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देहरइ शांतिजिन निरपीआ। बावीसइ पंती। वीरजी घरि सोलम जिन् । बायोसइ पंती ॥ ३३ सु०॥ कुंपा दोभी पाटकि आवीआ। रिसहजिन भावउ । आठ प्रतिमा तिहां वंदीइ । भावना भावउ ॥ ३४॥सु०॥ दोसी गणीआ घरि हवइ । पास पडिमा होइ । बा वीस जिनवर परपीआ। पंडित जन जोइ ।। ३५ सु० ॥ सतर भेद जिन पूजीइ । ज्ञातासूत्रइ भाषी। जिनवचन हईडइ धरी । द्रुपदी साषी ॥ ३६ सु०॥
॥ राग मेवाड ए ढाल ॥ १६ ॥ विसावाडइ पुंजा सेठि घरइं। पासजिन निरष्यारे आज। मोल प्रतिमा रयणमय इक वली। दीठइ सरीआं रे काना मूरति निरषु रै जिननी भावसिउं। ते नर नारी धन्न । जे निजभावई पूजा आचरइ । ते नर लहइ बहुपुन्य ।। ॥आंचली। सेानी अमर दत घरि धर्मजिन। पडिमा इग्यार जेहा विसा विमूनइ देहरासरि । जिन त्रेवीसमु वली तेह॥३८॥ अवर अढारइ जिन तिहां वंदीइ । रत्नमय एक ज सार। अमरपाल देहरासर भणउं । अजितह रयण उदार ॥३९॥मू० पतिमा त्रणि वली जिहां अछइ । देहरइ पुहुता रे जाम । सोलम जिनवर निरष्या भावसिजी पंचास पडिमा रे ठाम४००