________________
दोसी वछानइ घरि । चंद्रप्रभ देहरासरि । सत्तरि जिनबिंब नमीइ । संसारमाहइं न भमोइ ॥ ७१ ॥ सेठि पचू देहरासरि । चंद्रप्रभ जिन सुखकर। सोल बिंब तिहां साहइ । सीपमइ इक मन मोहइ ॥ ७२ ॥ सूरजी सेठि घरि आव्या। पनर जिनबिंब भाव्या। दोसी रामानइ घरि । ओगणपंचास जिनवर ॥ ७३ ॥ दोसी रहीआघरि देव । ओगणत्रीस कीजइ सेव । महितापाटकि निरपउ । मुनिसुव्रत जिन परपउ ॥ ७४ ॥ वीस जिणंद तिहां जुहारउ । पूजी समकित धारउ । सहा वछा घरि पास । त्रणि जिन पूरइ ए आस ॥७॥ जिन सरिषां बिंब जाणउ । पेषी भाव मनि आणउ । नियम व्रत मूध ए पलिउ । समकित रयण अजूालउ॥७६॥
॥ढाल भमारूली ॥२०॥ जिन चैत्य इम जुहारीइ तु रिममारूली। एक सउ एक वषाणि तु! अणहल्ल पाटणि एतला तु रिभमारूली । देहरासर वली
जाणि तु ॥ ७७॥ नवाणुं ते रूअडातु रि भमारूली। प्रणमउ भगतई सोइ तु । पाप अढारइ छूटीइ तु रि भमारूली ।सुख संपद सवि होइ तु॥७८ विद्रुममय बिंब एक भणउं तु रि भमारूली । सीपमय बिंब
बे होइ तु।