
अहिं कुल ६ देहरा हता. जेमा १ सपार्श्वनाथनं हतं ज्यां ७३ जिनबिंब हता, २ बीजा मंदिरमा ७ बिंब हता, ३ रूपा वहोरा, आदिनाथनु, ४ मेघा पारेखनुं चन्द्रमभमुं, ५ घूसीजें, ६ शा. सीराजनुं संभवनाथनु, छेल्लां ४ देहराओमां जिनबिंब अनुक्रमे १०+५+२+२५५ हतां. सर्व मंदिरोनी प्रतिमासंख्या ७३+७+१०+५+२+२५५=त्रणसोबावन हती. तंबोली वाडाथी संघ खेजडाने पाडे गयो. १९ खेजडानो पाडो. ज्यां ' सारंगनुं देहरु 'करीने एक जिनमंदिर हतुं, तेमां नव प्रतिमाओ हती तेने जुहारी संघ बडावाडे गयो. २० नंबडा वाडो
बडा (तरभेडा ) वाडामां. जइ शांतिनाथने वांद्या, अत्रे- देहरु घणुं रमणीय होइ ९९ नवाणु जिनबिंबोथी अलंकृत हतुं, त्यांथी दर्शन करी संघ वडी पोसालना पाडामां आव्यो. २१ वडीपोसालनो पाडो
आपाडामां कुल ५ मंदिरो अने ३४+६+६+१४+१३
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=७५ प्रतिमाओ हती. देहराओमा १ सोमा शेठ- ऋषभदेवन, २ भुजवल शेठन श्रीश्रेयांसनाथन, ३ वाडीपुरमंडन पार्श्वनाथy, ४ सहसा पारेखनुं श्रीपार्थनाथन अने ऋषभदेवन. आ पांचे देहरां जुहारी संघ शाहने पाडे गयो.
(ढाल ६. ठी). २२ शाहनो पाडो--
शाहना पाडामा २ देहरां हतां. १ आदीश्वरनुं अने १ रायसिंघने घरै शांतिनाथनु. प्रथममा ८७ सत्याशी प्रतिमाओ हती, ज्यारे बीजामा ७० हती. ए पछी संघ कंसार वाडे गयो. २३ कंसारवाडो-- __अत्र १ देहरुं शीतलनाथर्नु आव्यु, ज्यां १२ जिनमतिमाओ हती. २ शांतिनाथना देहरामा २२ प्रतिमाओ वांदी ३. शा. चांपाने देहरे जइ. १६ सोल प्रतिमाओ वांदी त्यांथी ४ चोथा शाहने घरे बे रत्नमयी प्रतिमाओनां दर्शन करी५ पार्श्वनाथने देहरे चोवीस जिनप्रतिमाओने नमन कयु, आ रीते कंसारवाडामा कुल ५ मंदिर अने १२+२२+१६+ २+२४-७६ जिनप्रतिमाओ वादी संघ भलावैद्यने पाडे गयो. २४ भलावैद्यनो पाडो
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ज्यां चन्द्रमभनुं देहरुं अने बेत्रण प्रतिमा हती. वैद्यना पाडाथी यात्रालु संघ भेसातवाडे पहोंच्यो. २५ भंसातवाडो
(अत्र शांतिनाथ आदि ३६ छत्रीस जिनमूर्तिओ हती,) एक गौतमगणधरनी प्रतिमा पण विराजमान हती. भंसातवाडाथी संघ सहावाडे आव्यो.
(ढाल ७ मी) २६ सहावाडो____ ज्यां सुपार्श्वनाथ अने पार्श्वनाथनां बे देहरां जुहार्यों, अहीं ८५+६१२=६९७ छसो सत्ताणुं प्रतिमाओ हती. हवे संघ सगरकुई आव्यो. २७ सगरकुई___ अत्रे त्रण देहरां हता-१ पार्श्वनाथनुं २ पुंजाशेठने घरे ऋषभदेवनुं अने ३ जयचंद शेठवालुं शांतिनाथy, आ मंदिरोमां २०+३०+३३८३ प्रतिमाओ हती तेने वांदी संघ हेबतपुरे गयो. २८ हेबतपुर--
ज्यां १०५ एकसो पांच जिनबिंब वांदी संघ मोढेरना पाडा भणी गयो.
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'४७
२९ मोढेरनो पाडो-- ____ मोढेरना पाडामा ४ च्यार प्रतिमाओ वादी आपणो आ भाविक संघ नारंगे पाडे आव्यो.
(ढाल ८ मी) ३० नारंगापाडो-- ___आ पाडामां नारंगा पार्श्वनाथनुं अने 'शोभी- ' एमबे मंदिरो हतां, बनेनी मळी ४२+२३० २७२ प्रतिमाओ हती, तेने वांदी संघ सोनारवाडे थइ फोफलीआवाडे गयो. ३१ सोनारवाडो
सोनारवाडामां बे देहरां हता-१ शांतिनाथन अने २ महावीरनु. बन्नेमां प्रतिमा १४+१=१५ हती. ३२ फोफलीआवाडो
फोफलीआवाडो आजनीमाफक पूर्वे पण घणो विशाल हतो, त्यां वासमंदिर अने घरमंदिर मली कुल ११ अग्यार जिनमंदिरोहतां; जे नीचे प्रमाणेना नामोथी ओलखातां १ ऋषभदेवन, २ शांतिनाथर्नु, ३ राजाशेठन-संभवनाथन, ४ काछलानु-मुनिसुव्रतर्नु, ५ वीरजी शेठनु-पाश्वनाथन ६ थावरपारेखनु,७ महुलाशेठनु-मुनिसुव्रतर्नु, ८ कंकुशेठन-पार्श्वनाथन, ९ राजाशेठन-नेमिनाथनु, १० बछा दोसीन-पार्श्वनाथर्नु
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अने ११ पार्श्वनाथy. आ सर्व देवराओमा. प्रतिमा नीचे प्रमाणे हती-७८+२५+२०+१२+४+४६११५+३४+३६+ १५+१०=२९५. फोफलीआ वाडायी संघ जोगीवाडे गयो.
(ढाल ९ मी) ३३ जोगीवाडो__ आ महोल्लामां ३ त्रण जिनमंदिर हतां. १ पार्श्वनाथर्नु, २ विद्याधर शेठनु अने ३ भोजादोशीनु-पार्श्वनाथनु. आत्रणे मंदिरोमां प्रतिमा २०+३४+१०=६४ चोसठ हती, अहींथो संघ मफलीपुरे गयो. ३४ मफलीपुर-- __ज्या पार्श्वनाथना मंदिरमा १२ बार जिनबिंध वांद्यां, न्यांथी संघ मालावाडे गयो. ३५ मालीवाडो--
ज्यां श्रीजीरावला पार्श्वनाथ अने २४ चोवीस जिनप्रतिमा वादी संघ मांडणने पाडे आव्यो. ३६ मांडणनो पाडो
मांडणने पाडे. त्रण जिनमंदिरो हता-१ संभवनाथनु, २ धनराज--पार्धनाथनु, अने ३ शेठ कमलशी- शांतिनाथर्नु, आ देहराओमां सर्व:मली ९+४४+३६८९ नव्याधी जिनप्रतिमाओ हती, जे वांदी संघ गदावदाने पाडे गयो.
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( ढाल १० मी) ३७ गदावदानो पाडो-- - आ पाडामा १ शांतिनाथन, २ गला जिनदत्तनु-शांतिनाथन अने ३ धूपाधूलानु: एम व्रण देहगं हतां जेमां प्रतिमा ५८+२५+७=९० नेवु हती. अत्रथी संघ मल्लिनाथना पाडामा गयो. ३८ मल्लिनाथनो पाडो
मल्लिनाथना पाडामां मल्लिनाथ विगेरे १७६ एकसो छहोतेर जिनप्रतिमा वांदी संघ भाणाने पाडे गयो. ३९ भाणानो पाडा
भाणाना पाडामां पार्श्वनाथनु एक देहरु हतुं, जेमा ९८ अठाणु जिन बिंब विराजमान हता,ते बांदी संवे समुद्रफडीआ तरफ प्रयाण कयु. ४० समुद्रफडीओ- समुद्रफडीआमां शांतिनाथन एक देहरु अने कुले १९ प्रतिमाओ हती. त्यांथी संघ चोखावटीने पाडे आव्यो. . .
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४१ चोखावटीनो पाडो
अहीं शांतिनाथ आदि दश जिनप्रतिमा जुहारी साणेसरा ऋषभदेवजीने देहरे जइ आठ जिनप्रतिमाओ वादी संघसमुदाय बलीयाने पाडे गयो. ४२ बलीयानो पाडो
बलीयानापाडामां भगवान ऋषभदेव विगेरे अग्यार जिनबिबोनी यात्रा करी संघ अवजी महेताने पाडे आव्यो. ४३ अवजी महेतानो पाडो
आ पाडामां बे देहरा हता, १ शीतलनाथर्नु अने २ शांतिनाथन. पहेला देहरामा ७ जिनप्रतिमाओ हती; ज्यारे बीजा देहरानी प्रतिमा संख्या परिपाटीकारे जणावी नथी. हवे संघ कुसुंभीआ पाडामां आव्यो.
(ढाल ११ मी) ४४ कुसुंभीआ पाडो___ ज्यां कुल ४ देहरां हतां-१ शीतलनाथनूं, २ पार्श्वनाथन, ३ जगपालनु, ४ वाछा दोसीने त्यां मोहनपार्श्वनाथ. आ ४ देहराओमा सर्व प्रतिमा १९+१२+२०+१७-६८ इती,ते बांदी संघ नाकर मोदीने पाडे गयो.
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१५ नाकरमोदीनो पाडो_ आ पाडामां पण ४ देहरा हतां जेनां नाम-१ पार्श्वनाथन । नानजी पारेखने घरे वासुपूज्यनु ३ घरमसीने घरै शांतिनाथ, ४ सांडा पारेखनुं श्रीपार्श्वनाथन. आ सर्वमा प्रतिपायो ११२+१७+३१+३६=१९६ हती. जेमां एक प्रतिमा इननी अने एक सीपनी हती. हवे संघ मालू संघवीने पाडे साव्यो.
(ढाल १२ मी) ६ मालू संघवीनो पाडो
अत्र आवी १ मनमोहन पार्श्वन थ जुहार्या, ए उपरांत २ हेममानने देहरे सुमतिनाथ अने ३ रानघर संबवीने देहरे विमलनियने वांधा. आत्रणे देहगमा प्रतिमा २६+२+५=३३ हती,
बांदी संघ लटकणने पाडे आव्यो अने त्यांथी भंडारीने पडे थइ संघ भाभाने पाडे गयो. | लटकणनो पाडो
लटकणने पाडे शांतिनाथ- देहरुं अने १२ प्रतिमाओहती. ४ भंडारीनो पाडोभंडारीना पाडामा पार्श्वनाथनुं देहरुं अने कुल ५ प्रतियो इती.
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४९ भाभानो पाडो__ भाभाने पाडे १ श्रीपार्श्वनाथनु, २ तेजपाल शेठनधर्मनाथ, ३ सहसकिरणने घरे सुमतिनाथनु, ४ पंचायणने घरे शांतिनाथन, एम कुले ४ देहरा हता.जेमा प्रतिमा ५१५ १७+२५+६४=१५७ हती. हवे संघ लींबडीने पाडे आव्यो. ५० लींबडीनो पाडो--
आ पाडामा ३ त्रण देहरा हतां-१ सारंगदोसीने घरे मातफणा पार्श्वनाथनू, २ रायचंद दोसीने घरे शांतिनाथन, अने शांतिनाथनु नवु देहरूं. आ त्रणेमां प्रतिमा १२+१६५ १४४२ हती, तेने वांदी संघ करणासाहने पाडे गयो.
( ढाल १३ मी) ५१ करणासाहनो पाडो
करणास हनो पाडो जे आजे 'कनासानो पाडो' ए नामथी ओलखाय छे, ते घणो महोटो होइ ९ देहराओथी मुशोभित हतो. देहराओनो अनुक्रम नीचे प्रमाणे हतो१ शीतलनाथनु, २ वीरा दोसीन-श्रेयांसनाथ, ३ वीरपाल दोसीनु-ऋषभदेव, ४ समरथ महेताने घरे पार्श्वनाथ, ५ हरिचंदने घरे कुंथुनाथर्नु, ६ धरमसीनु-चन्द्रप्रभनु, ७ शवजी
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संघवीन-नेमिनाथनु, ८ सारंगपारेखन-शांतिनाथर्नु, ९ कमा शाहने घरे शांतिनाथन. आ सर्व देहराओमा ६७+१४+१८ +१८+७+४७+१४+४८+४७=२८० बसो अंशी प्रतिमाओ इती. जेमां ८ रतननी अने १ रूपानी हती, ए सिवाय २ पटक हता. करणासाहना पाडाथी संघे बांभणवाडा भणी प्रयाण कर्य.
(ढाल १४ मी) १२ बांभणवाडो
बामणवाडा-वा ब्राह्मणवाडामा लगभग ८ जिनमंदिरो नीचे जगावेला हतां-१ वहोरा वीरदासने घरे वासुपूज्यनं, २ हीरा वीसाने घरै शांतिनाथन,३ सहेसु संघवोने घरे शांतिलाथन, ४ महावीर, ५ हीरनीने घरे शांतिनाथन, ६ शांतिनाथy, ७ विमलसी शेठन, ८ पुंआ पारेखने घरे ऋषभदिव. आ सर्व मंदिरोमां प्रनिमा २४+११+७+५+१०+७+ Le+११३८३ हती, जेमां ६ प्रतिमा रत्नमयी हती.
ब्राह्मणवाडानी यात्रा करी संघ खेतलवसही गयो. ६३ खेतलवसही
ज्या पार्श्वनाथनुं एक देहरु हतुं अने तेमां २४७ जिन
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मतिमाओ हती, अहीं वंदन करी आपणा यात्रालुओ ली कगने पाडे गया.
(ढाल १५ मी) ५४ लटकणनो पाडो___ आपाडामां१ गपूदोसीने घरे अजितनाथन, २ शा वाला, घरे चन्द्रप्रभy, ३ लालजीने घरे संभवनाथनु, ४ शांविनायक अने ५ वीरजीने घरे शांतिनाथनु एम कुल ५ देहरां हता. जे प्रतिमा १२+५१+९३+२२+२२=२०० बसो हती, तेमां बिंब रत्नमय हता, अहोंथी संघ कुंआ दोसीने पाडे गयो. ५५ कुंपादोसीनो पाहा
कुंपादोसीना पाडामा २ देहरां हता-१ ऋषभदेवन, गणीआदोसीने घरे पार्श्वनाथन. बन्नेमा प्रतिमा +२२॥ ३० हनी, अहोंथी संघ वीसावाडे गयो.
__ (ढाल १६ मी) ५६ वीसावाडा
वीसावाडामां १ पुंजा शेठने घरे पार्श्वनाथनु, २ अमरदा । सोनीने घरेधर्मनाथन. ३ वीसाविमनु-पार्श्वनाथनु, ४ अमरका लनु-अजितनाथनु, ५ अने शांतिनायनु, एम पांच देहरा हता
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५५
जेमां प्रतिमा १७ +११+१९+४+५०=१०१ हती, तेमां २ प्रतिमा रत्नमयी हती. ए पछी संघ सरहीआवाडे आव्यो. ५७ सरहीआवाडा
ज्यां ऋषभदेव आदि त्रेवीश जिनप्रतिमा वांदो संघ त्यांथी दोसीवाडे गयो.
५८ दोसीवाडो-
दोसीवाडे हटूना घर देहरासरमां भगवान् शांतिनाथने भेटी संघ शांतिनाथने पाडे गयो.
२९ शांतिनाथनो पाढे-
आ पाडामा १ लक्ष्मीदासना देहरासरमां शांतिनाथ विगेरे अने २ संघराजना देहरामां पार्श्वनाथ प्रमुखने वांदी संघ ३ हेमा सरही आने घरे आव्यो, त्यां पार्श्वनाथ अने बीजी छैतालीश प्रतिमाओ वांदी ४ शांतिनाथने देहरे गयो, ज्यां ४७ प्रतिमाओ बांदी त्यांथी ५ कंबोइया पार्श्वनाथने देहरे जइ पार्श्वनाथ आदि सात जिनप्रतिमाओनां दर्शन कर्यो, आ प्रमाणे शांतिनाथने पाडे ५ देहरे १२+१५+४७+४७+७=१२८ प्रतिमाओ हवी. त्यांथी यात्रासंघ कटकीआवाडा भणी चाल्यो.
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६० कटकीआवाहो____ आ महोल्लामा १ ऋषभदेवर्नु अने २ शेठ विमलदासने घरे अजितनाथर्नु एम बे देहरा हतां, बन्नेमा प्रतिमा ५५६ १४-६९ ओगणसित्तेर हती. ते बांदी संघ आनावाडे गयो. ६१ आनावाडो___ ज्यां नेमिनाथ- देहरुं अने ३४ प्रतिमाओ हती ते जुहारी संघ सालवीवाडे गयो.
___(ढाल १७ मी) ६२ सालवीवाडो
सालवीवाडाना सेरीआमां १ भगवान् नेमिनाथ अने २ मल्लिनाथनां देहराओमा ८७+७५=१६२ जिनवि वांदी संघ कुरसीवाडे शांतिनाथने देहरे आव्यो. ६३ कुरसीवाता
ज्यां शांतिनाथ विगेरे ७४ प्रतिमाओ हती तेने वांदीने संघ कइआवाडे आव्यो. ६४ कइआवाडो
कइआवाडामां १ महावीरने देहरे अनेक रायचंद संघवी ने
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त्यां वासुपूज्यने देहरे अनुक्रमे ५+१४=१९ जिन वांद्या अने त्यांथी संघ कल्हारवाडे गयो. ६५ कल्हारवाडो
कल्हारवाडामां शांतिनाथ आदि ५५ पंचावन जिनबिंद जुहारीने संघ दणायगवाडे गयो. ६६ दणायावादो-- ___ दणायगवाडे ऋषभदेव आदि ७० जिनबिंब वांदी संघ बांधुलीपाडे गयो. ६७ धांधुलीपाडो. धांधुलोपाडे सुविधिनाथ आदि ७१ जिन प्रतिमानोने वं. दन कर्यु अने त्यांथी उंचे पाडे गयो. ६८ उंचो पाहो-- ... उंचे पाडे पार्श्वनाथ आदि त्रण प्रतिमा जुहारीने संघ सत्रागवाडा तरफ चाल्यो. ६९ सत्रागवाडो
सागवाडे पार्श्वनाथ आदि दश जिनबिंबनां दर्शन करी संघे पुन्नागवाडे प्रयाण कयु.
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७० पुन्नागवाडो
पुन्नागवाडे पार्श्वनाथ आदि १० जिनबिंब वांदी संघ गोल्हवाडे गयो. ७१ गोल्हवाड
गोल्हवाडमा ३ देहरां हता-१ पार्श्वनाथनुं, २ पार्श्वनाधनु, ३ ठाकर शाहने घरे रत्नप्रतिमावालु पार्श्वनाथनु त्र
मां प्रतिमा ५+११९+१=१२५ हती ते वांदीने संघ धोलीपरवे गयो.
(ढाल १८ मी) ७२ धोली परव
धोली परवे ४ देहरा हतां-१ मुनिसुव्रतर्नु, २ दूदा पारेखने घरे शांतिनाथर्नु, ३ देवदत्त दोसोने घरे चंद्रमभस्वामीनु, ४ रामा सोनीने घरे पार्श्वनाथनु, एम धोली परवे ४ देहरां अने ५२+५+४७+१८=१२२ एफसो बावीस प्रतिमाओ हती जेमा एक रत्नमयी प्रतिमा हती, ते उपरांत बे पट्ट हता. अहींथी संघ गोदडने पाडे गयो. ७३ गोदडनो पातो
अहीं ४ देहरां हता-१ ऋषभदेव→, २ वीसा थावरने
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घरे ऋषभदेवन, ३ हीरजी दोसीने त्या पार्श्वनाथन अने ४. उदयकरणने घरे ऋषभदेवन, एमां अनुक्रमे १७२+१४+१+ +५२=२३९ प्रतिमाओ हती, ते वांदी संघ नाथाशाहने पाडे गयो.
( ढाल १९ मी) ७४ नाथाशाहनो पाडो___ ज्यां ६ छ देहरा हता-१ शांतिनाथनु, २ वाछादौसीने घरे चंद्रप्रभनु, ३ पचु शेटने घरे चंद्रप्रभनु, ४ सूरजी शेठर्नु, ५ रामा दोसीनुं अने ६ रहीआ दोसीनू, आ देहराओमा मतिमा १९०५७०+१+१५+४९+२९-३६९ हती, जेमा एक प्रतिमा सीपनी हती. ए वांदी संघ महेताने पाडे आव्यो. ७५ महेतानो पाडो___ ज्यां मुनिसुव्रत अने वाछा शाहने घरे पार्श्वनाथ- एम बे देहरां हां अने तेमां २०+३=२३ प्रतिमाओ हती जे आपणा आ संघे हर्षभेर भेटी.
(ढाल २० मी) आ प्रमाणे पाटणमा १०१ एकसोने एक जिनचैत्य ए--
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टले म्होटा जिनप्रासादो हता अने नवाणु देहरासर अर्थात् छोटां जिनमंदिरो हतां.
उपर जणावेल १०१ महोटां देहरांओमां ५४९७ पांच हजार च्यारसोने सत्ताणुं जिनप्रतिमाओ हती, ज्यारे छोटां ९९ देहरासोमा २८६८ बे हजार आठसोने अडसठ जिनप्रतिमाओ हतो. ए सर्वमा एक विद्रुम(प्रवालरत्न ) नो, बे सीपनी अने आडत्रीश रत्ननी हती.
उपर जणावेल बने प्रकारनां देहराओनी अने बीजी कुले मळी ८३९४ आठ हजार त्रणसो अने चोराणु प्रतिमा हती, ते उपरांत ४ च्यार मूर्तिओ गौतमस्वामीनी अने च्यार पट्टको हता.
पाटणना सर्व महोल्लाओनां नाम ग्रहणपूर्वक सर्व देहरा अने. विक संख्या जणावी हवे चैत्यपरिवाडीकार आचार्य ललितप्रभसूरि पाटण शहेरनी पासेना केटलांक गाम नगरना चैत्योनी परिपाटी पण आ परिवाडीना पेटामां ज लखी जणावे छे.
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परिशिष्ट.
( ढाल २१ मी) १ वाडीपुर
के जे पाटणनी नजीकमां एक गाम हतुं ज्यां अमीझरा पार्श्वनाथनुं देहरुं हतुं जेमां १ पार्श्वनाथनी अने एक बीजी एम बे प्रतिमाओ हती. २ दोलतपुर-एमां एक जिनमतिमा हती. ३ कुमरगिरि
कुमगिरिमा २ जिनमंदिरो शांतिनाथनां हतां-१ खरतरगच्छन जेना गंभारामां बे प्रतिमाओ हती अने भमतीमां ५० पचास जिनबिंब हतां. २ जु चैत्य त्यांनी पोसालमां हतुं जेना गंभारामां शांतेनाथ अने बीजी छत्रीश प्रतिमाओ मळी कुले ३७ प्रतिमाओ हती अने तेज चैत्यमा ४९६ च्यारसो छन्नु पीतलनां जिनबिंबो हतां. ४ वावडो
एमां शांतिनाथर्नु देहरुं अने १८ अहार प्रतिमाओ हती. ५ वडली
अहिं खरतरतुं शांतिनाथन देहरु अने ४० च्यालीस
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६२
प्रतिमाओ हती, एक मूर्ति जिनदत्तमूरिनी पण त्यां हती, त्यांज बीजं देहरुं महावीरनुं हतुं मां घणीज सुंदर प्रतिमा विराजमान हती. ६ नगीनो-. ___ एमां पार्श्वनाथनुं देहरुं हतुं जेमा ७ सात प्रतिमाओ हती. ७ नवो नगीनो___एमां पण श्री शांतिनाथनुं देहरुं अने पिस्तालीश पतिमाओ हती, बीजुं बहोत्तेर जिनालय जिनमंदिर नवा नगीनामां हतुं जेमां कुले ७५ पंचोत्तेर प्रतिमाओ हती.
( ढाल २२ मी) ८ कतपुरा
कतपुरामां बे मंदिरो हतां-१ शांतिनाथर्नु अने २ समयसरणवालु ऋपभदेवनु बन्नेमां प्रतिमा १+७=८ हती. ९ रूपपुर
आ नगरमा १० दश देहरां हतां-१ पार्श्वनाथनु, २ ऋषभदेवन, ३ डुंगर महेताने त्यां अजितनाथy, ४ बोधा शेठने घरे चोवीस तीर्थंकरोतुं, ५ गणराज शेठy, ६ वस्ता शेठने घरे शांतिनाथनु, ७ जगु शेठ,८सांडा वहोरानुं पार्थनाथनु, ९ रंगा कोठारीने घरे शांतिनाथर्नु अने १० कुंअरजी शेठने त्यां शांतिनाथनु. आ दशे देहरांओमां प्रतिमा
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अनुक्रमे १००+२++६६+२४+६३+११+३४+३९+१४+ १४-३६७ त्रणसो सडसठ हती. २० चाणसमा____ आ गाममां श्रीभट्टेवापार्श्वनाथनुं मंदिर हतुं अने तेर्मा कुल ३४ चोत्रीश प्रतिमाओ हती. ११ कंबोई____अत्रे पार्श्वनाथनुं देहरु हतुं ज्यां गंभारामा ५ अने भमतीमा १६, सर्व मली २१ प्रतिमाओ हती. १२ मुंजपुर
अहिं एक देहरुं अने त्रण प्रतिमाओ हती.
आ प्रमाणे परिवाडीकार पाटण अने तेनी नजीकना गामोनां देहराओनी हकीकत लखी छेवटे शंखेश्वर पार्श्वनाथना गुण वर्णवे छे.
(ढाल २३ मी.) शंखेश्वर तीर्थमा केटली प्रतिमाओ छे. अने तेनी ऐतितिहासिक स्थिति केवी छे ते बाबतमा परिवाडीकार कंइ पण जणावता नथी.
शखेश्वरनुं वर्णन करी छेवटे ग्रंथकार नीचे प्रमाणे पोतानी गुरुपरंपरानो उल्लेख करवापूर्वक पोतानी ओलखाण आपी प्रस्तुत चैत्यपरिवाडीनी समाप्ति करे छे.
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४
प्रशस्ति अने उपसंहार. पूनमिया गच्छनी चंद्रशाखामां श्री भुवनप्रभसूरि नामे गुणो आचार्य थया.
भुवनप्रमसूरिनी पाटे कमलप्रभमूरि अने तेमनी पाटे पुण्यप्रभसूरि नामे आचार्य थया.
पुण्यप्रभसूरिनी पाटे श्रीविद्यामसूरि थया जे पोताना समयमां एक गुणी पुरुष तरीके प्रसिद्ध हता.
ते विद्याप्रमसूरिना शिष्य ललितप्रमसरि थया के जेमणे विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ चोथ अने रविवारने दिवसे आ ' पाटण-चैत्य-परिवाडी' बनावी छे. ____ आ परिवाडोमां पाटण अने आसपासना गामडाओनां सर्व मलीने ९५९८ नव हजार पांच सो ने अठाणु जिनबिंबोने परिवाडीकारे नमस्कार कर्यों छे.
अंतमा फरिने ग्रन्थकारे पोताना इखदेव शंखेश्वर पार्श्वनाथ अने पोताना गुर ने याद करीने पाटण-चैत्यपरिपाटीने पूर्ण करी छे..
मुनि कल्याण विजय.
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श्रीललितप्रभसूरि--विरचिता
पाटण चैत्य-परिपाटी.
॥ चउपई ॥ सयल जिणेसर प्रणमी पाय । सरमति सहगुरु हईडइ ध्याइ । पाटण-चैत्यपरिवाडी कहुं । जिनबिंब नमतां पुण्य ज लहुं ॥१॥ पहिलं ढंढेरवाडइ नामि । सामला पास करुं प्रणाम ॥ जिमणइ पासइकलिकुंड पास । मनवंछित सवि पूरइ आस॥२॥ इकत्रीस प्रतिमा बीजी होइ। बीजइ देहरइ वीरजिन जोइ । त्रिसला नंदन भेट्या सही। संघ सहू आव्या गहगही ॥३॥ डावइ पासइ चंद्रप्रभ स्वामि । जिमणइ पासइ लघु वीर ठाम । विसई सात्रीस करूं जुहार । गौतम बिंब एक छइ सार ॥४॥ गोवाल जवहिरी देहरासरि । सात प्रतिमानई ऊलट भरि । बंदी प्रतिमा रत्नमइ एक। दोसी पन्ना घरि सुविवेकः ॥ ५॥
१ आ परिपाटी' नी प्राचीन प्रति ललितप्रभसूरिना कोइ शिष्य नी लखेली जणाय छे, तेनी आदिमां 'ॐ नमः सिद्धं । पूज्य श्री गच्छाधिराज भट्टारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री ललितप्रभसूरि सदगुरुभ्यो नमः जिनाय ।' आवो उल्लेख कों छे. ..
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चौद प्रतिमा तिहां वंदी करी । रायमल देहरासर हईइ धरी। ऋषभादिक जिन छत्रीस तिहां । एक रत्नमय वली छइ जिहाद त्रीजइ देहरइ आव्या जाम । पास जिणेसर भेट्या ताम । अंजनगिरि कइ मेरु सुधीर । जाणे उन्नत जलधर खीरा॥७॥ सतर भेद पूजा सुविशाल । कीजइ भावई रंग रशाल। ऋषभादिक जिन इतालीस । भगतई भावई नामुंशीस८॥ सहा धनजी देहरासर दीठ । नयणे अमोय रसायण पईट । ऋषभादिक प्रतिमा इग्यार । चुवीसवटु छइ एक उदारा॥९॥ मेलाविसा देहरासरि आवि । ऋषभादिक बासठि नमु भावि। विसा भीमा देहरासर सार । ऋषभादिकजिन त्रीस विचारि
॥१०॥ दोसी राजू देहरासर देषि । अठावीस जिनवर हरषई पेषि । रतन संघवी देहरासरि जिणंद । पंचवीस जिन दीठइ आ
__णंद ॥ ११ ॥ ॥वस्तु छंद ॥ सकल जिनवर २ पाय पणमेवि । सरसति सामिणि मनि धरी । सुगुरुपाय पणमेवि भत्तिइं। चैत्यपरिवाडी पत्तनह करुं कवित नवनवी जुत्तिई । ढंढेरवाडइ जुहारीमा सकल जिणेसर देव । पंच सया छपन्नया तिहुश्रण सारइ सेव २॥१२॥
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॥वीर-जिणेसरचरज० ए ढाल ॥१॥ कीका पारषि देहरासरि ए । आव्या मनरंगिई। वंदी प्रतिमा पंच तिहां ऋषभादिक चंगइ, देहरइ कोका पासनाह । भेटया जिन होइ । शत ऊपरि सात्रीस तिहां । काउसगीआ दोइ ॥ १३ ॥ दोसी श्रीवंत घरि अछइ ए। वासुपूज्य जिर्णद । इकसठि जिन बीजा अछइ ए । दीपइ दिणंद । पाटक खेत्रपालनइ ए। जिन शीतलनाथ । सतसठि शत ऊपरि वली ए । भेटई सनाथ ॥ १४ ॥ पारिषि जगू पाडलइ ए । नेमिपतिमा जाण। वे बिंब अवर अछइ ए । भवी मनि आणउ । जयवंतसेठि-देहरासरि ए। शांति पडिमा जोई। प्रणमंतां ते हृदयहेजि । सवहाँ सुख होई ॥ १५ ॥ एकादश छइ अवर बिंब । रयणमय इक सार। षारी वावई ऋषभजी ए। जिन पडिमा च्यारि। गौतम गणहर दोइ बिंब । बीजी पारीवावि । सिद्धत्थनंदन भेटीआ ए । तेर प्रतिमा भावि ॥१६॥
॥तउचडीउ घणमाण. ए ढाल ॥२॥ नागमढई हवि आवीआ ए। दैठा नेमि जिणंद तु। प्रतिमा नव तिहां दीपती ए। अभिनव जाणि दिगंद तु॥१७॥
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पंचासरइ पाटकि अछइ ए । धुरि वीर जिनवर सार तु । नव प्रतिमा वंदी करी ए। वासुपूज्य जुहारि तु ॥ १८ ॥ सतावीस बिंब तिहां नमी ए। पंचासरु प्रभु पास तु । अवर सात जिनवर नमुंए । वंछित पूरइ आस तु ॥१९॥ ऋषभ देहरइ हिवइं जिन नमुंए । दश वलि भमती होइ तु । नाइ घरै छइ पास जिन । त्रिहतालीस बिंब जोइ तु ॥२०॥ ऊंची सेरी शांति जिन । भणसालीनई नामि तु । अरिहंत त्रेवीस हुं नमुंए । उसवालानइ ठामि तु ॥२१॥ सोलम जिन छ विवस्यु ए । नमतां हुइ प्रेमि तु । चंद्रप्रभ भीलडीतणा ए । इक नमता हुइ षेम तु ॥ २२ ॥ सावकु पासजिन पूजतां ए। इईडइ हरिष अपार तु । अवर बावीसइ जिन नमुं ए। पामउ सुख अपार तु ॥ २३ ॥
॥ ढाल गउडीनउ ॥३॥ पाटक पीपला नामि । शांति जिणेसर च्यारि प्रतिमा अवर
नमुंए। अजितादिक जिन सात । चिंतामणि ए साह वळू देहरासर
नमुं ए ॥ २४ ॥ विश्वसेन कुलमांहिं चंद। नंद अनोपम अचिरा राणी तेह तणुए। अवर वीस जिण पूजी । आव्या बोजइ ए पास चिंतामणि
ए भणु ए ॥२५॥
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सतसठि जिनवर होई। प्रणमी आवीइ पराकोटडी जिहां
अछइ ए। आसधीर ठाकर देहरइ । चंद्रप्रभ जिनवर बि प्रतिमा पूजी
अछइ ए ॥२६॥ सदयवछ ठाकर देहरइ । पास जिणेसर बि प्रतिमास्युं पर
वा ए। अष्टापद-अवतार। देषी हरष्या ए चंद्रप्रभजिन गुणि भर्चा ए ॥२७॥ ओगणसठि जिनबिंब । थंभ अनोपम विंब रयणमय इक
भणुंए। परतरनउं वली चैत्य । सोलम जिनवर बावनजिणालं तेह तणु
ए॥२८॥ जुहारी आव्या बीज।प्रथम जिणेसर(अ)दभुत प्रति पेखिलाए। चैत्य बिना मेली । बिसइ बिहुत्तरि मातपिता जिन निरपीला
ए॥ २९ ॥ सोनी तेजपाल घरि । पास जिणेसर उगणत्रीस प्रतिमा
जुहारीइ ए। रोकर सोनीगेहि सुमति जिणंदजी प्रतिमा च्यारि उद्धाराइ
ए॥३०॥
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॥ ढाल सामेरी ॥४॥ आव्या पाटकि बांगडीइ रे। ऋषभनइ देहरइ चडीइ । जिहां पाप अढारइ नडीइ रे। पुण्यरयणे तिहां वली जडीइ३१ जिमणइ पद्मप्रभ स्वामी रे । पास पूरइ वंछित कामी ।, त्रणि सई पंच्योत्तरि प्रतिमा रे । निरुपम जेहनउ महिमा।।३२॥ मणिहट्टीनइ देहरइ रे । वीरजिनमहिमा मेर इ । प्रतिमा पंच ते जाणउं रे। देवदत्त चैत्य वखाणउं ॥ ३३ ॥ तेर जिणेसर भावी रे। मांका महितानइ पाटकि आवी। मृगलंछन जिन रंगइ रे । अवर वीस जिन चंगई ॥ ३४ ॥ पाटकि कुंभारीइ पेषी रे । सोनी अमीचंद घरि जिन निरषी शांतिजिन हईइ धरिउ रे । सतर जिनस्यु परिवरीउ ॥३५॥ वछू जवहिरी घरि दीठा रे । चुचीस जिनवर बइठा । जिनपूजा भावई कीजइ रे । समकित लाहउ लीजइ ॥ ३६॥ ढाल जलहीनउ ॥५॥ त्रिणि पल्योम भोगवीए ढाल तंबोलीवाडइ आवीआ भावीआ देव सुपास । प्रतिमा दीपइ बहुत्तरि पूरइ जन-मन आस । वीजइ देहरइजिनवर सात नमउ ते सार । बुहरा रूपा मंदिरि आदि जिणंद उदार ॥ ३७॥ प्रतिमा दश छइ मनोहर सुर नर सारइ सेव ।
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मेघा पारषि घरि अछइ चंद्रप्रभ जिन देव । पांच ज प्रतिमा प्रणमीअ आव्या घूसीनइ गेह। दोइ जिणेसर बंदीअ कीधा निरमल देह ॥ ३८ ॥ सहासीराज देहरासरि संभव जिनवर होइ। प्रतिमा बिसई पंचावन भवियणभावई जोइ ।
जडानइ पाकि सारंग देहरासर तेह । नव प्रतिमा नमी करी बंबडावाडउ जेह ॥ ३९ ॥ विश्वसेन-नंदन निरपीआ परपीआ नवाणउं देव । मंडप रचना चउकीअ हईडं हरिष्यु ए हेव । वडी पोसालनइ पाटकि सेठिं सोमानइ गेह। ऋषभादिक जिन चउत्रीस दीपइ सुंदर देह ॥ ४० ॥ भुजबल सेठि देहरासरि बिंब श्रेयांसस्वामी। पंचइ पडिमा रयणमइ त्रणि अवर जिन पामी ॥ वाडीअ पुरवरमंडण नयणे निरच्या आज । वीजा जिनवर पंच ए सारइ वंछित काज ॥४१॥ सहसा पारषि घरि नमउं पास जिणेसर भावि । तेर प्रतिमा अवर अछइ ऋषभनइ देहरइ ए आवि । तेर जिणंद तिहां निरपीआ हम्पीआ मानव मन । भावई पूजा जे रचइ तेहना जनम ए धन्न॥ ४२ ॥
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॥ ढाल ऊलालानउ ॥६॥ पाटकि सहानइ' ए आवी । आदि जिणंद तिहां भावी सत्यासी पडिमा ए देषी। . रायसिंघ घरि शांति निरषी ॥ ४३ ॥ सत्तरि कंदी बिंब तिहां वंदी । पाप अढारइ निकंदी । कंसार वाडइ ए दीठा । शीतल जिनवर बईठा ॥४४॥ द्वादश बिंब ए नमीआ । आठ महाभय ए शमीा । बीजइ शांतिजिन पूज्या । बावीस पडिमाए बूझ्या ॥ ४५॥ सहा चांपानइ घरि । बिंब सोल देहरासरि । रयणमइबिंब बइ ठवीआं । चउथा सहा घरि नमीआं॥४६॥ वंद्या पास जिणंद । चउवीस दीपइ दिणंद । भला वैद्यनइ पाटकि । चंद्रप्रभ दीपइ हाकि ॥ ४७ ॥ प्रतिमा बइ नमी भावि । भइंसातवाडइ ए आदि । शांति जिनादिक छत्रीस.। गोयमस्वामि मुणी श॥४८॥
॥ ढाल फागनउ ॥७॥ सहावाडइ हिवइं आवीइ भावीइ देव सुपास । पंच्यासी पडिमा नमी आवीइ देहरइ पास । सप्तफणामणिशोभित ओपित देह उदार । छसइ बारोत्तर भेटीइ मेटीइ पाप अढार ॥ ४९ ॥
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सगरकूइ हवई जुहारीइ सारीइ पूजा पास । पडिमा वीस वंदी करो सेठि पुंजानइ वासि । ऋषभादिक जिन त्रीसइ ए दीसइ महिमानिधान । जयचंदसेठिनई मंदिरि सुंदर शांति प्रधान ॥ ५० ॥ तेत्रीस जिनवर निरपीआ हरषीआ भवअण सार । हिबदपुरइ हवई जाईइ गाईशित्त उदार । ऊपरि पंच सेाहइ वली मेलो सयल जिणेश । पाटक मोढ २नइ ए सोहइ च्यारि दिणेश ॥५१॥
॥ कनक कमल पगलां ए ढाल ॥८॥ पाटक नारंगइ आवीआ ए। भावीआ पास जिणंद । नारिंग प्रभु भेटीइ ए। भेटइं मंगल होइ। नारिंग प्रभु भेटी०॥ चंद्रवदन तुह्म देषतां ए । हूउ हृदय उल्हास । नारिंग०॥५३॥ मूरिज कोडि थकी घणउं ए। दीपइ तेज प्रकाश नारिंग०५४॥ पूजई पदमा पामीइ ए । नामइं आठइ सिद्धि नारिंग०॥५५॥ बइयालीस पडिमा परगडी ए। आव्या शोभी गेहि ।
नारिंग०॥५६॥ त्रीस उपरि बइ सइंवली ए । जुहारी मननइ भावि ।
___ नारिंग० ।। ५७॥ सोनारवाडइ शांति नमु ए । पडिमा चऊद उदार ।
नारिंग० ॥ ५८ ॥
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बीजइ देहरइ वीरजिन ए । पोढी पडिमा एक । नारिंग०॥१९॥ फोफलिआवाडइ पढम जिन अट्ठोत्तर जिनबिंब । ना० ॥६॥ वीजें देहरुं शांतिनु ए । पडिमा पंचवीस होइ । ना० ॥६१ ॥ देहरइ राजा सेठिनइ ए । वंदउ संभव देव । ना० ॥२॥ पडिमावीस तिहां दीपती ए । काछेलानइ चैत्य। ना०॥६॥ मुनिमुव्रत जिन पूजीइ ए । पडिमा बार विचारि। ना० ॥६४॥ सेठि वीरजी देहरासरि ए। पूजउ पास जिणंद । ना०॥६॥ पडिमा च्यारि ज सोहती ए । थावर पारषि गेह । ना०॥६६॥ छयालीस पडिमा दीपती ए । सेठि महुला घरि आवि ।।
ना० ॥६७॥ मुनिसुव्रत जिन वंदीआ ए । प्रतिमा पन्नर सार । ना० ॥६॥ सेठि ककू देहरासरू ए । चउत्रीस पडिमा पास । ना०॥६९॥ सेठि राजा देहरासरू ए । छत्रीस बिंबज नेमि । ना०॥७॥ दोसी वछा घरि आवीआ ए। पूजीआ पास जिणंद ।
ना० ॥ ७१॥ पन्नर पडिमा वंदीइ ए। पंचमइ देहरइ पास । ना०॥ ७२ ॥ प्रतिमा दस तिहां दीपतीए । वंदी आणी भाव । ना० ॥७३॥
॥ ढाल ॥ वइरसेनराइं व्रत ली ए० ॥९॥ जोगीवाडइ आवीआ ए । प्रभु पासजिणेसर भावीआ ए। पडिमा वीस तिहां वंदीइ ए । सयल पाप निकंदीइ ए॥७४।।
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सेठि विद्याधर घरि भणी ए। चउत्रीसइ पडिमा जिनतणीए। दोसी भोजा घरि भणउंए।श्रीपास जिणेसर हुथुणउंए।।७५॥ दस पडिमा तिहां सोहती ए । रयणमइ एक ज मोहती ए। मफलीपुरि वामातनू ए बारइ प्रतिमा धन धनू ए॥७६॥ मोलीवाडइ दीठडा ए। पास जीराउल बइठडा ए। विब चउवीसइ जिनतणां ए । पूरइ वंछित कामणा ए॥७७॥ पाटक मांडण महितला ए । संभव जिनवर दीठला ए। नव पडिमा तिहां गुणि भरी ए। सयल लोकनइ जयकरी ए७८. धनराज देहरासर लही ए। पासप्रतिमावली तिहां कही ए। चिउंआलीस पडिमा मिली ए। रयणमइ एक ज तिहां वली
ए॥७९॥ सेठि कमलसी देहरासरू ए । शांति जिनेसर मनहरू ए। छत्रीस पडिमा सुंदरू ए भविअण जननइ सुखकरू ए ॥८॥
. ॥ इंद्राणी जिन पुंषीआ ए ढाल ॥१०॥ गदावदा पाटकि आवीआ ए। भेटीआ शांति जिणंद तु । धनधन जिनवरू ए । पेषतइ परमानंद तु । भविअण जयकरू
ए॥८१॥ अठावन जिनवर बंदी ए । गला जिणदत गेहि तु ।
धन २॥जि०॥ ८२॥
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अचिरानंदन निरषी॥ ए। पडिमा पंचवीस जोइ तु ।
धन २ ॥ जि०॥ ८३॥ धुपा धला घरि हवइं आवीइ ए । परपीआ सात जिणंद तु।
धन २॥ जि० ॥८४॥ पाटकि मल्लिनाथ वंदीआ ए । एक सउ छिउत्तरि देव तु ।
धन २॥ जि० ॥ ४५ ॥ पाटक भाणानइ आवीआ ए । सेवीआ पास जिन स्वामि तु ।
धन २॥ जि० ॥ ८६॥ अठाणुं जिनवर सुंदरू ए । समुद्र फडीआनइ ठामि तु ।
धन० २॥८७॥ विश्वसेननंदन वंदीआ ए। पडिमा अवर अढार तु ।
धन० २॥ ८८॥ पाटक चोषावटी आवीआ ए । शांति ज जिनवर भावि तु।
धन २॥ जि० ॥ ८९॥ दसजिनवर पूजीआ ए । साणेसर वंदिवा आवि तु ।
धन २॥ जि० ॥१०॥ ऋषभादिक आठ जिन पेषीआ ए। पाटकि बलिआनइ
भावितु । धन २ जि० ॥९॥ रिसह जिनवर पूजीआए । इग्यारनइ प्रमाणि तु ।
धन २॥ जि० ॥९२॥
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महिता अबजी पाटकि जाणीइ ए। शीतल जिनवर देव तु ।
धन २॥ जि० ॥ ९३ ॥ जिनवर सात तिहां अरचीआ ए। लहु देहरइ जिन शांति तु।
धन २॥ जि०॥ ९४॥ ॥ ढाल ॥ बाहुबलि राणानी० ॥११॥ कुसुंभीआ पाटकि हिवई । दीठला शीतल देव रे । उगणीस पडिमा तिहां जुहारीइ । वारीइ दुरगति देव रे॥९५॥ पेषउ २ श्रीजिनचंद्रमा । पामउ २ सुक्ख उदार रे । भविअ चकोर जिणइ दीठडइ । उल्हसइ हईइ अपार रे। पेषु २
श्रीजिन० आंचली ॥ बीजइ देहरइ हिवइं वंदीइ । पासजिनप्रतिमा बार रे। जगपाल देहरासरि नमी । पडिमा वीस ज सार रे॥पेषु०९६॥ वाछा दोसी परि हिवइ पूजीइ । मोहनपास जिनदेव रे । सोल ज बिंब अवर नमुं । कीजइ २ भगतई सेव रे।।पेषु०॥९॥ नाकरमोदीनइ पाटकई । पूजउ २ पास जिन स्वामि रे । प्रतिमा शत वली बार भणुं । पहुचइ २ वंछित काम रेपेषु०९८ नानजी पारपि घरि वली। पूजु २ वासुपूज्य जिनदेव रे । प्रतिम सोल अवर अ छइ । धर्मसी घरि शांति देव रो।पेषु०९९ एकत्रीस जिनबिंब भाव सोउं । वंदीइ हरषि उल्हासि रे। सांडा पारषि देहरासरई । वंदउ२ श्रीजिन पास रे॥पेषु०१००
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तेत्रीस प्रतिमा अवर भणी । रत्नमय छइ वली एक रे । सोप बिंब वलीजुहारीइ । अरचीइ पुष्फि विवेक रे।पेषु०॥१॥
॥तस्तलि नरपति छाहडी ए ढाल ॥ १२॥ मोहन पास जुहारीइ जी। गालू संघवी ठामि । छवीस पडिमा वंदी करो जी। कीजइ जनम मुकाम ॥२॥ मुगुणनर भेटउ श्री जिनराय । हईडलइ भाव धरी घणउ जी।
. आंचली ॥ [पूजउ त्रिभुवनराय ।। हेमराज देहरासरि भणुं जी। सुमति जिणेसर देव । इक पडिमा वली तिहाँ अछइजी । त्रिभुवन सारइ सेव ॥३॥मु० राजधर संघवी घरि थुगुं जी । विमल जिणेसरस्वामि । च्यारि प्रतिमास्युं सोहती जी । जईइ लटकण ठामि ॥४॥मु० शांति जिणंद तिहां पेषीआ जी। बार प्रतिमा वली होइ । भंडारी पाटकि हुं नमुंजी । पास पडिमा तिहां जोइ ॥६॥ मु० च्यारि प्रतिमा वली तिहां कही जी।पाटक भाभानिपास। इकावन पडिमा पूजीइ जी। पूरइ वंछित आस ॥ ६॥ सु० तेजपाल सेठि देहरासरि जी । धर्म जिणेसर स्वामि। सतर पडिमा पूजतां जी। सीझइ वंछित काम ॥ ७॥ सु० सहसकिरण घरि निरपीआ जी । सुमति श्रीजिनराय । पंचवीस पडिमा अरचीइ जी। पंचायण घरि आइ॥८॥९०
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शांतिमूरति निरषी करी जी । जिनवर त्रइसठि जेह । लोंबडी पाटकि आवीइ जी।सारंगदोसी गेह ॥१॥ मु० सप्तफणामणि पासजो रे। बार जिणेसर देषि । रायचंद दोसी घरि वली जीशांति जिणेसर पेषि॥१०॥मु० सोल प्रतिमा अवर अछइ जी। रयणमयी पडिमा दोइ । शांति देहरइ हिवइ आवीइ जी।सोलम जिणेसरजोइ॥११॥सु० चौद प्रतिमा तिहां वंदीइ जी। लीजइ पूजी लाह । नवउ प्रासाद सोहामणउ जी दीठउ मननइ उछाह ॥१२॥१०
॥वीर जिणेसर दीए देसना ढाल ॥१३॥ करणा साहा पाटकि अछइ ए । शीतल जिनवर देव तु । पेपिला ऊलट अति घणइ ए । सतसठि जिनवर सेव तु ॥१३॥ पूजीजइ शीतल सुंदरू ए। सुंदरमुख जीसिउ चंद तु। तेजि दीपड़
दिनकरू ए ॥ आंकणी ॥ दोसी वीरा देहरासरू ए। श्रेयांस जिनवर सार तु । तेर प्रतिमा अवर नमुं ए-भेटू शेज-अवतार तु॥ १४॥पू०॥ दोसी वीरपाल घरि भणउं ए । ऋषभदयाल जिनदेव तु । बिंब अढार अरचीइ ए । महिता समरथ घरि हेव तु॥१५॥पू० तिहां नमुं वामानंदन ए । सतर विव वली जुहारि तु । हरिचंद घरि कुंथु जिणेसरू ए । सात पडिमा मनोहारितु॥
॥१६॥ पू०॥
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सहा धर्मसी देहरासर धुणुं ए। चंद्रप्रभा जिनवर स्वामि तु । सतालीस पडिमा वंदी ए । शवजी संघवी ठामि तु ॥ १७॥ पू० शिवादेवी नंदन चरचीइ ए । पडिमा चोंद उदार तु । रयणमय पडिमा च्यारिभणीइ ए। तेजतणउ नही पार तुा १८५० पारषि सारंग शांतिजिन ए । अठतालीस बिंब ज होइ तु । सहा कमा घरि आवी ए । शांति जिणेसर जोइ तु || १९|| पू० सतालीस पडिमा जुहारी ए । पट बि तिहां विचारि तु । रयणमय पडिमा च्यारि कही ए। रूप्पमयं एक जसार तु॥२०५०
|| नाचइ इंद्र आणंदस्युं ढाल ॥ १४ ॥ arrass आवs | वुहरा वीरदासनइ गेह रे । वासुपूज्य जिन पूजीइ । जिन चउवीस सुदेहरे ॥ २१ ॥ गाव २ जिनवर गुणि भरया । पामउ २ सुक्ख विशाल रे । मनमोहन जिन दीठss | हईडइ हरिष रशाल रे || आंकणी ॥ रयणमय पडिमा इक नमी । हीरा विसा घरि जेह रे । शांतिजिणेसर दस वली | दीइ निरमल देह रे ||२२|| गावु || सहि संघवी घरि भणउं । मृगलंछन जिनराय रे । छ जिनवर अवर नम्या । हस्ती चित्र सुठाय रे ||२३|| गा०|| वीर जिणेसर देहरइ | पूज्या त्रिसला पूत्र रे । च्यारि पडिमा अवर नमी । हीरजी घरि पहूत रे || २४गावु० ||
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अचिरानंदन जिहां अछइ । दस जिणंद उदार रे। शांति देहरइ ते जुहारीइ । सात बिंब छइ सार रे॥२५ गावु०॥ विमलसी सेठिनइं घरि वली। आठ बिंब मन मोहइ रे । रयणमय जिनवर बिंब तिहां। तेजई अतिघणुं सोहइ रे।।२६मा० पारषि पुंआ घरि भणउं । ऋषभजिनंद दयाल रे। रजतमय बिंब ज च्यारि अछइ । इग्यार जिन मयाल रे॥२७गा० घेतलवसहीपासजिन् । दीपइ पूनिमचंद रे। बिसय सतालीसबिंब नमु । पेखिला परमानंद रे ॥२८॥गावु०॥ पूजा कीजइ भावसिउ । जिनवर अंगि सुचंग रं। सूरीआभइ जिम पूजीआ । सोहमइ मनरंगि रे॥ २९॥ गावु०॥
॥धन२ साधु जे बनि रहइ ए ढाल ॥ १५॥ पाटक लटकण आवीआ। दोसी गपू घरि । अजित इग्यार पडिमा वली। अरचु पूजु सुपरि ॥३०॥ मुणि २ भवियण पाणीआ । लाधउ जिनधर्म । पूजा भावना भावीइ । ए कहीउ मर्म ॥ आंकणी ॥ सहा वाछा घरि हुँ भणुं । चंद्रप्रभ स्वामी । एकावन जिनवर निरपीआ । छ रयणमय पामो ॥३१ सु०॥ लालजी घरि सुंदरू । संभव जिन देव । प्राणउं बिंब तिहां दीठला । कीजइ जिनसेव ॥ ३२ सु०॥
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देहरइ शांतिजिन निरपीआ। बावीसइ पंती। वीरजी घरि सोलम जिन् । बायोसइ पंती ॥ ३३ सु०॥ कुंपा दोभी पाटकि आवीआ। रिसहजिन भावउ । आठ प्रतिमा तिहां वंदीइ । भावना भावउ ॥ ३४॥सु०॥ दोसी गणीआ घरि हवइ । पास पडिमा होइ । बा वीस जिनवर परपीआ। पंडित जन जोइ ।। ३५ सु० ॥ सतर भेद जिन पूजीइ । ज्ञातासूत्रइ भाषी। जिनवचन हईडइ धरी । द्रुपदी साषी ॥ ३६ सु०॥
॥ राग मेवाड ए ढाल ॥ १६ ॥ विसावाडइ पुंजा सेठि घरइं। पासजिन निरष्यारे आज। मोल प्रतिमा रयणमय इक वली। दीठइ सरीआं रे काना मूरति निरषु रै जिननी भावसिउं। ते नर नारी धन्न । जे निजभावई पूजा आचरइ । ते नर लहइ बहुपुन्य ।। ॥आंचली। सेानी अमर दत घरि धर्मजिन। पडिमा इग्यार जेहा विसा विमूनइ देहरासरि । जिन त्रेवीसमु वली तेह॥३८॥ अवर अढारइ जिन तिहां वंदीइ । रत्नमय एक ज सार। अमरपाल देहरासर भणउं । अजितह रयण उदार ॥३९॥मू० पतिमा त्रणि वली जिहां अछइ । देहरइ पुहुता रे जाम । सोलम जिनवर निरष्या भावसिजी पंचास पडिमा रे ठाम४००
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सरहीआ वाडइ ऋषभजिणेसरू । त्रेवीस जिनवर जुहार । दोसी वाडइं हटूनइ घरि । शांतिजिन दीठ रे सार||४१ मू० ॥ शांतिनाथनइ पाटकि । लिषमीदास देहरासरि जिनशांति। प्रतिमा बारइ पूजइ भावस्युं । टालइ भवनी भ्रांति || ४२ मृ० ॥ संघराजन घरि वामानंदन | पन्नर पडिमा रे तांहि । हेमा सरही घरि हिवड़ आवी । श्रेवीसमउ जिन ध्याइ४३मू० छयालीसपडिमा अवर जुहारी । लीजइ भवनु रे लाह । शांतिमूरति सयालीस वली अछइ । टालइ भवनु रे दाह||४४० पास कंबोईड ते वलि जुहारी | सात ज पडिमा रे सार । कटकीआवाडइ रिसह ज पूजीइ। पंचावन जिन उदार ।।४५ मृ० सेठ विमलदास घरि अजितजिणेसरू । चौदह जिन धन धन्ना निरषु जिनजी हई हरिषस्युं । तसु वली वाघ इ वन्न || ४६ मू० आनावाडs रंगई आवीह । दीउला श्रीजिन नेमि । प्रतिमा चुत्रीस भाव पूजीइ । जिम पामउ सवि षेम || ४७० ॥
॥ ऋषभ घरि आव छइ ए ढाल ॥ १७ ॥ आए सालवीवाडइ आबीह । त्रसेरीआ वली मांहि । । नेमि जिन जुहारउ जी । राणीरायमइ वल्लहु ।
जीवदया प्रतिपाल || नेमि० ४८ आंचली ॥ सत्यासी जिन पूजीइ । देहरइ श्रीजिनमल्लि|| ने मि०४९
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पंच्योत्तरि बिंब निरपोआं । कूरसीवाडइ आवि।नेमि०५०॥ शांतिजिन तिहां परपीआ।अवर बिंब तिहां तेर ॥ नेमि०५१॥ कईआवाडइ वीरजी । प्रतिमा पंच उदार ॥नेमि० ॥५२॥ रायचंद संघवी वासुपूज्य । बिब चौद विचारि॥नेमि०॥५३॥ कल्हारवाडइ शांतिजी । बिंब पंचावन होइ ॥नेमि०॥५४॥ दणायगवाडइ पढम जिण । सत्तरि जिनवर जोइ॥ नेमि०५५ धांधुलि पाटकि सुविधि जिन । एकोत्तरि जिनसाराने मि५६ ऊंचइ पाटकि पासजी । जिन नमुंत्रणइ ताहि। नेमि०५७ ॥ सत्रागवाडइ जुहारीइ । बिंब नव तिहां पास। नेमि०॥५८॥ घुनागवाडइ आवीइ । दस बिंब पासस्युं होइ । नेमि०६०॥ गोल्हवाडइ श्री पासजी । पडिमा पंच तिहां दीठ॥नेमि०६१ बीजइ देहरइ त्रेवीसमु । पडिमा शत उगणीस नेमि०॥६२ ॥ रयणमय पडिमा एक क्ली। ठाकरसाहनइ गेहि ॥ नेमि०६३ पास जिणंद तिहां दीठडा। पूगी मननी आस । नेमि० ॥६४॥
॥ढाल माई धन्न सुपन्न० ॥ १८ ॥ पेषउ धउली परवई । मुनिसुव्रत जिन देव । बावन जिनपडिमा । सुर नर सारइ सेव । दूदा पारषि परि छइ । शांति जिणेसर राय । पंचइ जिन नमतां । मुख संपद सवि थाइ ॥६५॥
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दोसी देवदत्त घरि छइ । चंद्रप्रभ जिन स्वामि । सततालीस जिनवर । पूजतां शिव ठाम । सोनी रामा घरि छइ । पास जिणंद जुहारउ ।। अढारइ जिनवर पूजी। भवभय वारउ ॥ ६६ ॥ बिंब रयणमइ वंदु । तिहां छइ एक ज सार । बइ पट्ट अनोपम । दीठइ सवि सुखकार ।
गोदडनइ पाटकि । पूजउ ऋषभ दयाल । ..जिन सरिषा वरणई । पेषउ रंग रशाल ॥ ६७ ॥ .
एकसउ चिउंऊत्तरि । प्रणमंता हुइ प्रेम । विसा थावर घरि छइ । रिषभ करइ ते षेम । चौदह जिण पूज्या । तिहां निज उत्तम भावि । दोसी हीरजी देहरासरि । हडइ हरषई आवि ॥६८।। पासह जिण निरष्या। तिहां वली ऊलट आणि । - उदयकरणनइ घरि । ऋषभ जिन अमृत वाणि।। .: बावन छइ जिनवर । पूजउ हरषि अपार । जिनवर गुण गातां । सुख पामउ बहु वार ॥ ६९॥
॥ कुंकुम तिलक ए ढाल ॥ १९ ॥ पाटकि नाथा सहानइं आवउ । शांति जिणेसर भावउ । एकसउ नवागउं देव । हरषिउं हइडउं हेव ॥ ७० ॥
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दोसी वछानइ घरि । चंद्रप्रभ देहरासरि । सत्तरि जिनबिंब नमीइ । संसारमाहइं न भमोइ ॥ ७१ ॥ सेठि पचू देहरासरि । चंद्रप्रभ जिन सुखकर। सोल बिंब तिहां साहइ । सीपमइ इक मन मोहइ ॥ ७२ ॥ सूरजी सेठि घरि आव्या। पनर जिनबिंब भाव्या। दोसी रामानइ घरि । ओगणपंचास जिनवर ॥ ७३ ॥ दोसी रहीआघरि देव । ओगणत्रीस कीजइ सेव । महितापाटकि निरपउ । मुनिसुव्रत जिन परपउ ॥ ७४ ॥ वीस जिणंद तिहां जुहारउ । पूजी समकित धारउ । सहा वछा घरि पास । त्रणि जिन पूरइ ए आस ॥७॥ जिन सरिषां बिंब जाणउ । पेषी भाव मनि आणउ । नियम व्रत मूध ए पलिउ । समकित रयण अजूालउ॥७६॥
॥ढाल भमारूली ॥२०॥ जिन चैत्य इम जुहारीइ तु रिममारूली। एक सउ एक वषाणि तु! अणहल्ल पाटणि एतला तु रिभमारूली । देहरासर वली
जाणि तु ॥ ७७॥ नवाणुं ते रूअडातु रि भमारूली। प्रणमउ भगतई सोइ तु । पाप अढारइ छूटीइ तु रि भमारूली ।सुख संपद सवि होइ तु॥७८ विद्रुममय बिंब एक भणउं तु रि भमारूली । सीपमय बिंब
बे होइ तु।
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रयणमय जिन पडिमा थुगुं तु रि भमारूली । अडत्रीस
ते वली जोइ तु ॥ ७९ ॥ देहरा बिंब जुहारीइतु रि भमारूली। सहस पंच विचारितु। शत च्यारि ऊपरि वली तु रि भमारूली । सत्ताणउं वली
सार तु ॥ ८०॥ देहरासर जिन पूजीइ तुरि भमारूली सहस विजिनस्वामितु। शत आठ अधिक भण्या तु रि भमारूली । अठसठि
पूरइ काम तु ॥ ८१॥ आठ सहस त्रणि शत वली तु रि भमारूली ॥ चउराणुं
जिन जेइ तु। गौतम बिंबच्यारिननु तु रि भ० च्यारिज पट्टज होइ तु ८२
॥ ढाल विर जिणेसर वंदीए ॥ २१॥ वाडीपुरवर-मंडणउ ए । प्रणमीय २ अमीझरउ पास तु । आस पूरइ सयलतणी ए । पूजीइ २ आणी भाव तु ॥
॥ वाडीपुरवर-मंडणउ ए । त्रूटक। वाडी-मंडण वामानंदन । सयलभुवनइ दीप ए। नमइ अमर नरिंद आवी । सयल दुरजन जीपए । अवर बिंबह एक नमतां । भगतशंकट चूरए । दुलतपुरि जिन एक नमतां । सयल वंछित पूरए ॥८३।।
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कुमरगिरि जिन शांति नमुंए। महिमा ए२ जिनतणउहोइ तु । वाणीइ अमृतसम भणी ए। परतर २ चैत्य विशाल तु ।।
॥ कुमरगिरि जिन शांति नमुंए । त्रूटक। नमुं शांति नवइ जिनवर । भमतीइं पंचास थुगउं । पोसालमांहि चैत्य निरूपम । शांतिजिणवर तिहां भण। छत्रीस बिंब अवर नमीइ । गभारइ ते सुख करू । पीतल-पडिमा च्यारि सई वली । छऊपरि मनहरू ॥८४॥ सोलम जिनवर बंदीइ ए । वावडी २ जिनवर सार तु । अढारइ पडिमा सुंदरू ए । वडलीय २षरतरचैत्य तु ।
॥सोलम जिनवर वंदीए ए॥ टक ॥ वंदीइ ते सोलम ।जनवर । च्यालीस पडिमा जाणी। श्री जिनदत्तसूरी महिमा पूरइ । जगत्रमांहि वषाणीइ । श्री वीरचैत्य वंदउ नित्यई । मूरति अतिसोहामणी। नगीनानइ चैत्य आवी।पार्थजिन सात ज भणी ॥ ८५ ॥ नवइ नगीनइ आवीइ ए । पेषीइ २ श्री जिनशांति तु । पंचतालीस मूरति पूजीइ ए। पूजतां २ आणंद होइ तु ॥
नवइ नगीनइ आवीइ ए ॥टक ॥ नगीनइ ते नवइ आवी। बहुत्तरि जिणालुं निरषोइ । त्रण मूरति अवर पेखी । सूधउ समकित परषीइ ।
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अवर ठामे जेह देहरा । देहरासर पार ज नही। अगतिभावई ऊलट आणी । आदर करि बंदउ सही॥८६॥
॥ गुरुजी रे वडामण९ ए ढाल ॥ २२ ॥ कतपुरि देहरइ दीठडा तु । शांतिजिणेसर भावइ रे । एक जिनवर तिहां वंदीआ तु । समोसरण हिवइ आवि रे।८७ जिनजी रे तुम्ह गुण घणा तु । गातां नावइ पार रे। चंद्र किरण जिम निरमला तु । मुगताफल जिम सार रे । ॥आंचली। पढम जिणेसर पूजीइ तु । सात जिणेसर चंगइ रे। रूपपुरि रंगई आवी तु । पास भेटया मनरंगई रे ॥८८जिन छिउत्तरि जिणंद पूजीआ तु । भमतीई जिन चउवीस रे । बीजइ देहरइ ऋषभजिन तु। बइ पडिमा नामउं शीस रे।८९जिन० महिता डुंगरि घरि भणुं तु । अजितजिणेसर देव रे।। छासठि जिणंद अरचीइ तु । सेठि बोघा घरि हेव ।९०निन चुवीस जिणंद निरपीआ तु । सेठि गणराज घरि आवउ रे । इसठि जिनवर तिहां अछइ । सेठि वस्ता घरि भावउ रे ॥९१ शांति जिणेसर पूजीइ तु । इग्यार जिनवर सार रे। सेटि जगू देहरासरई तु । चुत्रीस जिन उदार रे॥१२॥जिनक बुहरा सांडा देहरासरि तु । पास जिणेसर देव रे । उगणच्याली सइ जिनवरा तु । गौतम की नइ सेव रे ॥९३-१
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रंगा कोठारी घरि भणउं तु । सोलम जिणेसर स्वामी रे। चौद जिनवर तिहां भावीआ तु । सेठि कुंअरजी परि
पामी रे ॥९३ जिन ॥ विश्वसेन कुल माहइं दिनकरू तु । चौद पडिमा तिहां भावी । अनंत गुण छइ जिनजीना तु । वयणे अमृत श्रावी ।९४जिन चाणसमइ ते पूजइ तु । भट्टेवु श्री पास रे। चउत्रीस प्रतिमा निरषतां तु । पूगी मननी आस रे।९५जिन कंबोईइ सिरिपासजी तु । पडिमा पंच विचार रे । भमतीइ सोल बिंब अछइ तु । मुंजपुरि णिजिन सार रे ॥
॥९६॥ जिन०॥ ॥ एहवउ रूअड्डु रे नारिंगपुर ॥ ए ढाल ॥ २३ ॥ मई भेटिउरे संखेसर श्रीपासजी रे । ध्याय उ हईडा मांहि । गुणसागर रे २ भविअण जननई सुखकरू रे । जस नामई रे नवनिधि घरि सवि संपजइ रे । आवइ वरण अढार वंदइ रे २ भावई घराणद पुरंदरूरे॥९॥ इम स्वामी रे सविजननइ छइ हितकरु रे । जोतां आनंद होइ । मुख सेहिइ रे २ निरुपम पूनिम चंद जि
॥ आंचली॥ [सउ रे ॥ इम० जस महिमा रै त्रिभुवनमांहई व्यापीउ रे। नमइ अमरनरिंद । पूजइ रे २ व्यंतर ज्योतिष दिवाकरू रे।
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जिन ध्यातां रे मारगि शंकट सवि टलइ रे ।
दुखडां नासह दूरि । पामइ रे २ सुखिपद सवि सुहाकरू रे ॥ ।। ९८ ।। इम० ।। गछि पूनम रे शाखा चंद्र वषाणीइ रे । श्री भुवन प्रभ सूरि : गुण रयणे रे २ जलनिधि जिम हुइ गाजतु रे । तिम सोहइ रे कमल प्रभसूरी सरू रे ।
तमु पाटि पुण्यप्रभ सूरि । दीपइ रे २ तेजई दिनकरराजतु रे ।। ९९ ।। इम० ।। तसु पाटई रे श्री विद्याप्रभसूरी सरूरे । जेहवउ पूनिम चंद | नंदन रे २ गुरी माता तेह तणउ रे । जिम गगनई रे तारागणछेह नही रे । गंगा विलू न पार । गुण पूरई रे २ देहभरिओ श्रीगुस्तणउ रे || २०० इम० ॥ ज्ञानई ₹ भरी जिम हुइ जलनिधी रे ।
घम दम मद्दवसार । कीरति रे २ भूमंडलमांहि विस्तरी रे । तसु शीस न रे ललित प्रभरि इम भणइ रे धन धन चैत्य
प्रवाडि ।
पाटणि ३२ मनोहर चैत्य ज चिति धरी रे ॥ १ ॥ इम० ॥ संवत रे सोल वली अठतालडइ रे । आसो मासि विचारी । बहुल पखि रे २ चउथि तिथि वली जाणीइ रे ।
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आदित रे वार अनोपम ते कहिउ रे। तिणि दिन आदर आणि । भावई रे २ जिनना गुण वषा
णीइ रे ॥ इम स्वामी० ॥ जिन विंव ज रे जुहार- नव सहस सुंदरू रे । शत पांचइ विचारि अठाणउ रे २ ऊपरि ते वली हुं भ
गरे । ए सर्व जरै। ग्राम नगर पुर जे कह्या रे धरीआ संख्या मानि । अरचूं रे २ आणंद आणी मनि घणउ रे ॥२०३॥ ॥ कलश ॥
.. इम चैत्य-प्रवाडी मनि रूहाडी रची अति साहामणी । श्रीपास पसाई चित्ति ध्याई अणहल्ल पाटण तेहतणी । श्री सद्गुरु पामी धरउ धामी स्तवन रूपि सुहाकरो । संखेसरु श्रीपास स्वामी सयल भुवनइ जय करो ॥ २०४ ॥
इति श्री भट्टारक श्री श्री ४ श्री ललित प्रभमूरि कृता समस्त चैत्य प्रपाटिका संपूर्णा ॥
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१ संकुडिअजन्हुकुप्पर-गीवकरचरण बंधणावय वउ ।
अणुहबउ तुम्ह वयरी । जं लेहउ पावए मुक्खं ॥
संवत् १६४८ वर्षे पोष मासे वहुलपक्षे १ सोमे मु. गुणजी लिखितं ।। (चैत्य परिवाडीनी प्राचीन प्रतिनो अन्त्य लेख.)
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परिशिष्ट पंडित हर्षविजय कृता.
पाटणचैत्य-परिपाटी.
समरीय सरसती सांमनोए, प्रणमी गुरुपाय । पाटणचैत्य प्रवाडी, स्तवन करतां मुख थाय ॥ १ ॥ पाटण पुण्य प्रसिद्ध क्षेत्र, पुण्यनुं अहीठांण । जिन प्रासाद जिहां घणा ए, मोटइं मंडाण ॥२॥ मुझ मन अतिउमाइलो ए, जिनवंदन केरो। पाटण चैत्य प्रवाडी, करतां हरख्यो मन मेरो ॥ ३ ॥ प्रथम पंचासरे जाइइं ए, तिहां प्रासाद च्यार । पंचासर जिनवर तणो ए, देखो दीदार ॥४॥ चोपन बिंब तिहां अतिभला ए, वली हीरविहार। प्रतिमा त्रिण सहगुरु तणीए, मूरति मनोहार ॥५॥ तिहांथी ऋषमजिणंद नमुंए। बिंब पन्नर गंभारइ । एकसो बिंब अतिमलाए, भमतीए जुहारइ ॥ ६॥ वासुपूज्यने देहरे ए, बिंब त्रण वखाणुं। महावीर पासे वली ए, बिंब चारज जाणुं ॥७॥
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उंची सेरी शान्तिनाथ, प्रतिमा पंचास । एक उपर नमतां थकां, पोहचे मन आस ॥८॥ पीपले सावको पार्श्वनाथ, सडसठ प्रतिमा सोहे । सडतालीस बिंब शान्तिनाथ, भवियण मन मोहे ॥९॥ चिंतामणि पाडा मांही, शान्तिनाथ विराजे । पचवीस प्रातमा तिहां भलीए, देखी दुःख प्रभाजइ ॥१०॥ बीजे देहरे चन्द्रप्रभ, तिहां प्रतिमा वंदु । दोसत सडसठ उपरे, प्रणमी पाप निकंदु ॥ ११ ॥ सुगाल कोटडी प्रासाद एक, थंभणो पार्श्वनाथ ।। धर्मनाथ नइ शान्तिनाथ, शिवपुरीनो साथ ॥ १२ ॥
ढाल ॥ १॥ देशी वाहाणनी । राग मल्हार ॥ खराकोटडीमांहि प्रसाद मनोहरुरे । के प्रासाद मनो० । पंचमेरु सम पंच के, भवियण भयहरुरे । के भवि०॥ १॥ अष्टापद प्रासादके-चंद्र प्रभ लहीरे । के चंद्र० । नवसत उपर सात कि, प्रतिमा तिहां कहीरे । के प्रति०॥ चंद्रप्रभ प्रसादके, तेर जिणेसरुरे । के तेर० । पास नगीनो षट जिन । साथे दिणेसरुरे ॥ साथे०॥ २॥ शान्तिजिणंद प्रसाद । देखी मनहरखीएरे । देखी मन० ॥ चोरासि जिन प्रतिमा तिहां कणे निरखीएरे। तीहां कणे०३॥
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आदिनाथ जगनाथनी । मूरति अतिभलीरे । मूरति० ॥ पंचाणु तिहां प्रतिमा । वंदो मनरुली रे || बंदो० ॥ ४ ॥ प्रांगडिया वाडामांही । ऋषभ सोहामणा रे । ऋषभ सो० ॥ बिंब चारसे चार के | तिहां जिनवर तणारे । तिहां जिन० ५ ॥ दोय प्रसाद कंसारवाडे हवे वंदीए रे । वाडे ह० । शीतल ऋषभ नमी सब । दुःख नीकंदीए रे || के दुःखनी० ६ ॥ प्रतिमा तेर अठासी । बेहु देहरा तणीरे ॥ के बेहु० ॥ जिन नमतां घरे | लखमी होय अति घणीरे ॥ के लखमी ०७ ॥ साहना पाडामांही। ऋषभ जुहारीएरै ।। ऋषभ जु० । प्रतिमा दोसत बासी । मन संभारीए रे || के मन० ८ ॥ वाडीपासतणो | महिमा के अति घणोरे ॥ के महिमा० । वडी पोसालना पाडा। मांही श्रवणे सुणो रे । मांहि श्र० ९ ॥ एकसो सडतालीस | जिहां प्रतिमाय के रे । के जिहां प्रति । धोमुख बंदी जिनराज । ऋषभ नमीए पछेरे ॥ ऋषभ नमी० १० ॥ दोसतने पणयालीस । जिन प्रतिमा तिहारे । के जिन प्रति ॥ पंच बंधवनुं देहरु । लोक कहे तिहारे । के लोक० ११ ॥
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ढाल || २ || देशी हडीयानी ॥ देहरासर तिहां एक, देहरासर सुविशेष । शेठ भुजबलतनुं ए, के दिसइ सोहामणुं ए ॥ १ ॥
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नारिंगपुर वर पास, जागतो महिमा जास। दोसत बिंब भलाए, पणयालीस गुण निलाए ॥२॥
भेडा वाडामांही,शान्ति नमु उछांही। पंचसत जीनवरुए, एकोतरे उपरे ए ॥३॥ तंबोली वाडा मझार, सुपास नमुं सुखकार। एकसो त्रीस सदाए, प्रणमु जिन मुदाए ॥४॥ कुंभारीए आदिनाथ, प्रतिमा एकाशी साथ। देहरे कोरणीए, तिहां प्रतिमा घणी ए ॥५॥ सोल प्रतिमा मुखकंद, शान्तिनाथ जिणंद । मांका महिता तणे ए, पाडे सोहामणे ए॥६॥ मणीयाटी महावीर, मेरुतणी परे धीर । चालीस बिंबसं ए, प्रणमें भावसं ए॥७॥ तीर्थ अनोपम एह, मुज मन अधिक सनेह । दीठे उपजेए, संपदा संपजे ए ॥८॥ .. ....
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ढाल ॥३॥ पखालीए रे सेवो श्री शान्तिनाथरे ।
हु वंदु रे प्रतिमा तेत्रीश' साथ रे। .. १ तेवीस' एवो पण पाठान्तर छे.
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सावाडे रे सांमल पास सोहामणा
बिब पांच से रे पासे श्रीजिनवर तणा ॥ १ ॥ जिनवर तणा ते बिंब जाणुं । उपर सत्तावन्न ए ।
वीसमो जिनराज वंदूं । मोहिओ मुज मन्न रे । सातमो जिन प्रासाद बीजे । वंदीए ऊलट धरी । चालीस उपरे सात अधिकी सोहे तिहां प्रतिमा भली ॥२॥ सोलसमोरे शांतिजिनेसर जगजयो,
भसातवाडे देखी मुझ मन सुख थयो । पासठ जिन रे तिम वली कलिकुंड पासजी, जीराउल रे पूरे बंछित आसजी । आस पुरे गौतम स्वामी, लब्धिनो भंडार ए सगरकुइ पात्रीस जिनवर, पार्श्वनाथ जुहारए । हबदपुरमां धूभ वदूं जास महिमा अतिघणो, एकमना जे सेव सारे पूरे मनोरथ तेह तणो ॥ ३ ॥ वलियारवाडे रे, प्रतिमा सोहे सात रे । मूलनायक रे, शांतिजिणंद विख्यात रे । जोगीवाडे रे, जागतो जिन त्रेत्रीसमो । अठावन रे, प्रतिमासुं भणि नमो ॥ ४ ॥ नमो ऋषभ जिणंद बिजे, देहरे अति सुंदरु 1:
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छत्रीस प्रतिमा तिहां वंदो, नमे जास पुरंदरु । बसे छासठ ' मल्लिनिनवर, मल्लिनाथपाडे मुदा । बावन जिन ने बावन प्रतिमा, वंदीए ते सर्वदा ॥५॥ लखीयारवाडे रे मोहनपास महिमा घणो बिंब त्रणसे रे एकोत्तर तिहां कण गणो । सीमंधर रे स्वामी प्रासाद बासठ जिना । बिंब तेरसुं रे, संभव सेवो एकमना ॥ ६ ॥ एकमना सेवो सुमति जिनवर, साठ प्रतिमा सोहती। आठ उपरे न्यायसेठने पाडे, जनमन मोहती ॥ ७॥ चोखावटीए शांतिजिनवर, छेतालीस बिंब अलंकर्या । दोढसो जिन सुबलीए पाडे, रिषभजिन जग जय वर्या ॥८॥
॥ ढाल ॥४॥ अबजीमहेताने पाडे शीतलनाथ, प्रतिमा सडतालीस । प्रतिमा दोए शान्तिनाथ । कोसंबीयापाडे शीतलबिंब अढार, श्रीपासजिणेसर बीजे देहरे जुहार ॥
१ 'बासठ ' एवो पण पाठ छे.
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जुहारीए जिनवरनी प्रतिमा छासठ' मनने रंगे । सो प्रतिमा वायुदेवना पाडामां, धर्मजिणेसर संगे। चाचरीयामां पासजिणेसर, त्रणसे नव तिहां प्रतिमा। पारेख पदमा पोले बत्रीस जिन, फोफलीया नो महीमा॥१॥ सोनारवाडे सुखदायक श्रीमहावीर, छेतालीस प्रतिमा
पासे गुणगंभीर । खेजडाने पाडे शांतिजिनेसर पासे । एकसोने अडत्रीस प्रतिमा वंदु उल्लासे ॥ २ ॥ उल्लासे वली फोफलीयामां, पास जिणेसर देखें । एकवीस प्रतिमा पासे पेखी, पातिक सयल उवेखं ॥३॥ संभवनाथने देहरे, दोयसत त्राणु प्रतिमा सोहे । शांति जिणेसर देहरे, एकसो न जिन मन मोहे ॥४॥
॥ढाल ॥५॥ खजुरी मनमोहनपाल, एकसो सतावन श्रीजिनपास । चांदुं मन उलास तो
॥जयो० जयो०१॥ भाभो भाभामांहि बिराजे, चारसे एक प्रतिमा तिहां छाजे
१ 'बासठ' एवो पण पाठ छे. २. 'वासुदेवना' पाठांतर) ३. पोषदशमीनो महिमा। ' ( पाठांतर ). ४. 'फरी' एवो पण पाठ छे.
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महिमा जगमें गाजतो ॥ जयो० जयो० २ ॥ लीबडीई श्रीशांति जिणंद, अणसे सात तिहां श्रीजिनचंद । दिठइ अति आणंद तो ॥ जयो० जयो० ३॥ करणे शीतलजिन जयकारी, प्रतिमा सत नवसो तिहां सारी। जनमन मोहनगारी तो ॥ जयो० जयो० ४ ॥ बिंब सतरसु शांति सोहावे, बीजे देहरे मुज मन भावे । दरिसणथी दुख जाय तो ॥ जयो जयो०५॥ देहरासर तिहां देहरा सरखं, पांत्रीस प्रतिमा तिहां कण निरखं । देखी मुझ मन हरख्युं तो ॥ जयो० जयो० ६ ॥ संघवीपोले पास जगदिस, प्रतिमा एकसो ओगणत्रीस' । पूरइ मनह जगीस तो ॥ जयो० जयो० ॥ ७ ॥ पीतलमे दोय बिंब विसाल, प्रतिमा तेहनी अतिसुकमाल । दीसे झाकझमाल तो ॥ जयो० जयो० ८॥
॥ ढाल ॥६॥ भवि तुमे वंदो रे शंखेश्वर जिनराया ॥ ए देशी ॥ खेतलवसही दोय प्रासादे, पास जिणेसर भेटया । सांमला पासनी सुंदर मूरति, देखत सब दुःख मेटया रे॥१॥
भवियां भावे जिनवर वेदो। १ एकत्रीस' एषो पण पाठ छे.
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श्रीजिनवरने वंदन करतां, होवे अति आणंदो रे ॥ भ०२॥ त्रणसे अठोत्तर जिनप्रतिमा, सामलपासनी पासे । श्रीमहावीर पासे ब्यासी जिनवरK,वंदो मन उल्लासे रे॥भ०३।। देहरासर तिहां दोय अनोपम, रूप सोवनमय काम । सोवन रूप रयणमे प्रतिमा, दीसे अति अभिराम रै।।भ०४॥ अजुवसा पाडामां प्रतिमा, सत्तोतर सुखदाइ । पीतलमे श्रीविमलजिणेसर, वंदो मन लय लाइ रे ॥भ०५॥ दोसीकुंपाना पाडामांही, ऋषभ जिणेसर सोहे । सुखदायक जिन सोल हे सुगुणनर, देखी जन माहे रे।भ०६॥ वसोवाडे दोय शत अठावीस, शांतिजिणेसर सामी । ओगणीस जिनमुं दोसीवाडे,ऋषभ नमुं सिरनामी रे ॥७॥ आंबादोसीना पाडामांही, मुनिसुव्रत जिन सोल । पंचहटीए एकसोने वीस,ऋषभजिणंद रंगरोल रे।भ०८ घीयापाडामां दोय देहरां, शांतिनाथ पार्श्वनाथ । एकसो त्रेवीस तेर प्रतिमा, मुगतिपुरीनो साथ ॥भ० ९॥ एकसो छन्नु रिषभजिणंदमुं, प्रतिमा कटकीये वंदी। धोलीपरवमां ऋषभ मुनिसुव्रत छेतालीस चिर नंदीराभ०१०
१ 'नेउ जिनसु' ए पण पाठ छे. २. 'वीस' एवो पण पाठ छे.
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॥ ढाल ॥ ७ ॥
अविनाशीनी सेजडीए रंग लाग्यो रे ए देशी ॥ पारिखजगुना पाडामांहि, टांकलो पास विराजे जी । प्रतिमा चोत्रीस चतुर तुम वंदो, दालिद्र दूखने भाजे जी । महिमा जगमांहि गाजे जी ॥१॥
किया वोहराना पाडामां, शीतल प्रतिमा तीम पंचवीस जी। क्षेत्रपालना पाडामांही, शीतलनाथ नमुं निसदीस जी ॥२॥ जिहां जिनवर के बसे एकाणु, तिहांथी को के जइए जी । ऋणसे नेउ प्रतिमासु कोको, पारसनाथ आराधुं जी ॥ ३ ॥ अभिनंदन देहरे च्यार प्रतिमा, दोय प्रासाद तिहां वांद्या जी । ढंढेर सामल कलिकुंड पासजी । नमतां पाप निकंद्या जी ॥ ४ ॥ एकसो व्यासी प्रतिमा रूडी, व्यासी जिन वर्धमान जी । महेताने पाडे मुनिसुव्रत, सित्तेर जिन परधान जी ॥ ५ ॥ बसे चोराणु बिंब सहित, श्रीशांतिनाथ प्रासाद जी | वखारतणा पाडामां वंदु, मुकी मन विखवाद जी ॥ ६ ॥ दोसत सितरि जनप्रतिमा, वांदी में अभिराम जी ॥ गोदड पाडे रिषभने देहरे, छन्नु बिंव इण ठाम जी ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥
हवे शक्र सुघोषा बजावे || ए देशी ॥ सालिवाडे श्रीसेरीयामांही, नेमि मल्लि ऋषभ नमुं त्यांही
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नवपल्लव नमुं उछांही, जिणेसर ताहरा गुण गाउं ॥
जिम मनवंछित सुख पाउं ॥ जि० १ ॥
साठ उपर सत तिम चार । बीजे देहरे श्रीशांति जुहार । fir ओगणसाठ उदार ॥ जि० २ ॥ कलावाडे देहरां दोय, शांति बिंब एकावन होय । बावन जिनालय जोय || जि० ३ ॥ पीतलमय बिंब सोहावे, विमलनाथ भविक मन भावे । घउ उत्तर चतुरा जिनगुण गावे ॥ जि० ४ ॥
तिण एकसो चोपन जिनराया, ऋषभदेवना प्रणमुं पाया । दणायवाडे शिवसुखदाया || जि० ॥ ५ ॥ धंधोलीए संभव जिन साचो, वंदि त्रेपन जिन मनमांहि माचो । तूंही जिन जगमांहि साचो ॥ ६ ॥
गोलवाडे श्रीमहावीर, सोवन वान जास शरीर । सात प्रतिमा गुण गंभीर ॥ ७ ॥ जि० ॥ दोय शत दस प्रतिमा पास, श्रीशतफणी जिनपास । पूरे मन केरी आश || जि० ८ ॥
खारीवावे श्री जिनवर्धमान, तेर प्रतिमा गुणह निधान । जिननामे कोड कल्याण ॥ जि० ॥ ९ ॥
तिहांथी श्रीपंचासरो पास, वंद्या मन घरी अधिक उल्लास ।
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पोहती मन केरी आस ॥ जि०॥ १०॥ कीधी चैत्यप्रवाडी में सार, मनमांहि धरी हर्ष अपार । जिन नमतां जयजयकार, जि०॥ ११ ॥
॥ढाल ॥९॥ जिनजी धन धन दिन मुज आजनो॥ वांद्या श्रीजिनराज हो जिनजी, काज सया सवि माहरां, पाम्युं अविचल राज हो ॥जि०१॥ जिनजी पंचाणुनइ माजने, श्रीजिनवर प्रासाद हो । जिनजी भाव धरी भवि वंदीए, मुकी मन विखवाद हो।जि०२॥ जिनजी बिंबतणी संख्या सुणो, माजने तेर हजार हो । जिनजी पांचसे होतर वंदीए, सुखसंपत्ति दातार हो ।जि०३॥ देहरासर श्रवणे सुण्यां, पंचसयां सुखकार हो । जिनजी तिहां प्रतिमारलीयामणी,माजने तेर हजार हो।जि०४॥ संवत सतर ओगणत्रीसे, पाटण कीध चोमास हो । जिनजी वाचक सौभाग्यविजय गुरु, संघनी पोहती आस
हो । जि० ५॥ जिनजी साहव सुआ-सुत सुंदर सा रामजी सुविचार हो । जिनजी सुधो समकित जेहनो। विनयवंत दातार हो । जि० ॥६॥
१ वरू' इति पाठान्तर. २ 'साहाज्ये पाठान्तर
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जिनजी धरमधुरंधर व्रतधारी, परगटमल पोरवाड हो । जिनजी तेह तणे उद्यमे करी,
कीधी में चत्यप्रवाड हो । जि० ॥ ७ ॥
निजी तव तीरथमाल घणी, कीधी में अति चंग हो । जिनजी साह रामजीना आग्रहे,
मन धरि अति उछरंग हो । जि० ॥ ८ ॥ जिनजी तवन वीरथमालातणुं, भणे सुणे वली जेह हो । निजी यात्रात फळ ते लहे, वाधे घरमसनेह हो ॥ जि०॥९श जिनजी श्रीविजयदेवसूरीसना, पाट प्रभाकर सुर हो । जिनजो श्रीविजयप्रभसूरि जग जयो । दिन दिन चढते नूर हो ॥ जिनजी धन० ॥ १० ॥ जिनजी श्रीविजयदेवसूरींदना, साधुविजय बुध सीस हो जिनजी सेवक हरषविजयतणी, पूरो मनह जगोस हो ॥ ११ ॥ ॥ कलश ॥
इम तीरथमाला गुणविसाला, प्रवर पाटण पुर तणी । में भगति आणी लाभ जाणी, धुणी यात्राफल तणी ॥ तपगच्छनायक सौख्यदायक, विजयदेवसूरीसरो । साधुविजय पंडित चरणसेवक, हर्ष विजय मंगल करो || १ ||
688668688
इति पाटणचैत्य
प्रवाडी संपूर्ण.
११:११:१
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(२)
पं. होरालालनिर्मिता श्रीपत्तनजिनालयस्तुतिः।
रचना विक्रमसंवत् १९५९ नत्वाऽऽदिदेवं वृषभध्वजं च, कल्याणवल्लीपवरांबुवाहम् । दुर्वे स्तुतिं सर्वजिनालयाना,मुक्तिपदां पट्टनपू:स्थितानाम्॥१॥ पाडे मार्फतियाहे मुनिसुव्रतविभुं भूमिनाथैः सुसेव्य, वंदे वृंदारकेंद्रैः स्तुतमवनितले मोक्षदानकदक्षम् । वामेयं पाचनार्थ शठकमठगजागर्वभेदैकसिंह, नाम्ना श्रीभीडभंज मुनिगणमहितं तीर्थनार्थ नमामि ॥२॥ वंदे ढंटेरवाडे जगति जनगणे श्रेयसामर्पणोत्कं, पार्थ श्रीकंकणाई प्रकटमहमथ श्रेयसे ज्ञातपुत्रम् । एवं पार्श्व च नौमि त्रिदशपतिगणैः सेवितं शामलाई, बिंब यस्यास्ति तुंग भविकजनगुणाल्हाददं भावभक्त्या ॥३॥ वयं नमामो पडिगुंदीपाडे, श्रीशीतलं तीर्थकरं सुभक्त्या । सुरासुरेंद्रैः परिसेव्यमानं, मोक्षश्रियः केलिविलासगेहम् ॥४॥ संसाराग्निप्रतापप्रमथनसबलं शीतलं शीतलाख्यं, मोक्षार्थ मोक्षमार्गप्रदमहमधुना तीर्थनाथं नमामि । भक्त्या प्रासादसंस्थं सुरवरमहितं क्षेत्रपालाख्यपोले, भव्यानंदप्रदानप्रवणमथ सदा सर्वलोकैकबंधुम् ॥ ५॥ कोकापाडे नमामि श्रुतबलकलितैर्भव्यलोकः सुसेव्यं,
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कोकापार्थाभिधानं सकलसुरगणैः सेव्यमानक्रमाब्जम् । प्रौढं तीर्थाधिराजं भवजलतरणे यानपात्रं गुणाढ्यं, भक्त्या वंदेऽभिनंदं जिनपतिमखिलप्राणिसोख्यैकलक्षम् ॥६॥ नमामि कोटापुरवासिधर्मशालास्थितं रथंभनपार्श्वनाथम् । श्यामच्छविं मेघमिवात्र भव्यकलापिनां मानसमोददं च ॥७॥ वंदे पंचासरं वै मुमतिजिनपति ज्ञातपुत्रं च गोडीपार्श्व चिंतामणिं चाजितजिनपतिमत्राहमौचित्ययुक्तः। नौमि श्रीधर्मनाथं वरतरनवलक्षाभिधानं च पार्श्व, चातुर्मुख्या स्थित चामरनरनिकरैः सेव्यमान जिनेंद्रम् ॥८॥ श्रीहीरनरेजयदेवमूरेः, श्रीसे नसूरेः शीलगुणसूरेः। नमामि बिबानि गतानि तत्र, ससारवारांनिाधनौनिभानि ॥९॥ अष्टापदाख्येऽथ जिनालयेऽहं, सुपार्श्वनाथं प्रणमामि भक्त्या । चंद्रप्रभ चंद्रनिभं जनानां, मनोगतानंदसवार्धिवृद्धौ ॥ १० ॥ खडाकोटीपाडे विमलमतितोऽहं जिनपति, स्तुवे शांति शांतिप्रद मवनिगानांतनुभृताम् । तथैवं वंदेऽहं प्रथमजिननाथं तमभितो, द्विपंचाशज्जैनालयकलितजैनायतनगम् ॥११॥ नारंगाभिधपार्श्वनाथ मवनौ नौमि प्रमोदप्रदं, झव्हेरीत्यभिधानवाडगमहं श्रीवासुपूज्यं तथा । नाभेयं च नमामि सर्वजनतासंसारतापापहं, शांति शांतिकरं तथैव जिनपं, श्रीवाडिपार्थाभिधम् ॥ १२॥
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शावाडे प्रणमामि भक्तिभरतो रक्तं च मुक्तिस्त्रियां, श्रीनाभेयममेयकीर्तिकलितं संसारसंतारकम् । मारी येन निवारिता जिनपतिं तं नौमि मुक्त्याः पतिं, श्रीशांविं जगतां जनोपकरणप्रावीण्यबद्धस्पृहम् ॥ १३ ॥ भक्त्यान्वितासु जनतासु नतासु तासु, कारुण्यभावकलितं कलितं सुबोधैः । शावाडगं जिनपतिं प्रणमामि भक्त्या, बोधकदानविबुधं विबुधोपसेव्यम् ॥ १४ ॥ जिनं सुपार्श्वनाथं च पार्श्वे तु शामलाह्वयम् । भव्याब्जप्रकरे लोके, बांधवं लोकांधवम् ॥ १५ ॥ वंदे शांति जिनपतिमथो शस्तमें सातवाडे, भक्त्या युक्तः कविशिशुरहं शांतिनाथ सनाथम् । नाथेन श्रीवरगणभृतां चात्र चंद्रप्रभेण, प्रासादे वै सुरनरगणैः सेवितं गौतमीये ॥ १६ ॥ श्रीशांतिनाथं नरनाथसेव्यं, सनाथतां प्राणिगणे भजतम् । स्थितं च वंदे तरभेडवाडे, संसाररोगव्यथनैकवैद्यम् ॥१७॥ वंदे जिनं श्रीपतिमादिदेवं भक्त्या युतः खेजडपाड संस्थम् । यस्योपरि प्राज्यतरातपत्र, रौप्यं च मुक्त्यस्तकटाक्षतुल्यम् | १८| कर्पूरमेताभिधशस्यपाडे, स्तुवे जिनेशं वृषभध्वजं च । कर्माग्निदाहैक जलाभिषेक, कषायवृक्षेषु दवाग्नितुल्यम् ॥ १९ ॥ तंबोलिवाडे प्रभुमानमामि, श्रीवर्द्धमानं च सुपार्श्वनाथम् ।
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कुंभारपाडे प्रभुमादिदेवं, पार्श्व भटेवाभिधमाप्तमुख्यम् ॥२०॥ शांति नौमीह भक्त्या जिनपतिममलं डंकमेताहपाडे, कर्मारिध्वंसवीरं सकलजनहितं टांकलापार्श्वनाथम् । श्रीवीरं वै जिनेशं प्रथमजिनपति चात्र मण्यातिपाडे, कूटं नाम्ना सहयं वरतरनगरश्रेष्ठिसंनिर्मितं च ॥ २१ ॥ कर्मारामप्रहारप्रवरगजपति मोक्षरामाभिलाष, संसारापारवारांनिधिगलनविधौ कुंभजातं जिनेशम् । उच्चैः पोले नमामि त्रिदशगणनतं स्वर्णकारस्य पाडे, श्रीवीरं शांतिनाथं स्तुतमवनितले नाकिनाथैश्च वन्धम् ॥२२॥ शांतीशं चायनीथ्यां जनगणभृतफोफलियाद्दे हि वाडे, वीथ्यां वै चोधरीणां यदुकुलतिलक नेमिनाथ नमामि । पाच मनमोहनाख्यं तदभिधवरवीथ्यां गतं शंखपाश्च, वीथींग संभवं वखतजित इतः सुव्रतस्वामिन च ॥ २३ ॥ श्रोयोगीवाडेऽद्भुतकांतिमूर्ति,नमामि वै श्यामलपार्श्वनाथम् । श्रीमल्लीपाडे किल मल्लिनाथं कषायमल्लं प्रतिमल्लनाथम् ॥२४॥ नमामि भक्त्या लखीआरवाडे, पार्थ जिनेंद्र मनमोहनाख्यम् । जिनाधिराज मुनिसुव्रतं च, सीमंधरस्वामिन माप्तमुख्यम्॥२५॥ तमजितमभिवंदे केसुनामेभ्यपाडे,प्रथमजिनपतिं वै चोखवट्टीयपाडे मुरगणनतपादंशांतिनाथ जिनेंद्र,जिनमतकजसूर्य धर्मनाथं च नौमि मुमतिजिनपमीडे पाठशालाख्यपाडे,
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वृषभमिपीह स्वर्णवर्णाढ्य देहम् | स्थितमभिनतलोकं पाटके बल्लियाले, भविक मलबोधे लोकबंधुं जिनेशम् ॥ २७ ॥ सद्भक्त्या प्रणमामि शीतलमहं पाडेऽब्जिमेताभिये, तोर्थेश च कसुंबियागमभितो वंदे सदा शीतलम् । -गोडीपार्श्वमथ नमामि किल संवेशाख्यपाडे स्थितौ, मन्मोहाभिधपार्श्वनाथ - विमलौ नैर्मल्यदानक्षमौ ॥ २८ ॥ भक्त्याहं वासुपूज्यं जितमदनमथो वासुपूज्याख्यवीथ्यां, खर्जूरीपाट के चामरगणमहितं मोहनं पार्श्वनाथम् | भाभापाडे नमामि त्रिजगदधिपतिं पूज्यभाभाख्यपार्श्व, शांतं श्रीशांतिनाथं शमसुखसहितं लोंबडीपाटके च ॥ २९ ॥ प्रासादे निर्जरेशालयनिभकलकांती कनाशाहुवाडे, नानाचित्रैर्विचित्रैर्हृतजनहृदये कल्पसौंदर्य कल्पे | तीर्थेश शांतिनाथं स्फटिकमणिमयं दिव्यकांत्या सनार्थ, वंदे श्रीशीतलाख्यं त्वहमहमिकयाहं जिनं देवसेव्यम् ॥ ३० ॥ तत्रैवाहमय प्रणौमि जिनपं श्री शांतिनाथाभिधं, प्रौढे जैननिकेतने स्थितमरं देवेश संपूजितम् ।
पार्श्वे तस्य नमामि नाभितनयं संसार संतारकं, श्रीवीरं च नमामि भक्तिभरतः कर्माशिधाराधर म् ॥ ३१ ॥ नाम्ना श्रीशांतिनाथं समुदमहमयो बामणाख्ये हि वाडे,
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तीर्थेशं प्रौढभक्त्या सकलसुरनराधीशसेव्यं जिनेन्द्रम् । कर्मारामाग्मितुल्यं जितमदनमरं सर्वलोकैकबंधु, संसारापारवारांनिधिगतजनतानारणे यानपात्रम् ॥ ३२ ॥ भक्त्या क्षेत्रवस्यां जिनपतिमभितः श्रीमहादेवपार्थ, शांति संघेशचैत्यं प्रथमजिनवरं शामलाख्यं च पार्श्वम् । संसारांभोधियानं त्वजित जिनपति नौमि योगींद्रनाथं, क्रोधादिप्रौढवैरिपकरविदलने शूरवीरावतंसम् ॥ ३३ ॥ नौमीह शांतिं त्वदुवस्सिपाडे, नाभेय-शांती च वसायवाडे। पंचोटीपाडे जिनमादिदेवं, वागोलपाडे वृषभं जिनं च ॥३४॥ कंबोइपाच किल घीयपाडे, शांति च तत्रैव जिनं नमामि । आदीश्वरं वै कटकीयपाडे, मोक्षपदं मोक्षगतं जिनेशम् ॥३५॥ महालक्ष्मीपाडे मुनिसुव्रततीर्थेशमधुना, तथा कोटावासिप्रवरधनिका गारमिलितम् । जिनं शांति वंदे सकलसुरसंघातमहितं, तथैवं वामेयं शठकमठसंतापहरणम् ॥ ३६॥ आदीश्वरं गोदडयाटकेऽहं, गणाधिनाथं किल पुंडरीकम् । भक्त्या नमामीह च नेमिनाथं, चतुर्मुख तीर्थकरेंद्रबिंवम् ॥३७॥ वक्षारपाडे प्रभुशांतिनाथं, चंद्रप्रभ तीर्थकर नमामि । दृष्ट्वा प्रभां तजिनमंदिरस्य,चित्रं जनौघोऽनिमिषत्वमाप॥३८॥ वंदे श्रीनेमिनाथं यदुकुलतिलकं शांति-धौं च मल्लिं,
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वाटेऽहं शालवीनां जिनपतिवरशांतिं च कल्लारवाडे । वाडे नारायणे वै प्रथमजिनपतिं धांधले संभवं च, गोलावाडे च पार्श्व सुरनरम हितं चंपकाख्यं च पार्थम् ॥३९॥ आदीश्वरं च किल टांगडियाख्यवाडे, शांतिं नमामि विदिताखिल लोकबोधम् । वंदेसहस्रफणिमंडितपार्श्वनाथ,संसारतापपरिखेदसुवारिवाहम् ४० शांतिं च चारुगिरिनारपटं नमामि, शत्रुजयस्य पटमत्र सहस्रकूटं। बिम्बंचतुर्मुखजिनस्य गिरिं च मेरुं,रत्नेषुधर्ममितपादगणं गणिनाम् एवं नमति जगतीह च ये मनुष्या,जैनालयांश्च वरपट्टनसंस्थितांश्च नानागृहस्थगृहगांश्च तथा ह्यनेकान् जैनालयानिह हि ते किल मुक्तिभाजः ॥ ४२ ॥ प्रौढं प्रवर्तकपदं परितो गताना, प्राप्याशु कांतिविजयाख्यमहामुनीनाम् । आनंदमूरिपरिवारकजार्कभानामादेशमत्र किल हंससुतेन भव्यम्।। जिनेशानामेवं स्तुतिरिह मया पट्टनपुरे, गतानां चैत्येषु स्वहितकृतये संविरचिता। हिरालालाहेन ग्रह-विशिख-निध्यब्जमिलिते, शुभे वर्षे शस्ये सपदि वसता जामनगरे ॥४४॥
[इति श्रीपत्तनजिनालय-स्तुति: ]
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॥तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥
कर्ता. साधुचंद्र मुनि.
प्रणमिय रिसह जिणंद पुंडरिक गणहर सहिय ॥ विरचिसु चैत्र प्रवाडि, संघह सरसी जिम विहिय ॥१॥
भास पहिलउ विक्कमपुर नयर, जिह सिरि नाभि मल्हार ॥ बीजइ जिणहरि बंदियइ ए, तिलसासुय सुविचार ॥२॥ सिरि ऊपशाह मंडणउ ए, सोमिय वोर जिणंदा । तिमरियपुरवर सुहकरण, पासनाह जगि चंद ॥ ३ ॥
भास जोधनयर सिरि कुंथुनाथ, विहिचेय मंडण ॥ पास संति बे वंदियह ए, दुह दाह विहंडण ॥ ४ ॥ गूढानयर सिरि कुंथुदेव, भवजलनिहितारण. ॥ बीजइ जिणहरि पूजीयइ ए, सीतल सुहकारग ॥ ५ ॥
वस्तु पास जिणवर पास जिणवरि, नयरि जालउरि, आदीसर पहु भेटियए, सयल सुख संपत्ति कारण; अचिरानंदण संति जिण, भविय लो। दुहतावचंदग । हरिकुल अंबर सहसकर, सामिय नेमिकुमार, धीर जिणेसर भवणगुरु, तिहुयण तारणहार ॥६॥
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भास
शाणापुर सिरि वद्धमाण, निभइ भयवारण | मुणिसुव्वय पहु पूजीयइ ए, गइनिज्जियवारण || ७ || नाराद्रह सिरि वीरनाह, भवतिमिर दिणेसर | ओढापुर मुखमंडणउए, सिरि वीर जिणेसर ॥ ८ ॥
ढाळ
सीरोही सुरपुर अवतार, गढमढ मंदिर पोलि पगार । कण कलस धजदंड विसाल, दीसइ देउल नयण रसाल ||९|| खरतरवसहि संति जिणंद, भविय-कमल पडिबोहदिणंद । त्रिहु चेइ सिरि आदिजिनंद, अजियनाह किरि पूनिमचंद ॥ १०॥
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भास नाभिराय - घरि सोहलउ ए, सामिय रिसह जिणंद । मंकोss थिरथी र उ ए तिहुयण नयणानंद ॥ ११ ॥ मंडवाड पहु पासजिण, कज्जल कोमल काय । नीतोडइ सिरिआदिपहो, सुरनर वंदिय पाय ॥ १२ ॥ पोसोनई सिरि पढमजिण, बिहुं चेइ सिरि संति | पास वीर रंगि पूजीयइ ए, टालइ निज मनि भ्रंति ||१३|| मटोss महिमानिलउ ए, सोहग सुंदर पास । महाबीरपहु आगियर ए, तोडइ भवदुह पास ॥ १४ ॥ नयर वडाली संतिजिण, तिहुयण पणमिय सामि । इडर नयर दुन्नि जिण, रिसह पास सिवगांमि ॥ १५ ॥ itsvg भेटिय ए, ओडा नयर मझारे । अट्ट कम्म अरि निजणीय, जो पहु गउ भवपारे ॥ १६ ॥
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वस्तु बडहनरइ बडहनरइ आदि पहु वीर, जीवतसामिय लेपमए, कणयवन्न पादुका रयण, बालउ वेउल मालतिय, पमुह फुलतोडर रएवि। कुंकुम चंदन मद नविय, पूज रचावउ भंगि। भावन भावउ विवहपरि, जगगुरु आगलि रंगि ॥ १७ ॥ बीसलनयरई आदि वीर, मणछिय सुरवर। . महिसाणे पहु पास संति, सिरि आदि सुमतिवर ॥१८॥ जोटाणइ पहु पासनाह, सिरि सुमति जिणेसर । सूंआलइ सिरि नेमिदेव, भवभय वणकुंजर ॥ १९ ॥ वीरमगामइ सुमति संति, जांबू मुनिसुव्रत। टोटरगामइ पासनाह, बहु लोयां सम्मत ॥ २० ॥ भोइका सिरिआदिनाह, रंगपुरिं पहु पातो। धंधुकइ सिरिपंच संति, वंदउ वलि पासो ॥ २१ ॥
वस्तु
बलहनयरि वलहनयरि संति जिणराउ, चम्मारिपुरि संतिजिण, भवियलोअ लोयण निसायर, पालिअताणइ पासपहो, विहिय सेव सुर असुर किन्नर ॥ ललियसरोवर हरखभरि, सामिय वीर नमेश । अंग पखालिं विमल लि, पावपंक टालेसी॥ २२ ॥ गहगहंत दिव गिरि चडिय, पाजइ परमाणंद॥ । दह दिसि पसरिय विवह परे, सिंदवार मचकुंद ॥२३॥ कोइल करइ टहूकडा ए, विहसिय सुह वणराय ।
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परवइ परबइ लइसियए, सीतल वायइ वाय ॥ २४ ॥ मरुदेवा गइवर चडिय, अचिरानंदण संति । छीपकवसहिय बंदियइ ए, अदबुद सोवन कति ॥ २५॥ अनुपम सरवर पेखियइ ए, सरगारोहिणि चंग। वाधिणि निरखी बारणइ ए, रोचिय मह अंगि ॥ २६॥
वस्तु आदि जिणवर आदि जिणवर नमिय बहु भत्ति, देवासुर संथुणिय कुमयमोहमहिमा विहंडण; खरतरवसहिय पढजिण, नेमिनाह गिरनार मंडण ।। रायणतलि हिव पूजियइ, सामिआदिल-पाइ, नाग मोर बे ध्याइयइ, जे हुआ सुरकाइ ॥ २७ ॥.. इणिपरि यात्रा विमलगिरे, कीधी मन उल्हासि । कवडजक्ष-सुपसाउलइ ए, टला विधन दुह गसि ॥८॥ पाटण पहवह वरनयर, जिह विससेण मल्हार। अवर बिंब बहु वंदियह ए, तिहां न लाभइ पार ॥ २१ ॥ सिरि संभवपहु वाविपुरे, लोद्राडइ सिरिसंति; . फीदीवनयर सिरिवीरजिण, जसु पसाइ सुह संति ॥३०॥ तेत्रीस वच्छर विगयमच्छर ठामि ठामि जिणेसरा।। निय भाव सत्तिहि विविह भत्तिइ भविय कमल दिणेसरा । बहु संघ साथइ देवराजइ बच्छराजि नमंसिया। ते देव सुहमर जावडू थिर श्रीसाधुचंद्रि प्रसंसिया ॥३॥
॥ इति तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥
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॥ नवकार वाली पद ॥
राग भीम पलास. भला करे फीर मुर्शदमौला, अल्ला पंढरपुरवाला-ए चाल. भला होयगा भजले माला, टल्ला भवखानेवाला-ए आंकणी नही लगती कुछ दमडी कवडी, रटनेमें प्रभु गुण ठाला, माला बनाले गुणको गाले, छोड कर दुनिया चाला
॥ भला० ॥१॥ सूत प्रमुखकी गुंथ के माला, आँकार जप ले लाला; ओंकारमें पंच परमेष्टी, हे माला गुणने वाला ॥ भला ॥२॥ अष्टोत्तर शत हे गुण इनके, उतने मणके कर व्हाला, इंस कहत है सुण बे प्यारा, घटमें घर ले गुणमाला॥भला०३॥ ॥ कार्तिक पुनम महिमा गर्भित श्री सिद्धाचल
स्तवन ॥ अबमोहे डांगरियां हे जिनंदजी,
ए देशी. सिद्ध गिरि शणगार, मुगुणनर सिद्धगिरि शणगारः . . दशकोटी अणगार,
मु०॥ ए आंकणी ॥ ऋषभदेवना पुत्र पनोता, द्रविड नाम भुपाल. सु० जेना नामथी द्रविड देश छे,हालमां करलो ख्याल. सु०सि०॥१॥ मुख्य राजधानी के तेहनी, मिथिला अति मनोहार. मु०
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तेहना राजा प्रपुत्र प्रभुना,द्राविडजी सुखकार. सु०॥सि०॥२॥ वारीखील्य लघु बांधव तेहना, लाख गाम सिरदार. सु० राज्य ऋद्धि छोडी बन्ने भाइ, उतरवा भवपार. सुवासि॥३॥ चारण मुनिवरनी शिक्षाथी, लेइ दीक्षा तत्काळ. मु० अणसण कर्यु एक मासनुं सुंदर, छोडी सकल जंजाल. सु०सि०४ शरदपुनमथी कार्तक सुदनी, पूनम सुधीनुं सार सु० आत्मध्यान धरी मोक्ष सधाया,दश कोटी मुनि लार. सु०सि०६॥ ते कारण कार्तक पुनमनो, महिमा अपरंपार. ० . महितलमां विस्तरीयो छे बहु,मेलो भरे नरनार. सु०सि०॥६॥ वली कार्तकी अहाइ परवरुप, देरी उपर जुवो धार. सु० .. पूनमनो दिन कलश स्वरुपे, सोभे मंगलकार. सु०॥सि०॥७॥ ते दिन दादा वृषभ देवनी, यात्रा करीने उदार. सु० द्राविडने वारिखील्य मुनिनी, प्रतिमा पूजो श्रीकार.सु०सि०॥८॥ शत्रुजय महातममां सुंदर, ए वृतांत रसाल, मु० सूरिधनेश्वरनु फरमाव्यु, वांचो थइ उजमाल. सु०॥सि०॥९॥ तेह धनेश्वर सूरीश्वरनी, मूर्ति स्थापन कार. मु० हंस कहे ते मूर्ति पूजो, सिद्धगिरि पर सार. मु०॥सि०॥१०॥ आदि जिन मंडल पूर्णा तिथिए, पूर्ण करवा संसार. मु. प्रति पूनम दिन पूजा भणावे,जिनभुवने जयकार. मु०सि०११॥
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पाटणमां वर्तमान जिनमन्दिरो.
पोळ
देरासर
मूत्रनायकजी
१ अष्टापदजीनी धर्मशाळा चंद्रप्रभु, अष्टापदजी, सुपार्श्वनाथ
आदीश्वर, पांचमेरु
ऋषभदेव, शांतिनाथ आदीश्वर, पद्मप्रभु, गणधरपगलां, सिद्धाचलजी, सहस्रकूट, चोमुखजी शांतिनाथ, मेरु, शिखरजी
२ खडा खोटडी २ टांगडीआवाडो
२ झवेरीवाडी
शाहपाडो
२ शाहवाडो
१
सातपाडो
११९
१ तर भेडावाडो
१ खीजडानो पाडो
१ कपूरमहेतानो पाडो २ तंबोळीवाडो
२ कुंभारीआपाडो २ डंकमहेतानो पाडो. ३ मणीआती पाडो
२ सोनीवाडो
नारंगा पार्श्वनाथ, आदीश्वर, पा र्श्वनाथ, वासुपूज्यजी, वाडीपार्श्वनाथ
आदीश्वर, शांतिनाथ
सुपार्श्वनाथ, शामळा पार्श्वनाथ शांतिनाथ, चंद्रप्रभु, गौतमस्वामी शांतिनाथ
आदीश्वर
आदीश्वर
महावीरस्वामी, सुपार्श्वनाथ ऋषभदेव, भटेवा पार्श्वनाथ कला पाश्र्वनाथ, शांतिनाथ महावीरस्वामी, आदीश्वर, सहस्रकूट महावीर स्वामी, शांतिनाथ
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६ फोफळी आघाडी
१ जोगीवाडो १ मलातनो पाडो
२ लखीआरबाडो
१ निशाळ पाडो १ केसुशेठनोपाडो
३ चोखावटीआनो पाडो १ बळीआ पाडो १ अबजीमेतानो पाडो
२ कसुंबी आवाडो
२ संघवीनो पाडो
१ वासुपूज्यजीनी खडकी १ खजुरीपाडो
१ भाभानो पाडो
१ लींबडीपाडो
१
कण सानो पाडो १ बामणवाडो
५ खेतरवसी
१२०
कांतिनाथ, संखेश्वरजी, मनमोहनजी पार्श्वनाथ, संभवनाथ, मुनिसुव्रतस्वामी, नेमीनाथ
शामटा पार्श्वनाथ मल्लीनाथ
सीमंधरस्वामी, मुनिसुव्रतस्वामी मनमोहन पार्श्वनाथ
सुमतिनाथ
अजितनाथ
आदीश्वर, धर्मनाथ, शांतिनाथ :
आदीश्वर शीतलनाथ
शीतलनाथ, गोडी पार्श्वनाथ
विमलनाथ, मनमोहन पाश्र्वनाथ
वासुपूज्य स्वामी
मनमोहन पार्श्वनाथ
भाभापाश्वनाथ
शांतिनाथ शीतलनाथ, शांतिनाथ शांतिनाथ
つ
शांतिनाथ, विमलनाथ, आदीभ्वर, अजितनाथ, शामला पार्श्वनाथ
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१ अदुवसानो पाडो शांतिनाथ २ वसावाडो
शांतिनाथ, आदिनाथ १ पंचोटीपाडो
ऋषभदेव १ वागोळाडो
ऋषभदेव २ घीआ पाडो
शांतिनाथ, कंबोइ पार्श्वनाथ .१ कटकीआघाडो
आदिनाथ ४ तरशेरीओ
शांतिनाथ,नेमिनाथ,पार्श्वनाथ,
महावीरस्वामी, १ कलारवाडौं
शांतिनाथ १ धांधल
संभवनाथ १. नारणजीनो पाडो ऋषभदेव २ शालीवाडौं गोलवाड गोडीपार्श्वनाथ,बाडीपार्श्वनाथ २ महालक्ष्मीनो पाडो मुनिसुव्रतस्वामी, सुमतिनाथ गोदडनो पाडो आदीश्वर, चंद्रप्रभु, नेमिनाथ
चोमुखजी, २ वखारनों पाँडो
चंद्रप्रभु, शांतिनाथ र मारपतीआ मेत्तानो पाडो. मुनिसुव्रतस्वामी, भीडभजन
पार्श्वनाथ ३ ढंढेरघाडो
कलिकुंड पार्श्वनाथ, शामळा,
पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी १ पडीगुदी
शीतलनाथ १ खेतरपाळनो पाहो शीतलनाथ २ कोकानो पाडो . कोकापार्श्वनाथ, अभिनंदन
स्वामी,
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१ कोटावाळानी धर्मशाळा १ पंचासरो
१०० मोटां देरासर घर देरासर जुदां.
१२२
. स्तंभन पार्श्वनाथ पंचासरा पार्श्वनाथ, नवखंडापार्श्वनाथ, धर्मनाथ, महावीरस्वामी, बे सुपाश्वनाथ, चिं'तामणिजी, अजितनाथ, शांतिनाथ, चोमुखजी, गोडीपार्श्वनाथ, सुमतिनाथ, श्री हे. सर्वाचार्यजी विजयदा नसु रीजी, विजय हीरसूरीजी, विजयसेनसूरीजी बिगेरे पूर्वाचायनी मूत्तिओ.
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पृष्ट
१
203 A
39
१०
१२
. १७
२१
२४
33
४१,
४४
४५
४८.
५८
६३ :
६४
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"1"
पंक्ति
९
१३
१
७
८
२०
. १९
१२
१९
२२
१५
८
१२
१८
६, ०९
१२३
शुद्धिपत्रक.
अशुद्ध
पैकोना
आछो
ता
वैत्र
७ सात
मलाधरी
घखतथी
जन
चैत्योनी
९÷९८
पाडे
शुद्ध
पैकीनो
भुवनपम
श्रीविद्याम ललितप्रम
ओछो
तो
चैत्र
८ आठ
मलधारी
वखतथी
जैन
चैत्योनां
९५९८
पाढे
=
६ ठा
मालावाडे मालीवाडे Treearsai गोल्वाडमां शखेश्वरनुं शंखेश्वरनं
=३५२
६ ठी.
भुवनप्रभ
श्रीविद्यापभललितप्रभ
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________________ 124 बिब चद्रप्रभा बिंब 2.me. चौद चंद्रप्रभ चौद वीर GG MG विर जीनवरुए भसात जिनवरु ए भेसातवित्र v बिब . शीतल बिंब पीतलमे शीतल किंव पीतलमय माहे मोहे 2. साहव मुआ- साह वसुआ२०५ चत्य- चैत्य१०६ -णनगुणा- -जनगणा१०७ ससार संसार-निधि -निधि -पाश्व -पार्श्व 111 जिनपति -जिनपति आ सिवाय मात्रा रेफ विगेरे खण्डित थवा संबंधी या ऊडी जवा संबंधी अने केटलीक पदच्छेद संबंधा रही गयेली स्खलनाओ सुज्ञ पाठकोए सुधारी वांच. MMME 109